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Editorial: भारत-अमेरिका के रिश्तों का नयापन

यह रुख उस भूराजनीतिक दांव की ओर इशारा करता है जो अमेरिका और उसके सहयोगियों ने भारत में निवेश के लिए चुना है क्योंकि चीन तेजी से उग्र कूटनीति को अपना रहा है।

Last Updated- October 27, 2023 | 8:20 PM IST
Modi and Biden

भारत ने गत 10 सितंबर को जी20 शिखर बैठक को जिस ऊंचाई पर समाप्त किया उसका परिणाम भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में बढ़े हुए सौहार्द के रूप में सामने आया।

भारत तमाम अनुमानों के विपरीत वैश्विक नेताओं के घोषणापत्र में सहमति को आकार देने में कामयाब रहा। इसकी एक प्रमुख वजह यह भी रही कि अमेरिकी नेतृत्व वाले जी7 समूह ने यूक्रेन युद्ध को लेकर अपना रुख नरम किया जबकि एक वर्ष पहले बाली घोषणापत्र में इस मुद्दे पर बहुत सख्त भाषा का इस्तेमाल किया गया था।

हालांकि यूक्रेन के उल्लेख वाले पैराग्राफ में मोटे तौर पर चीन और रूस द्वारा उल्लिखित दायरे का ही पालन किया गया लेकिन जी7 के रुख ने यह सुनिश्चित किया कि भारत वैश्विक मंच पर उभरकर सामने आ सके।

यह रुख उस भूराजनीतिक दांव की ओर इशारा करता है जो अमेरिका और उसके सहयोगियों ने भारत में निवेश के लिए चुना है क्योंकि चीन तेजी से उग्र कूटनीति को अपना रहा है। गत वर्ष के दौरान अमेरिका और भारत के बीच करीबी सहयोग इसका मजबूत संकेत रहा है।

दोनों देशों के बीच संबंधों की गहराई बीते छह महीनों में खासतौर पर नजर आई है। जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा पर गए। उसके बाद 8 सितंबर को जी20 नेताओं की शिखर बैठक के ऐन पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रधानमंत्री मोदी के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई। दोनों ही बैठकों के बाद संयुक्त वक्तव्य जारी किए गए।

प्रतिबद्धताओं और सहयोग को लेकर साझा घोषणाओं के बीच दो मुद्दे अलग नजर आए। पहला राष्ट्रपति बाइडन का पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की उस प्रतिबद्धता को दोहराना कि भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग का समर्थन किया जाएगा। दूसरा रक्षा क्षेत्र में करीबी सहयोग।

जनरल इलेक्ट्रिक और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स के बीच हल्के लड़ाकू विमान इंजन बनाने का समझौता इस सहयोग का प्रमुख उदाहरण है। एक दूसरे के सैन्य संस्थानों में संपर्क अधिकारी नियुक्त करने खासकर भारत के फ्लोरिडा स्थित सेंटकॉम के मुख्यालय में ऐसे अधिकारी नियुक्त करने की बात बताती है कि भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में हस्ताक्षरित समझौते को लेकर कितनी गंभीरता से पहलकदमी हो रही है।

एक नया तत्त्व है भारत का अमेरिकी नौसैनिक परिसंपत्तियों के रखरखाव और सुधार कार्य के बड़े केंद्र के रूप में उभार। इस मोर्चे पर दोनों देशों ने मास्टर शिप रिपेयर एग्रीमेंट किया है। इसके तहत भारत अमेरिकी नौसेना के विमानों और पोतों की मरम्मत करेगा। सितंबर वक्तव्य में अमेरिकी उद्योग जगत की ओर से प्रतिबद्धता पर एक वाक्य शामिल किया गया जिसमें उसने कहा कि वह भारत में विमानों की मरम्मत, रखरखाव और सुधार क्षमता विकसित करने में निवेश करेगा।

हालांकि अब तक कोई व्यापक व्यापार समझौता देखने को नहीं मिला है लेकिन आर्थिक रिश्तों में अहम प्रगति देखने को मिली है। जून में अमेरिका और भारत दोनों ने विश्व व्यापार संगठन में दो बकाया विवादों को खत्म कर दिया। अमेरिका इस बात पर भी सहमत हो गया कि वह भारत से होने वाले स्टील और एल्युमीनियम निर्यात के अहम हिस्से को 2018 में ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए दंडात्मक शुल्क से राहत देगा।

इसके प्रत्युत्तर में भारत ने 5 सितंबर को अमेरिका से आयात होने वाले सेब, अखरोट और बादाम पर शुल्क समाप्त कर दिया। दोनों देशों के रिश्तों में अगला मील का पत्थर यह होगा कि अमेरिका जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस के तहत शुल्क रियायत बहाल कर दे। ट्रंप प्रशासन ने इसे समाप्त कर दिया था और बाइडन ने इसे बहाल करने का वादा किया था।

अमेरिका की यह गर्मजोशी भारत को अवसर देती है कि वह रिश्तों को आगे ले जाए। दोनों देशों के रिश्ते 2008 में भारत-अमेरिका नाभिकीय समझौते के बाद आगे बढ़े थे लेकिन फिर उनमें ठहराव आ गया था। यह एक अहम चुनौती भी पेश करता है, खासतौर पर अपने पड़ोस में स्थित महाशक्ति के साथ जिसका मिजाज अप्रत्याशित है और जो भारत के सीमावर्ती इलाकों में क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाएं पाले हुए है।

First Published - September 12, 2023 | 11:33 PM IST

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