संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के 75वें वर्ष में बहुत कम लोग ऐसे हैं जो बहुपक्षीयता का झंडा बुलंद कर रहे हैं। मैं पहले भी कह चुका हूं कि कोविड-19 महामारी के बाद इस बात की काफी संभावना है कि विभिन्न देश अपने-अपने स्तर पर सिमट जाएं और किसी विषय को लेकर व्यापक मोलतोल की गुंजाइश बहुत सीमित हो जाएगी। परंतु इन बातों के बावजूद अंतराष्ट्रीय सहयोग अभी भी असंभव नहीं है। हम अभी भी संसाधनों को एकजुट करके भविष्य की ऐसी आपदाओं के खिलाफ सामूहिक बचाव के लिए प्रयास कर सकते हैं जिनसे हम सभी बचना चाहते हैं। इसके लिए हमें एक वैश्विक रिस्क पूलिंग फंड बनाने की आवश्यकता है।
विश्व बैंक के मुताबिक कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों को जो नुकसान पहुंचा है, उसके चलते दुनिया भर में करीब 6 करोड़ लोग भीषण गरीबी के भंवर में उलझ जाएंगे। वैश्विक उत्पादन में इस वर्ष 5 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है। इससे हमने गरीबी कम करने में पिछले तीन वर्ष के दौरान जो भी लाभ हासिल किए हैं वे सभी शून्य हो जाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) दो माध्यमों से आपातकालीन वित्तीय सहायता मुहैया करा रहा है। तीव्र ऋण सुविधा के तहत वह रियायती दरों पर ऋण मुहैया करा रहा है ताकि कम आय वाले देशों को भुगतान संतुलन में मदद की जा सके। 20 मई तक वह 22.04 अरब डॉलर का ऋण दे चुका था। सन 2015 में इबोला वायरस के आक्रमण के बाद स्थापित आपदा रोकथाम एवं राहत न्यास भी प्राकृतिक आपदाओं और जन स्वास्थ्य संकट से जूझ रहे सर्वाधिक गरीब देशों को कर्ज राहत के लिए अनुदान दे रहा है। 20 मई तक उसने 229.31 अरब डॉलर की राशि प्रदान की थी। विश्व बैंक समूह की योजना है कि अगले 15 महीनों में करीब 160 अरब डॉलर की राशि गरीब देशों की मदद पर खर्च किए जाएं। इसमें से 50 अरब डॉलर की राशि अत्यधिक रियायती ऋण के रूप में दी जाएगी। जी20 समूह ने भी कदम उठाया: उसने 1 मई से प्रभावी होने वाली व्यवस्था के तहत गरीब देशों के लिए द्विपक्षीय सरकारों के ऋण पुनर्भुगतान को सन 2020 के अंत तक स्थगित कर दिया।
बहुपक्षीय संस्थानों की प्रक्रिया हालांकि त्वरित है लेकिन यह कई कारणों से अपर्याप्त भी है। उदाहरण के लिए आईएमएफ ने जो कर्ज राहत दी है उसकी मात्रा बहुत कम है। जी20 ने कर्ज चुकता करने को फिलहाल स्थगित करने का जो निर्णय दिया है उसमें भी ब्याज भुगतान एकत्रित होता जाएगा और अगले वर्ष कर्ज का बोझ इस वर्ष से कहीं अधिक होगा। जी 20 ने जहां निजी कर्जदारों से यह आग्रह किया है कि वे इस पहल में हिस्सा लें वहीं यह स्वैच्छिक है और लगता नहीं कि कोई इसमें हिस्सा लेगा। इसके अलावा आईएमएफ के ऋण और अनुदान हालांकि सॉवरिन रेटिंग और मुद्रा अवमूल्यन की दृष्टि से आवश्यक हैं लेकिन वे किसी आपदा के कारण हुए समूचे नुकसान को कवर नहीं करते। इतना ही नहीं, महामारी, अत्यधिक खराब मौसम, सूखा और फसल खराब होने जैसी आपदाओं की स्थिति में बिना बीमा बचाव के सुधार होना मुश्किल नजर आता है।
