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सरकार को लोगों के करीब लाने की दरकार

वर्ष 2047 तक भारत को विकसित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए, स्थानीय शासन को अधिक शक्ति देना महत्त्वपूर्ण है और 16 वां वित्त आयोग इस संबंध में अहम भूमिका निभा सकता है। बता रहे हैं अजय छिब्बर

Last Updated- April 24, 2023 | 8:42 PM IST
Need to bring the government closer to the people
इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा

भारत अगले 25 वर्षों में विकसित अर्थव्यवस्था बनने की तैयारी कर रहा है, इस दिशा में बड़ी छलांग लगाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि सरकार को स्थानीय स्तर पर शासन कार्यों का हस्तांतरण करना होगा। विकसित अर्थव्यवस्थाओं की एक विशेषता यह होती है कि इसमें स्थानीय शासन के स्तर पर राजस्व और जिम्मेदारियों का भारी आवंटन किया जाता है।

इनमें प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, बुनियादी कानून व्यवस्था और नागरिक बुनियादी ढांचा जैसे कि नाले, जल आपूर्ति, सड़क का रखरखाव और स्थानीय स्तर पर जोन तैयार करना और नियमन आदि शामिल हैं। 16 वें वित्त आयोग का गठन किया जा रहा है और इसका उपयोग इस बदलाव के लिए एक योजना तैयार करने के लिए किया जा सकता है। निश्चित रूप से इस कदम की मदद से संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधनों को भी मजबूती से लागू किया जा सकता है, जिसका उद्देश्य स्थानीय शासन को सशक्त बनाना था।

भारत की राज्य और स्थानीय स्तर पर खर्च की हिस्सेदारी, कुल खर्च के 60 प्रतिशत पर है जो विकास के स्तर पर काफी अधिक है। 14 वें वित्त आयोग ने संसाधनों के विभाज्य पूल हिस्से का लगभग 10 प्रतिशत राज्य के स्तर पर अंतरित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप इसकी कुल हिस्सेदारी 42 प्रतिशत हो गई। 15 वें वित्त आयोग ने मूल रूप से विभाज्य पूल हिस्सेदारी बनाए रखी थी लेकिन जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने पर इसके लिए भी प्रावधान करना था इसलिए इसने 1 प्रतिशत वापस रखा और राज्यों के लिए 41 प्रतिशत छोड़ दिया।

नतीजतन, राज्य और स्थानीय स्तर पर किया जाने वाला खर्च जो 2013-14 में लगभग 50 प्रतिशत था, वह बढ़कर कुल सरकारी खर्च का लगभग 60 प्रतिशत हो गया। हालांकि अन्य बड़े संघीय व्यवस्था वाले देश कम खर्च करते हैं।

ब्राजील राज्य और स्थानीय स्तर पर लगभग 50 प्रतिशत, जर्मनी 46 प्रतिशत, अमेरिका लगभग 40 प्रतिशत और इंडोनेशिया लगभग 35 प्रतिशत खर्च करता है। केवल कनाडा और चीन ही इन स्तरों पर करीब 70 प्रतिशत से अधिक खर्च करते हैं। दुनिया भर में राज्य और स्थानीय स्तर के खर्च को देखें तो इसमें भारत की हिस्सेदारी अधिक है।

14वें वित्त आयोग ने केंद्र से राज्यों को शक्ति स्थानांतरित करने की पहल की लेकिन इससे कोई मदद नहीं मिली। लखनऊ, पटना, या मुंबई में खर्च करने के लिए अधिक पैसा उपलब्ध होने से वास्तव में इन राज्यों के लोगों को मदद नहीं मिलती है अगर यह सरकार से स्थानीय स्तर तक नहीं पहुंचता है।

केंद्र से राज्यों को शक्ति हस्तांतरण का प्रस्ताव लगभग एक दशक पहले 14 वें आयोग ने दिया था और से 15 वें वित्त आयोग ने इसे स्वीकार भी कर लिया था तो अब केंद्र से राज्यों को सत्ता हस्तांतरण करने की प्रक्रिया बदली नहीं जा सकती है क्योंकि अब बहुत देर हो चुकी है।

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सत्ता के वास्तविक हस्तांतरण के लिए, अब पूरा ध्यान पंचायतों और महापौरों जैसे स्थानीय संस्थानों को अधिक संसाधन मुहैया कराने के तरीके सुनिश्चित करने पर होना चाहिए जैसा कि 13 वें वित्त आयोग के अध्यक्ष विजय केलकर ने 2019 में सुखमय चक्रवर्ती व्याख्यान में भी कहा था। इसके बिना, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, स्वच्छ भारत, स्मार्ट सिटी जैसी भारत की कई महत्त्वाकांक्षी योजनाएं कागज पर महज एक भव्य डिजाइन की तरह बनी रहेंगी, लेकिन उनके क्रियान्वयन में बाधा आती रहेगी।

उदाहरण के तौर पर स्थानीय स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती और उनकी निगरानी के लिए अधिक अधिकार मिले बिना, शिक्षकों की अनुपस्थिति की समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता है, भले ही हम अपनी शिक्षा नीति और पाठ्यक्रम का कितना ही आधुनिकीकरण क्यों न कर लें। इसी तरह, कई स्मार्ट सिटी परियोजनाएं शहर के महापौरों की अक्षमता से बाधित हो रही हैं क्योंकि वे योजना में अपना योगदान देने में सक्षम नहीं हैं।

