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क्वांटम तकनीक पर तेजी से बढ़ने की जरूरत

क्वांटम तकनीक के विकास और क्रियान्वयन के लिए ठोस नीतियों और स्पष्ट दिशा की जरूरत, नहीं तो भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता है।

Published by
Ajay Kumar   
Last Updated- October 18, 2024 | 11:03 PM IST

इस वर्ष 13 अगस्त का दिन क्वांटम तकनीक (टेक्नोलॉजी) के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण बन गया क्योंकि इसी दिन राष्ट्रीय मानक एवं तकनीक संस्थान (एनआईएसटी) ने पहले तीन पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी (पीक्यूसी) मानकों की घोषणा की। पीक्यूसी वह तकनीक है, जिसमें अल्गोरिदम का इस्तेमाल होता है और अहम जानकारी (डेटा) को अनधिकृत इस्तेमाल से बचाया जाता है।

इन मानकों की घोषणा के बाद दुनिया भर के प्रतिष्ठानों में इस तकनीक के इस्तेमाल का मार्ग प्रशस्त हो गया है। अब यह चिंता काफी हद तक दूर हो सकती है कि क्वांटम कंप्यूटरों के जरिये मौजूदा सुरक्षा उपायों (इन्क्रिप्शन प्रोटोकॉल) को तोड़ न दिया जाए और पूरा साइबर तंत्र खतरे में न पड़ जाए।

आज हम जिस डिजिटल दुनिया को देख रहे हैं, उसमें क्वांटम तकनीक भारी उथल-पुथल लाने वाली है। डिजिटल नवाचार के जरिये पिछले पांच दशकों में तेज बदलाव देखने के बाद अब हम क्वांटम तकनीक की मदद से और भी तेज बदलाव के साक्षी बन रहे हैं। बड़े बदलाव लाने की क्षमता वाली क्वांटम तकनीक उद्योग, अर्थतंत्र और सुरक्षा को अभूतपूर्व तेजी के साथ नई शक्ल देगी। इसलिए यह वैश्विक तकनीकी होड़ का केंद्र बन गई है और दुनिया के प्रमुख देश क्रांति लाने वाले इस क्षेत्र में वर्चस्व के लिए लड़ रहे हैं।

इस समय दो प्रमुख तकनीकी रुझान हैं, पीक्यूसी और क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन (क्यूकेडी)। पीक्यूसी में क्रिप्टोग्राफ वाले अल्गोरिदम तैयार किए जाते हैं, जिन पर क्वांटम हमलों का असर ही नहीं होता। मगर क्यूकेडी सुरक्षा उपाय पुख्ता करने के लिए क्वांटम मैकेनिक्स का इस्तेमाल करती है। इस बात पर एक राय नहीं है कि आगे जाकर दोनों में किसका वर्चस्व होगा।

दुनिया दो खेमों में बंट गई है: अमेरिका पीक्यूसी का हिमायती है मगर चीन और रूस क्यूकेडी पर दांव लगा रहे हैं। नवंबर 2023 में अमेरिका ने पहल करते हुए अपनी सभी संघीय एजेंसियों को सुरक्षा के लिए पीक्यूसी के इस्तेमाल का निर्देश दिया, जिसके बाद पीक्यूसी मानकों के विकास में तेजी आ गई। एनआईएसटी 2016 से इन मानकों पर काम कर रहा था और कुछ ही महीनों में उसने इन्हें तैयार कर दिया।

इस बीच रूस और चीन क्यूकेडी में आगे निकल रहे हैं। चीन ने 2017 में पेइचिंग और शांघाई के बीच 2,000 किलोमीटर लंबा क्यूकेडी-सिक्योर्ड ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क तैयार कर लिया जिसमें एक हॉप लगभग 100 किलोमीटर का था। हॉप संदेश (डेटा) भेजने वाले और इसे प्राप्त करने वाले पक्षों के बीच नेटवर्क पथ का एक हिस्सा होता है। भारत ने 2019 में 130 किलोमीटर का सिंगल-हॉप क्यूकेडी तैयार कर लिया। मगर जनवरी 2024 में चीन और रूस ने उपग्रह से जोड़कर क्यूकेडी तैयार किया, जिसने एक दूसरे से लगभग 3,800 किलोमीटर दूर स्थित मॉस्को और उरुमकी को जोड़ दिया।

भारत क्वांटम तकनीक में तेजी से आगे बढ़ रहा है। स्टार्टअप इकाइयां ऐसी तकनीक ला रही हैं, जो अमेरिकी और चीनी तकनीक को भी चुनौती देती है। भारतीय स्टार्टअप इकाइयों ने एनआईएसटी के अनुकूल पीक्यूसी तकनीक तैयार की हैं और 200 किलोमीटर सिंगल-हॉप सिस्टम सहित फाइबर के जरिये क्यूकेडी भी तैयार कर लिया है। अप्रैल 2003 में सरकार ने 6,000 करोड़ रुपये बजट वाले राष्ट्रीय क्वांटम अभियान को मंजूरी दी। इस अभियान का लक्ष्य क्वांटम कंप्यूटिंग, संचार, सेंसिंग और सामग्री से जुड़ा था। मगर इतनी प्रगति के बावजूद इन तकनीकों के व्यापक इस्तेमाल के लिए कोई स्पष्ट दिशा नहीं दिख रही है।

