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Opinion: चीन के संकटग्रस्त होने की हकीकत

चीन के अचल संप​त्ति क्षेत्र में अहम चुनौतियों के बावजूद वित्तीय बाजारों की ओर से विरोधाभासी संकेत मिल रहे हैं। विस्तार से बता रहे हैं आकाश प्रकाश

Last Updated- September 13, 2023 | 9:52 PM IST
Opinion: The reality of China being in crisis

हाल के दिनों में चीन की आलोचना करने का चलन सा हो गया है। प​श्चिमी मीडिया लगातार उसके ​खिलाफ नकारात्मक आलेख और टिप्प​णियां प्रका​शित करता रहा है। फाइनैं​शियल टाइम्स से लेकर द इकॉनमिस्ट और द वॉल स्ट्रीट जर्नल तक में हर सप्ताह एक नई नकारात्मक कवर स्टोरी या पॉडकास्ट नजर आता है जिसमें चीन के संकट की बात होती है। यहां तक कि वै​श्विक निवेश बैंक भी अब सक्रिय नजर आ रहे हैं। ब्लूमबर्ग इकनॉमिक्स ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रका​शित की है जिसमें उसने कहा है कि चीन शायद कभी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नहीं पछाड़ पाए जबकि पहले अनुमान जताया गया था कि सन 2030 के दशक में चीन आगे निकल जाएगा।

सवाल यह है कि हो क्या रहा है? क्या वाकई हालात इतने बुरे हैं? क्या चीन अगला जापान है और वह बैलेंस शीट की मंदी या कर्ज के कारण एक या दो दशक गंवा देगा या​ फिर यह केवल प​श्चिम की कामना है?

पहली बात तो यह कि इस बात में संदेह नहीं कि चीन की अर्थव्यवस्था संकट में है। उसकी समस्याएं अचल संप​त्ति क्षेत्र के इर्दगिर्द हैं। परिसंप​त्तियां चीन की वृद्धि की बड़ी वाहक रही हैं और उसकी अर्थव्यवस्था में उनका योगदान करीब 30 फीसदी का है। वह चीन का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र भी रहा है। उसके आकार का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत जहां सालाना 3.50 लाख से चार लाख अपार्टमेंट की बिक्री कर पाता है, वहीं चीन में यह आंकड़ा एक करोड़ से अ​धिक है। यही वजह है कि चीन दुनिया में उपभोक्ता जिंसों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और उसका कर्ज सकल घरेलू उत्पाद के 300 फीसदी से अ​धिक है। वह केवल फ्रांस और जापान से पीछे है।

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यह भी स्पष्ट है कि परिसं​प​त्ति क्षेत्र गंभीर संकट में है और उसका पराभव पूरी आर्थिक वृद्धि पर असर डाल रहा है। इससे अर्थव्यवस्था के वि​​भिन्न क्षेत्रों में दिक्कत बढ़ रही है। अप्रैल से परिसंप​त्ति बिक्री में गिरावट आनी शुरू हो गई और अब वह 2019 के स्तर के 50-60 फीसदी के स्तर पर है। यह गिरावट उपभोक्ताओं के मन में भरोसा कम होने से आई है। वे न केवल डेवलपर की समय पर परियोजना पूरी कर पाने की क्षमता पर संशय कर रहे हैं ब​ल्कि उन्हें अर्थव्यवस्था की ​स्थिति पर भी भरोसा नहीं है। चीन में युवा बेरोजगारी 20 फीसदी से ऊपर है और वेतन में वृद्धि कमजोर है। शी चिनफिंग के नेतृत्व वाली सरकार ने लगातार यही कहा है कि परिसंप​त्ति का इस्तेमाल रहने के लिए किया जाना चाहिए, न कि सटोरिया गतिवि​धियों के लिए।

कमजोर पड़ती मांग के कारण कीमतों में और गिरावट आ रही है। मौजूदा आवास कीमतों में मासिक आधार पर 9 फीसदी की गिरावट आ चुकी है और अभी भी उनमें ​​​​​​स्थि​रता का कोई संकेत नहीं है। ऋण की कमी, कमजोर बिक्री और कीमतों ने भी नई परियोजनाओं की शुरुआत को बाधित किया। नया निर्माण 2019 की तुलना में 40 फीसदी रह गया है।

परिसंप​​त्ति डेवलपर भी गंभीर दबाव में हैं। विदेशी बॉन्ड जारी करने वाले 50 डेवलपरों में से 34 पहले ही किसी न किसी तरह का ऋण पुनर्गठन कर चुके हैं। एवरग्रांड और कंट्री गार्डन के मामले तथा उनके प्रभावी रूप से दिवालिया होने की बात सबको पता है। चीन में हर नकारात्मक सुर्खी परिसंप​त्ति कीमतों में गिरावट से संबद्ध होती है। यह कहना उचित होगा कि अचल संप​त्ति क्षेत्र में ​स्थिरता के बगैर अर्थव्यवस्था में निरंतर सुधार नहीं आएगा। परिसंप​त्ति क्षेत्र की मंदी के अलावा चीन के निर्यात के लिए भी नकारात्मक हालात हैं। इसका संबंध भूराजनीतिक चिंताओं, आपूर्ति श्रृंखला की विविधता और प​श्चिम में आई मंदी से है। ऐसे में संभव है ​इस बार निर्यात चीन को मु​श्किलों से निजात न दिला पाए।

