facebookmetapixel
अमेरिका टैरिफ से FY26 में भारत की GDP 0.5% तक घटने की संभावना, CEA नागेश्वरन ने जताई चिंताPaytm, PhonePe से UPI करने वाले दें ध्यान! 15 सितंबर से डिजिटल पेमेंट लिमिट में होने जा रहा बड़ा बदलावVedanta Share पर ब्रोकरेज बुलिश, शेयर में 35% उछाल का अनुमान; BUY रेटिंग को रखा बरकरारGST कटौती के बाद खरीदना चाहते हैं अपनी पहली कार? ₹30,000 से ₹7.8 लाख तक सस्ती हुई गाड़ियां; चेक करें लिस्टविदेशी निवेशकों की पकड़ के बावजूद इस शेयर में बना ‘सेल सिग्नल’, जानें कितना टूट सकता है दाम35% करेक्ट हो चुका है ये FMCG Stock, मोतीलाल ओसवाल ने अपग्रेड की रेटिंग; कहा – BUY करें, GST रेट कट से मिलेगा फायदा2025 में भारत की तेल मांग चीन को पीछे छोड़ने वाली है, जानिए क्या होगा असररॉकेट बन गया सोलर फर्म का शेयर, आर्डर मिलते ही 11% दौड़ा; हाल ही में लिस्ट हुई थी कंपनीटायर स्टॉक पर ब्रोकरेज बुलिश, रेटिंग अपग्रेड कर दी ‘BUY’; कहा-करेक्शन के बाद दौड़ेगा शेयरVeg and Non veg thali price: अगस्त में महंगी हुई शाकाहारी और मांसाहारी थाली

Opinion: चीन की भू-आर्थिक स्थिति में बदलाव और भारत

China economy growth: आर्थिक दिक्कतों के बीच चीन का बदलता भूराजनीतिक दृष्टिकोण भारत के साथ नई तरह की संबद्धता के द्वार खोलता है। विस्तार से बता रहे हैं श्याम सरन

Last Updated- February 19, 2024 | 9:26 PM IST
चीन की भू-आर्थिक स्थिति में बदलाव और भारत, China's geo-economic pivot

यह प्रतीत हो सकता है कि चीन जैसी बड़ी (फिलहाल करीब 17.52 लाख करोड़ डॉलर) अर्थव्यवस्था के लिए 2023 में हासिल 5.2 फीसदी की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर काफी कम है। उसने यह वृद्धि शून्य मुद्रास्फीति के साथ ऐसे समय हासिल की है जब अन्य विकसित एवं उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में मुद्रास्फीति बरकरार है।

यह सही है कि 2023 में चीन का निर्यात और आयात क्रमश: 4.6 फीसदी और 5.5 फीसदी कम हुए लेकिन देश अभी भी दुनिया की सबसे बड़ी कारोबारी शक्ति बना हुआ है और विश्व व्यापार में उसकी हिस्सेदारी करीब 15 फीसदी की है। इलेक्ट्रिक वाहन के क्षेत्र में वह दुनिया का अगुआ है। सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्र का करीब 60 फीसदी विनिर्माण जिसमें बैटरी शामिल हैं, चीन में होता है।

चीन आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के शोध और इस्तेमाल में अमेरिका के साथ अग्रणी देशों में शामिल है। चीन की अर्थव्यवस्था अल्पावधि और दीर्घावधि दोनों में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रही है। उसकी आर्थिक दिक्कतों का स्रोत परिसंपत्ति का संकट है जो लगातार बढ़ता जा रहा है। इसका असर घरेलू और बाहरी अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ रहा है।

कुल आर्थिक गतिविधियों में 30 फीसदी हिस्सेदारी और घरेलू संपत्ति में अहम हिस्सा रखने वाले इस क्षेत्र के संकट में पड़ने का असर वित्तीय स्थिरता पर पड़ना लाजिमी है। एक हालिया अध्ययन के मुताबिक चीन में पारिवारिक परिसंपत्ति का 70 फीसदी प्रॉपर्टी क्षेत्र में है। मकानों की बिक्री 2021 से अब तक 40 फीसदी कम हुई है और अचल संपत्ति क्षेत्र में 9.6 फीसदी की कमी आई है।

प्रॉपर्टी डेवलपरों में से दो-तिहाई बॉन्ड भुगतान से चूक गए हैं और उनमें सबसे बड़ी कंपनी एवरग्रांडे को हॉन्गकॉन्ग की एक अदालत ने संपत्तियों को नकदीकृत करने को कहा है। इसका संक्रमण अन्य प्रमुख डेवलपरों तक फैलने का खतरा है।

चीन का शेयर बाजार वहां के नागरिकों के लिए परिसंपत्ति निर्माण का एक अन्य स्रोत रहा है। हॉन्गकॉन्ग, शांघाई, शेनझेन और न्यूयॉर्क एक्सचेंजों में सूचीबद्ध चीनी कंपनियों के मूल्यांकन में 2021 से अब तक सात लाख करोड़ डॉलर की कमी आई। स्थानीय चीनी एक्सचेंजों में छह लाख करोड़ डॉलर से अधिक की कमी आई। एक और मुश्किल वाली बात यह सामने आई कि 40 साल में पहली बार वेतन पैकेज में 30 फीसदी कमी आई। भले ही यह अतिशयोक्ति लग रहा हो लेकिन इसके कारण संपत्ति का बहुत नुकसान हुआ जिसे उपभोक्ता मांग में कमी के रूप में देखा जा सकता है। अपस्फीति का जोखिम इसी वजह से उत्पन्न हुआ है।

