सभी फंड प्रबंधकों का यही लक्ष्य होता है कि वे निवेशकों को बेहतर रिटर्न मुहैया कराएं लेकिन लंबी अवधि के दौरान कुछ ही फंड प्रबंधक लगातार इस लक्ष्य को हासिल कर पाते हैं। निवेश की जाने वाली राशि पर मिलने वाले रिटर्न को कई कारक प्रभावित करते हैं। इनमें फंड प्रबंधकों का कौशल भी शामिल है।
बहरहाल, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) जो देश का सबसे बड़ा सेवानिवृत्ति फंड है और जिसके लिए संगठित क्षेत्र के कर्मचारी अपने मासिक वेतन का एक हिस्सा योगदान राशि के रूप में देते हैं, वह निरंतर उन्हें बेहतर रिटर्न देता आया है।
उदाहरण के लिए वर्ष 2024-25 में उसने 8.25 फीसदी का रिटर्न घोषित किया जबकि इसी वर्ष 10 वर्ष के सरकारी बॉन्ड पर औसत यील्ड 6.86 फीसदी रही। चूंकि ईपीएफओ सरकारी बॉन्ड में भी बड़े पैमाने पर निवेश करता है इसलिए उसके निवेश पर मिलने वाला रिटर्न ऐसे बॉन्ड पर मिलने वाले ब्याज से बहुत अधिक नहीं होना चाहिए। दोनों के बीच के अंतर की भरपाई इक्विटी निवेश पर होने वाले लाभ से पूरी होती है। जाहिर है कि यह कोई टिकाऊ मॉडल नहीं है। इक्विटी बाजारों में रिटर्न डेट बाजार की तुलना में कहीं अधिक अस्थिर होता है।
जैसा कि इस समाचार पत्र ने इस वर्ष के आरंभ में प्रकाशित भी किया था, ईपीएफओ ने भारतीय रिजर्व बैंक से कहा था कि वह उसकी निवेश रणनीति और फंड प्रबंधन व्यवहार की समीक्षा करे। इसके अलावा भी कुछ सुझाव मांगे गए थे। ईपीएफओ सेवानिवृत्ति फंड के प्रबंधन के अलावा कई अन्य संस्थानों द्वारा ऐसे निवेश का नियमन भी करता है। यह एक तरह से हितों का टकराव उत्पन्न करता है।
जानकारी के मुताबिक रिजर्व बैंक ने कई अनुशंसाएं की हैं। इनमें आधुनिक पोर्टफोलियो प्रबंधन व्यवहार को अपनाना भी शामिल है। ईपीएफओ ने अब यह निर्णय किया है कि वह रिजर्व बैंक की अनुशंसाओं के अध्ययन के लिए एक समिति गठित करेगा। समिति में रिजर्व बैंक प्रतिनिधियों के अलावा, वित्त मंत्रालय तथा श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल होंगे तथा अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष से इन सुझावों को लागू किया जाएगा।
ईपीएफओ करीब 25 लाख करोड़ रुपये मूल्य के सेवानिवृत्ति फंड का प्रबंधन करता है या उसे संभालता है। देश की श्रम शक्ति के और अधिक औपचारिक स्वरूप पाने के साथ ही इसमें बहुत तेजी से इजाफा होगा। ऐसे में यह अहम है कि फंड्स का प्रबंधन अधिक पेशेवर और पारदर्शी ढंग से किया जाए। विशेषज्ञ समिति से उम्मीद होगी कि वह सभी पहलुओं पर गौर करे वहीं ईपीएफओ अपने फंड का एक हिस्सा पेशेवर परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों के जरिये निवेश करने पर विचार कर सकता है। इससे न केवल रिटर्न में सुधार होगा बल्कि जोखिम में विविधता लाने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा यह भी महत्त्वपूर्ण होगा कि रिटर्न निवेश किए गए फंड के वास्तविक प्रदर्शन पर आधारित हो न कि राजनीतिक आधार पर तय हो।
ईपीएफओ को अपने अंशधारकों को यह भी स्पष्ट रूप से बताना होगा कि निवेश पर मिलने वाले रिटर्न बाजार की परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं और इनमें उतार-चढ़ाव हो सकता है। चूंकि ईपीएफओ सेवानिवृत्ति के धन का प्रबंधन करता है, इसलिए उससे अपेक्षा की जाती है कि वह लंबे समय तक स्थिर रिटर्न प्रदान करे। इसी कारण यह मुख्य रूप से ऋण साधनों, विशेष रूप से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करता है। चूंकि यह दीर्घकालिक रूप से धन का प्रबंधन करता है, इसलिए यह अपेक्षाकृत अधिक रिटर्न देने वाले दीर्घकालिक बॉन्ड में भी निवेश कर सकता है। रिटर्न सुधारने के उद्देश्य से, यह अपने कोष का एक छोटा हिस्सा सूचकांक निधियों के माध्यम से इक्विटी में भी निवेश कर रहा है।
इक्विटी निवेश में दीर्घकालिक नजरिया अपनाना चाहिए। केवल इस कारण से निवेशकों को निश्चित रिटर्न देने के लिए लाभ बुक नहीं किए जा सकते क्योंकि इसे लंबे समय तक बनाए रखना संभव नहीं है। इसके बजाय, ईपीएफओ अपने अंशधारकों को इक्विटी घटक चुनने का विकल्प दे सकता है। ऐसे विकल्पों को इस उद्देश्य के साथ डिजाइन किया जा सकता है कि दीर्घकालिक स्थिरता के साथ रिटर्न में सुधार हो सके।
अंशधारकों को व्यापक शर्तों के तहत विकल्पों के बीच परिवर्तन करने की सुविधा भी दी जा सकती है। कुल मिलाकर, यह तथ्य कि ईपीएफओ ने आरबीआई से सुझाव मांगे, यह दर्शाता है कि निधियों के प्रबंधन के तरीके में सुधार की आवश्यकता और इच्छा दोनों मौजूद हैं। इसे पारदर्शिता बढ़ाने, पेशेवर निधि प्रबंधन को बढ़ावा देने और दीर्घकालिक रिटर्न को बेहतर बनाने के उद्देश्य से बदलावों को लागू करना चाहिए।