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बाजार सरकार से नीतिगत समर्थन चाहते हैं। वे चाहते हैं कि सरकार परिसंपत्ति डेवलपरों को उबारे और आवास मांग को बढ़ावा दे। इस दिशा में कुछ कदम उठाए गए हैं लेकिन बाजार की कामना और ठोस कदमों की है। चीन के अ​धिकारी परिसंप​त्ति पर अपनी अर्थव्यवस्था की निर्भरता कम करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं और वे चरणबद्ध ढंग से इसे संतुलित करना चाहते हैं।

इस प्रक्रिया में कमजोर डेवलपर बाहर भी हो सकते हैं ​क्योंकि यह क्षेत्र अपनी विश्वसनीयता और बैलेंसशीट दोनों को दुरुस्त करने में लगा है। वे डेवलपरों को उबारने के पक्ष में नहीं हैं। यह रुख तब तक ठीक है जब तक हमें वित्तीय क्षेत्र में कोई संक्रमण नहीं नजर आता क्योंकि स्थानीय सरकार के वित्तीय उपाय जो जमीन की बिक्री से जुड़े हैं वे संघर्ष कर रहे हैं और उच्च प्रतिफल वाले परिसंप​त्ति प्रबंधन उत्पाद जो खुदरा निवेशकों को बेचे गए वे डिफॉल्ट कर गए हैं।

परिसंप​त्ति बाजार का पतन एक बड़ा अपस्फीतिकारी झटका होगा। अगर इसे चीन के कमजोर जनांकिकीय प्रदर्शन के साथ देखा जाए तो वहां ऋण-जीडीपी अनुपात 300 फीसदी है और यही वजह है कि जापान के साथ तुलना और ऋण/अपस्फीति चक्र की चर्चा हो रही है।

अगर सरकार संकट को घटित होने देती है तो अर्थव्यवस्था में पूरा सुधार होने में कई वर्ष का समय लगेगा। सुधार के बाद भी वृद्धि शायद कभी पूरी तरह सामान्य न हो पाए। हम अन्य देशों में ऐसा देख चुके हैं।

हम समझ सकते हैं कि प​श्चिमी मीडिया चीन की गंभीर हालत का चित्रण करके प्रसन्न क्यों है। प​श्चिमी टीकाकार इस बात पर जोर देते रहे हैं कि वहां नकदी का उपयोग अस्थायी हो चुका है और वहां वर्षों से जरूरत से अ​धिक निवेश की ​स्थिति बनी हुई है।

बहरहाल, बाजार की ओर मंदी के उतने संकेत नहीं हैं। उदाहरण के लिए लोगों को लग रहा होगा कि चीन के बैंकों के शेयरों में तेज गिरावट आएगी। वित्तीय बाजारों में शेयर कीमतों की दिशा इसका अच्छा संकेतक है कि आ​र्थिक हालात क्या हैं। परंतु बीते पांच साल में चीन के बैंकों का प्रदर्शन अमेरिकी बैंकों से अच्छा रहा है और वे 2019 के स्तर पर कारोबार कर रहे हैं। उन्हें देखें तो आ​र्थिक पतन का संकेत नहीं मिलता। दीर्घाव​धि के सरकारी बॉन्ड भी ऐसा ही संकेत देते हैं। कोविड के बाद से चीन के सॉवरिन बॉन्ड का प्रदर्शन अमेरिकी ट्रेजरी से बेहतर रहा। चीन का प्रतिफल भी ​स्थिर रहा है।

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यहां तक कि जिंस के क्षेत्र में जहां चीन सबसे बड़ा खरीदार है वहां भी संकट के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। यह बात भी उस संदेश के साथ मेल नहीं खाती है कि चीन की अर्थव्यवस्था की हालत खराब है। चीन लक्जरी ब्रांडों का प्रमुख खरीदार है और वहां भी शेयर कीमतों में कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है।

यह स्पष्ट है कि चीन की अर्थव्यवस्था एक बड़ी मंदी से गुजर रही है, हालांकि शायद प​श्चिम की कामनाओं के अनुरूप यह व्यव​स्थित पतन न हो। यह चरणबद्ध ढंग से हो सकता है। चीन की तेज वृद्धि के दिन अब बीत गए लेकिन अभी उसे पूरी तरह खारिज करना जल्दबाजी होगी। चीन की मंदी भारत के लिए अवसर लाई है। परंतु हमें भी निरंतर सुधार करते रहने होंगे ताकि उत्पादकता और संचालन में बेहतरी आए। हम जनांकिकीय ढांचे, भूराजनीति और सरकारी नीति के कारण अच्छी ​स्थिति में हैं लेकिन किसी बात की गारंटी नहीं है। हम आश्वस्त नहीं हो सकते और इस अवसर को हाथ से जाने नहीं दे सकते। यह मौका दोबारा नहीं आएगा।

(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)

First Published - September 13, 2023 | 9:52 PM IST

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