ओडिशा में हुए दशक के सबसे बड़े रेल हादसे ने भारतीय रेलवे की गलत प्राथमिकताओं की समस्या को एक बार फिर रेखांकित कर दिया है। वह समस्या है सुरक्षा और रखरखाव के बजाय वंदे भारत ट्रेन और बुलेट ट्रेन परियोजनाओं में निवेश को तरजीह देना।
यद्यपि अभी विस्तृत रिपोर्ट की प्रतीक्षा है लेकिन रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि ओडिशा के बालासोर में तीन रेलगाड़ियों की टक्कर की बुनियादी वजह थी इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम में खराबी।
इस खराबी की वजह से चेन्नई की ओर जा रही शालीमार-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस उसी ट्रैक पर खड़ी मालगाड़ी से टकरा कर बेपटरी हो गई। इस बीच विपरीत दिशा में चल रही एक अन्य सवारी गाड़ी यशवंतपुर-हावड़ा सुपरफास्ट ट्रेन बेपटरी हुए डिब्बों से भिड़ गई जिससे 275 लोगों की मौत हो गई और 1,100 से अधिक लोग घायल हो गए।
वैष्णव ने कहा कि गलत सिग्नल के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली गई है चीजों को पहले जैसा बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। ये प्रयास काफी देर से किए जा रहे हैं। सिग्नल देने की प्रणाली में खामियां नई नहीं हैं। पहले भी कई बार इन पर सवाल उठाए जा चुके हैं।
उदाहरण के लिए इस वर्ष फरवरी में ही रेलवे अधिकारियों ने एक अन्य जोन में सिग्नलिंग प्रणाली में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया था। मैसूरु के निकट संपर्क क्रांति एक्सप्रेस और एक माल गाड़ी के बीच टक्कर को लोको पायलट की सतर्कता की वजह से टालने में कामयाबी मिली थी क्योंकि उसने पाया था कि सवारी गाड़ी को गलत लाइन पर भेज दिया गया है। 2018 में दक्षिण भारत के मार्गों पर चलने वाले लोको पायलटों ने एक सप्ताह के भीतर सिग्नल प्रणाली में तीन गंभीर संकट उजागर किए थे।
इन सभी मामलों में एक्सप्रेस ट्रेनों को गलत मार्ग पर आगे बढ़ा दिया गया था। एक मामले में तो ट्रेन को क्रॉसिंग पार करने का सिग्नल दे दिया गया था जबकि वहां से वाहन गुजर रहे थे। इन मामलों में भी लोको पायलटों की सतर्कता के कारण समय रहते ट्रेनों को रोका जा सका था। जरूरी नहीं है कि तेज गति से चलने वाली ट्रेनों को हमेशा ऐसे समय पर रोक कर खतरा टाला जा सके। बालासोर हादसा भी ऐसी ही घटना का परिणाम है।
दुर्घटना के बाद से यह सवाल भी बार-बार उठ रहा है कि उस मार्ग पर ट्रेनों के बीच आमने-सामने की भिड़ंत रोकने के लिए बनी ‘कवच’प्रणाली क्यों नहीं स्थापित की गई थी। स्वदेश में विकसित यह चेतावनी प्रणाली न केवल लोको पायलट को समय रहते आसन्न भिड़ंत के बारे में जानकारी देती है बल्कि जब उसे लगता है कि उसी पटरी पर कोई और ट्रेन आ रही है तो वह एक खास दूरी पर रहते स्वत: ब्रेक लगा देती है।
इस प्रणाली का परीक्षण भी बहुत मंथर गति से हुआ है और दक्षिण मध्य रेलवे सिस्टम के दो सेक्शन में इसे परखा गया है। सुरक्षा और रखरखाव के अलावा अतीत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने एक गंभीर कमी की ओर इशारा किया था और वह यह कि भारत सरकार स्वदेश में विकसित उच्च गति वाली ट्रेनों की शुरुआत कर रही है और एक बुलेट ट्रेन परियोजना में करोड़ों रुपये की राशि मंजूर की गई है।
वंदे भारत ट्रेन निस्संदेह स्थानीय इंजीनियरिंग की सफलता हैं लेकिन विडंबना यह है कि 180 किलोमीटर प्रति घंटे की अपनी उच्चतम गति से कोसों दूर वे औसतन 83 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हैं। ऐसा आमतौर पर पटरियों की खराब स्थिति के कारण है। हालांकि मंत्री ने कहा है कि उनके लिए पटरियों को बेहतर बनाया जा रहा है।
यह मानना होगा कि 2016 के बाद से बड़ी दुर्घटनाओं में कमी आई है लेकिन बालासोर दुर्घटना एक चेतावनी है। हर रोज करीब 2.5 करोड़ लोग रेलों में सफर करते हैं। उनमें से कई देश के गरीब और मध्यवर्ग से ताल्लुक रखते हैं जो वंदे भारत जैसी महंगी ट्रेनों में सफर नहीं कर सकते। वे हवाई जहाज या बुलेट ट्रेन (जब वह शुरू हो जाएगी) में भी नहीं चल सकते। भारतीय रेल को उन्हें सुरक्षा की दृष्टि से आश्वस्त करना चाहिए।