बेहतर क्रियान्वयन के अलावा, सरकारी कर्मचारियों, शिक्षकों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की भर्ती करने की लागत भी घट जाती है यदि भर्ती, राज्य स्तर की तुलना में स्थानीय प्रशासन के स्तर पर की जाती है। इसके अलावा एक ही समय में सेवाएं देने की लागत में सुधार होने के साथ ही इसे अधिक प्रभावी और निगरानी योग्य बनाया जा सकता है।

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आगे भारत को स्थानीय शासन की हिस्सेदारी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो बहुत कम है। भारत का स्थानीय सरकारी खर्च, कुल सरकारी खर्च के 4 प्रतिशत से भी कम है। यह हिस्सा अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत कम है लेकिन यह चीन जैसी केंद्रीकृत सत्ता वाली सरकार की तुलना में भी बहुत कम है, जहां स्थानीय सरकारी खर्च, सरकार द्वारा किए जाने वाले कुल खर्च के 50 प्रतिशत से अधिक है।

हालांकि चीन इसमें सबसे अलग है लेकिन अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह हिस्सेदारी भारत की तुलना में बहुत अधिक है। यूरोपीय संघ के 28 देश स्थानीय स्तर पर 23.2 प्रतिशत खर्च करते हैं जबकि कनाडा 21 प्रतिशत और अमेरिका 29 प्रतिशत खर्च करता है। लैटिन अमेरिका में स्थानीय शासन का खर्च लगभग 12.7 प्रतिशत है और अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि यह बहुत अधिक होना चाहिए।

यदि भारत को 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अपना रास्ता तैयार करना है तो उसे राज्य-स्तरीय खर्च को स्थानीय सरकारों तक अधिक हस्तांतरण के लिए एक योजना तैयार करनी होगी और अधिक मात्रा में स्थानीय सरकारी राजस्व जुटाने के मौके तैयार करने होंगे।

स्थानीय शासन को भी अपने संसाधन जुटाने की अनुमति दी जानी चाहिए। ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका संपत्ति करों और उपयोगकर्ता शुल्क में वृद्धि की अनुमति देना है। भारत में संपत्ति कर की दर बहुत कम है जो इसके कुल कर राजस्व का लगभग 0.5 प्रतिशत है और सकल घरेलू उत्पाद के महज 0.1 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है।

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OECD देश औसतन, संपत्ति कर के तहत कुल कर राजस्व का लगभग 5.6 प्रतिशत (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.9 प्रतिशत) ही संग्रह कर पाते हैं, वहीं द​क्षिण कोरिया 15.1 प्रतिशत और अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा उच्चतम स्तर पर 11-12 प्रतिशत से अधिक संपत्ति कर संग्रह करते हैं। ब्रिक्स देशों में चीन संपत्ति करों के माध्यम से अपने राजस्व का लगभग 10 प्रतिशत संग्रह करता है जबकि रूस और दक्षिण अफ्रीका 4 से 5 प्रतिशत के बीच संपत्ति कर संग्रह करते हैं।

संपत्ति करों को नजरअंदाज करना सबसे मुश्किल है और अनुचित रूप से पंजीकृत संपत्तियों के लिए भी इसका भुगतान किया जाना चाहिए। शायद इसी वजह से उनके कर संग्रह की लागत भी अपेक्षाकृत कम है और वे आमदनी नहीं बल्कि संपत्ति पर कर लगाते हैं।

उच्च स्तर की संपत्ति करों से जुड़ी आपत्तियों जैसे कि कम आय वाले बुजुर्ग मालिकों से वसूली जाने वाली संपत्ति कर आदि पर विभिन्न नियमों के माध्यम से नियंत्रण किया जा सकता है जिससे बुजुर्गों को छूट मिल जाती है।

कई विकसित देशों में संपत्ति करों के अलावा, स्थानीय सरकार के उपयोग के लिए राजस्व जुटाने के मकसद से नगरपालिका स्तर की आय और व्यावसायिक करों का भी उपयोग किया जाता है। लेकिन भारत में, स्थानीय शासन के लिए राजस्व जुटाने का सबसे आसान तरीका आवास और वाणिज्यिक संपत्ति पर संपत्ति कर लगाना ही होगा जो पूरे राज्य में एकसमान रूप से लागू होता है।

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15 वें वित्त आयोग ने राज्यों को अनुदान दिया है, बशर्ते वे अपनी संपत्ति कर दरों को अद्यतन करते हुए कर संग्रह में सुधार करें। इस तरीके का उपयोग स्थानीय सरकारी संसाधनों को बढ़ाने के लिए 16वें वित्त आयोग द्वारा दर बढ़ाने पर चर्चा करने के लिए किया जा सकता है।

जिम्मेदारियों और संसाधनों को स्थानीय शासन के स्तर पर अंतरित करने का काम रातोरात नहीं किया जा सकता है। इसके लिए स्थानीय शासन की सेवाओं की वितरित करने की क्षमता में सुधार करने की आवश्यकता होगी जो अब राज्य सरकारों के माध्यम से की जा रही हैं, लेकिन इसके लिए एक योजना तैयार की जानी चाहिए। यदि भारत को 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बनाना है तो 16वां वित्त आयोग इस चर्चा को शुरू करने के लिए एक अच्छा मंच साबित होगा।

(लेखक इक्रियर में सीनियर विजिटिंग प्रोफेसर हैं और जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनैशनल इकनॉमिक पॉलिसी में विजिटिंग स्कॉलर हैं)

First Published - April 24, 2023 | 8:42 PM IST

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