प्रॉपर्टी के संकट के कारण स्थानीय सरकारों की वित्तीय स्थिति पर दबाव आया है। उनका कुल कर्ज जोखिम 13 लाख करोड़ डॉलर हो चुका है। स्थानीय सरकार को वित्तीय सहायता पहुंचाने वाले संस्थान जिनकी मदद से अधोसंरचना निर्माण को फंडिंग की जाती थी, वे अब डिफॉल्ट के कगार पर हैं। पांच में से चार ऐसी संस्थाएं बार-बार ब्याज भुगतान में चूक रही हैं। हाल ही में केंद्र की ओर से स्थानीय सरकारों को निर्देश दिया गया कि वे उन अधोसंरचनाओं में भी कटौती करें जो शुरू हो चुकी हैं।

आम अनुमान है कि केंद्रीय सरकार उन्हें उबार लेगी लेकिन वृहद वित्तीय स्थिति भी नाजुक है। चीन का कुल लंबित कर्ज फिलहाल जीडीपी के 272.15 फीसदी है। चीन जीडीपी वृद्धि की सम्मानजनक दर बरकरार रखे हुए है किंतु कर्ज के ऊंचे स्तर को निपटाने की कोशिश में जीडीपी वृद्धि धीमी हो सकती है। क्या चीन के प्रॉपर्टी क्षेत्र जैसे पारंपरिक वृद्धि स्रोतों में मंदी की भरपाई नई प्रौद्योगिकी से हो सकता है जिसमें चीन निर्विवाद अगुआ है? हालांकि निकट भविष्य में ऐसा होता नहीं जान पड़ता क्योंकि ये क्षेत्र अभी भी काफी छोटे आकार का है।

दीर्घकालिक प्रतिकूलताओं ने भी चीन की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाला है और शायद जनांकीय कारक इसमें सबसे अहम है। 1960 के दशक के बाद 2022 में पहली बार चीन की आबादी में गिरावट देखने को मिली। आबादी में 8.50 लाख की कमी आई। 2023 में गिरावट बढ़कर 20.8 लाख की हो गई। यह रुझान जारी रहने की संभावना है। कुछ आबादी विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2049 तक देश की श्रम योग्य आबादी में 27 करोड़ की कमी आ सकती है।

क्या एआई तथा रोबोटिक्स जैसी उन्नत प्रौद्योगिकी में चीन का भारी निवेश उसे अच्छी वृद्धि दर बनाए रखने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद करेगा जबकि आबादी में लगातार कमी आ रही है? इस दिशा में नीतिगत प्रतिबद्धता तय है और क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जा रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा है कि भविष्य की लड़ाई का मैदान प्रौद्योगिकी ही होगी और चीन को इस दिशा में अपने आपको मजबूत बनाए रखना होगा।

जीडीपी के प्रतिशत के रूप में चीन का शोध एवं विकास व्यय अब 2.5 फीसदी है जो अमेरिका से कम है लेकिन तेजी से उसकी ओर बढ़ रहा है। चीन की ओर से दी जाने वाली जानकारियों में निरंतरता की कमी है लेकिन अनुमान है कि 2020 में चीन का शोध एवं विकास व्यय 563 अरब डॉलर का था जो अमेरिका के 672 अरब डॉलर से कम था। यह चीन की आर्थिक वृद्धि बरकरार रखने में एक अहम व्यय होगा।

चीन ने बीते वर्षों के दौरान मजबूत वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता आधार बनाया है जो लगातार बढ़ रहा है। अगर अल्पावधि और मध्यम अवधि में आर्थिक विसंगतियां आती हैं तो भी यह वापसी करेगा। सवाल यह है कि क्या चीन मौजूदा आर्थिक ढांचे से नए ढांचे तक सहज बदलाव कर सकेगा?

इन बातों से भूराजनीति पर क्या असर होगा?

घरेलू आर्थिक चुनौतियों के कारण चीन का बाहरी आर्थिक कद प्रभावित होगा। यह बेल्ट ऐंड रोड पहल में नजर भी आने लगा है। इससे भारत के लिए यह संभावना बनती है कि वह उपमहाद्वीप में पड़ोसियों के साथ आर्थिक संबद्धता को मजबूत बनाए।

घरेलू और बाहरी आर्थिक चुनौतियां चीन को विवश कर रही हैं कि वह अपने कदम पीछे खींच कर रखे। इस बात को अमेरिका और चीन के रिश्तों में हालिया सुधार में भी देखा जा सकता है। ताइवान में स्वतंत्रता की ओर झुकाव रखने वाले दल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के दोबारा चुनाव को लेकर भी उसने खामोशी बरती। यूरोप और दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ भी उसका रुख दोस्ताना नजर आ रहा है।

चीन वैश्विक विकासशील देशों के अगुआ के रूप में अपनी छवि और भूमिका पर भी जोर दे रहा है जबकि पहले वह अमेरिका के समान महाशक्ति होने का दम भर रहा था। यह बात उसे भारत के साथ प्रतिस्पर्धा में डालती है क्योंकि वह भी वैश्विक विकासशील देशों का नेतृत्व करने की आकांक्षा रखता है। बदला हुआ भूराजनीतिक परिदृश्य भारत और चीन के बीच सामान्य रिश्तों की बहाली की संभावनाओं को नया जीवन दे सकता है। इस दिशा में सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा।

(लेखक पूर्व विदेश सचिव और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के मानद फेलो हैं)

First Published - February 19, 2024 | 9:26 PM IST

संबंधित पोस्ट