इसके लिए बजट के साथ ठोस नीतिगत ढांचा भी चाहिए। इस ढांचे के मुख्य बिंदुओं में एक दूसरे के साथ कामकाज सुगम बनाना और गुणवत्ता सुनिश्चित कराने के लिए अनिवार्य मानकों की स्थापना तथा बाजार में इन्हें बढ़ावा देने के लिए सरकारी खरीदारी भी शामिल हैं। ये उपाय निजी क्षेत्र की दिलचस्पी बढ़ा सकते हैं और ज्यादा मजबूत तथा नवाचार पर चलने वाला तंत्र तैयार करने में मददगार हो सकते हैं।

उभरती तकनीकों की प्रगति देखने, संसाधन आवंटित करने और उन पर लगातार नजर रखने के लिए क्रियान्वयन की स्पष्ट रणनीति तैयार करने में भी सरकार की अहम भूमिका है। इससे शुरुआती नीतिगत उपाय अच्छी तरह लागू करने और निर्बाध एवं भविष्य की तरफ सटीक एवं स्थायी कदम बढ़ाने में मदद मिलेगी। मोदी सरकार का इस क्षेत्र में प्रदर्शन सराहनीय रहा है।

देश में ‘आधार’ की शुरुआत 2009-10 में हो गई थी मगर इसका व्यापक इस्तेमाल और इसके जरिये पहचान का तत्काल सत्यापन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार के समय ही हो पाया। इसी तरह यूपीआई को सफल एवं लोकप्रिय बनाने एवं इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया और डिजिटल तकनीक से अनभिज्ञ लोगों को प्रशिक्षित किया।

किंतु अंतरिक्ष क्षेत्र में उलटा उदाहरण दिखता है। इसे निजी क्षेत्र एवं स्टार्टअप इकाइयों के लिए खोलने का सरकार का 2020 का फैसला बहुत बड़ा सुधार था मगर शुरुआत में नाकाम रहा। इसमें तेजी अक्टूबर 2022 में आई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीनगर में एक रक्षा प्रदर्शनी में अंतरिक्ष से संबंधित 75 रक्षा उत्कृष्टता नवाचार (आईडेक्स) अभियान शुरू किए। मजबूत आईडेक्स ढांचे से अंतरिक्ष स्टार्टअप तंत्र को बढ़ावा मिला है और इससे सशस्त्र सेनाओं की आवश्यकताओं का आकलन करने में मदद मिलती है। इससे पता चलता है कि बड़े सरकारी सुधारों के साथ क्रियान्वयन रणनीति भी चलनी चाहिए।

पीक्यूसी और क्यूकेडी अहम हैं और दोनों को बढ़ावा देने के लिए जांच नियमावली एवं गुणवत्ता मानक तैयार करने चाहिए। सरकार को इनकी खरीद में तेजी लानी चाहिए ताकि महत्त्वपूर्ण डिजिटल ढांचे की क्वांटम से सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। मिसाल के लिए वह 2026 की समयसीमा तय कर सकती है। हमारा स्टार्टअप तंत्र खासा मजबूत है, इसलिए भारत इनका इस्तेमाल जल्दी शुरू कर सकता है। आईडेक्स के अंतर्गत एक स्टार्टअप इकाई के 200 किलोमीटर सिंगल-हॉप क्यूकेडी सॉल्यूशन को प्रमाणन हासिल करने में दो साल से ज्यादा लग गए। तेजी से दौड़ती दुनिया में इतना समय लगना समझ से परे हैं। होड़ में बने रहने के लिए हमें तकनीक को तुरंत अपनाना होगा।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग शोध एवं विकास में अग्रणी है लेकिन क्वांटम तकनीक के व्यापक क्रियान्वयन के लिए आरऐंडी से बड़े दायरे वाली व्यवस्था चाहिए। क्वांटम तकनीक को हमेशा अनुसंधान का हिस्सा माना जाता रहा मगर इस समय वह मंत्रालय के प्रमुख प्रदर्शन मानकों के दायरे से बाहर है। यह अंतर पाटने के लिए सरकार इस तकनीक के इस्तेमाल की गति तेज करने तथा इस पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय को सौंपने की सोच सकती है। इससे देश भर में इसका इस्तेमाल अधिक तालमेल के साथ हो पाएगा।

भारत को अपनी स्टार्टअप इकाइयों की शुरुआती सफलता का फायदा उठाते हुए क्वांटम तकनीक को बढ़ावा देने के लिए देर किए बगैर अधिक मजबूत नीतिगत ढांचा तैयार करना चाहिए। सरकार ने अब तक क्वांटम शोध के इस्तेमाल एवं क्रियान्वयन में सराहनीय मदद की है मगर इसे अपनाने एवं इसके क्रियान्वयन का स्पष्ट ढांचा नहीं होने पर देश वैश्विक होड़ में पीछे छूट सकता है। (लेखक रक्षा सचिव रह चुके हैं एवं आईआईटी कानपुर में अतिथि प्राध्यापक हैं)

First Published : October 18, 2024 | 11:03 PM IST