इसमें कोई दो राय नहीं कि महामारी ने अर्थव्यवस्था, कंपनियों और आम लोगों पर भीषण दबाव डाला है। दुनिया के विभिन्न देशों में लॉकडाउन लगने और समाप्त होने के बीच बुरी बात यह है कि जब तक इस महामारी का कोई सुरक्षित और प्रभावी टीका सबके लिए उपलब्ध नहीं हो जाता तब तक हालात सामान्य होने की कोई सूरत नजर नहीं आती। ऐसे में टीके की तलाश को लेकर जो हड़बड़ी का माहौल है उसे समझा जा सकता है। इसके बावजूद इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए जो भी टीका बने उसका सुरक्षित और प्रभावी होना बहुत अहम है। यही कारण है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने विभिन्न चिकित्सा केंद्रों के बार 12 प्रमुख जांचकर्ताओं को जो चर्चित पत्र लिखा है उसने गहरी चिंता को जन्म दिया है। पत्र में आईसीएमआर के निदेशक बलराम भार्गव ने उन जांचकर्ताओं को निश्चयात्मक स्वर में निर्देशित किया है कि हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक द्वारा आईसीएमआर के साथ मिलकर विकसित किए जा रहे टीके के चिकित्सकीय परीक्षण की मंजूरी की प्रक्रिया को तेज करें। सर्वाधिक चिंतित करने वाली बात यह है कि टीके को पेश करने के लिए 15 अगस्त, 2020 की तारीख भी तय कर दी गई है जो अब बमुश्किल छह सप्ताह दूर है।
किसी भी मानक से छह सप्ताह में टीका पेश करने का बचाव नहीं किया जा सकता है, खासतौर पर तब जबकि उसका समुचित चिकित्सकीय परीक्षण तक नहीं हुआ हो। दुनिया भर में चल रही चर्चाओं के मुताबिक अगर जल्द से जल्द भी टीका बनता है तो इसके विकास में 12 से 18 महीने का वक्त लगेगा। अत्यधिक संसाधन झोंककर और लालफीताशाही को खत्म करके इस अवधि को थोड़ा कम किया जा सकता है। परंतु किसी भी टीके के परीक्षण के लिए लगने वाले समय में कमी नहीं की जा सकती। यह साबित होना जरूरी है कि टीका आबादी के विभिन्न आयु वर्ग के लिए, अलग बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए, बच्चों आदि के लिए नुकसानरहित है। इसके बाद इस टीके को लोगों के एक बड़े समूह को लगाया जाता है, साथ ही एक समूह ऐसा भी होता है जिसे टीका नहीं लगाया जाता। इससे इसका प्रभाव सामने आएगा। इस अंतिम चरण की गति तेज करना मुश्किल है क्योंकि ऐसे समूहों का वायरस के प्रसार के बीच सामान्य रूप से रहना आवश्यक है। अगर टीके को विश्व स्तर पर उपलब्ध कराना है तो यह सुनिश्चित करना और भी आवश्यक है कि यह मानकों पर खरा है। चूंकि मामला विश्व स्तर का है इसलिए जरा सी चूक त्रासद हो सकती है। स्पष्ट है कि आईसीएमआर द्वारा आरंभ में घोषित तिथि को किसी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
अब उसने स्पष्ट किया है कि वह केवल लालफीताशाही काम करने की बात कर रही थी। यह लक्ष्य बढिय़ा है। परंतु अगर केवल यही इरादा था तो इसमें 15 अगस्त की समय सीमा तय करने की क्या बात थी। इस तारीख की महत्ता को देखते हुए यह सवाल पूछना उचित है क्या एक विशुद्ध वैज्ञानिक काम में राजनीतिक निहितार्थ को शामिल किया जा रहा है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि ऐसा पत्र लिखने के मामले में आईसीएमआर का अधिकार क्या है। वह तो समुचित नियामक भी नहीं है। जो भी हो नियामक का निजी कंपनी के साथ मिलकर टीका बनाना उसे एक सक्रिय भागीदार बनाता है। ऐसे में सवाल यह है कि नियामक का नियमन कौन करेगा? भारतीय विज्ञान अकादमी ने पत्र की आलोचना करते हुए कहा है कि यह समय सीमा तय करना अतार्किक है। टीके की तलाश बहुत महत्त्वपूर्ण काम है और इसे ऐसे अपरिपक्व और राजनीतिक गोलमाल के हवाले नहीं किया जा सकता। यह तय करना होगा कि टीके की तलाश में समस्या कहीं और न बढ़ जाए।