विश्व बैंक का महामारी बॉन्ड अंतरराष्ट्रीय विकास महासंघ के देशों को 13.25 करोड़ डॉलर की राशि देगा। यह उस 14.1 करोड़ डॉलर की राशि तक से कम है जो विंबलडन को महामारी बीमा से मिलेगी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और वित्तीय तथा बीमा जगत इसे लेकर कैसे प्रतिक्रिया देगा? दुनिया के सबसे गरीब और संवेदनशील देशों के सामने मौजूद जोखिमों से निपटने के क्रम में रिस्क पूलिंग व्यवस्था से बात बन सकती है। यहां तक कि सबसे अमीर देश भी बड़ी आपदाओं की स्थिति में वित्तीय संसाधनों और संस्थागत क्षमताओं की कमी के शिकार हो सकते हैं। जब ऐसे संकट बार-बार सामने आते हैं या कई आपात परिस्थितियां एक साथ उभरती हैं तो भौतिक और वित्तीय संसाधनों पर इतना अधिक दबाव बन सकता है जो उन्हें नष्ट भी कर सकता है।
अगर एक वैश्विक रिस्क पूलिंग रिजर्व फंड की स्थापना की जाए तो वह विभिन्न देशों को पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी झटकों का प्रबंधन करने में मददगार साबित हो सकता है। वैश्विक स्तर पर विभिन्न संवेदनशील समुदायों के लिए आंशिक रूप से या पूरी तरह नदारद बीमा सुरक्षा ढांचे के पूरी तरह नदारद होने की स्थिति में वैश्विक रिजर्व फंड तीन आधार पर टिका होगा। पहला, विभिन्न देशों के समक्ष अलग-अलग तरह की चुनौती होती है। कुछ क्षेत्रों में तटीय तूफानों का जोर रहता है तो अन्य जगहों पर सूखे और गर्म थपेड़ों का। कई अन्य स्थानों पर समुदायों को खेती में ज्यादा नुकसान हो सकता है या फिर संभव है कि वे नई संक्रामक बीमारियों को लेकर अधिक जोखिम में हों। जोखिम की पूलिंग करके विभिन्न देशों के लिए जोखिम कम किया जा सकता है।
दूसरी बात, रिजर्व फंड से भुगतान करने में शुरुआत में जनता के पैसे की आवश्यकता नहीं होगी। रिजर्व फंड का सांकेतिक पूंजीकरण भी किसी देश के आईएमएफ के समक्ष स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (एसडीआर) के स्वैच्छिक आवंटन मात्र से हो सकता है। पहले ही करीब 500 अरब डॉलर के एसडीआर जारी करने की मांग हो रही है ताकि विकासशील देशों को नकदी संकट से बचाया जा सके। फंड का इस्तेमाल आपदा के खास स्तर तक बढ़ जाने के बाद ही किया जाएगा। स्तर को मापने के लिए विकासशील देशों के बीच जलवायु जोखिम मानचित्र तैयार किया जा सकता है। इससे बिना सरकारी बजट पर बोझ डाले एक नया वित्तीय तंत्र तैयार किया जा सकता है।
तीसरी बात, रिजर्व फंड एक शुरुआती नुकसान मानकर चलेगा लेकिन वह अपने जोखिम का काफी हिस्सा मौजूदा बाजार बीमा उपायों के हवाले कर देगा। रिजर्व फंड कई बड़ी बीमा कंपनियों और गरीब देशों के बीच पुल का काम करेगा। जोखिम को बहुपक्षीय विकास बैंकों और राष्ट्रीय विकास वित्त संस्थानों के जरिये भी बांटा जा सकता है। घटे हुए और बेहतर आकलित जलवायु जोखिम प्रोफाइल का लाभ लिया जा सकता है। विकास वित्त संस्थान इसका इस्तेमाल अपने पोर्टफोलियो के भीतर स्थायी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की लागत कम करने में कर सकते हैं।
सन 1945 के सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में जहां संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी, उस समय हुआ जब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था। हम नई सामूहिक प्रतिक्रिया के लिए तमाम संकटों के समाप्त होने की प्रतीक्षा नहीं कर सकते। मानव सुरक्षा और ग्रहीय सीमाएं जोखिम में हैं। हमें भीषण जोखिम के खिलाफ बहुपक्षीयता को आगे करना होगा ताकि मानव अस्तित्व के लिए जोखिम बन रही आपदाओं को रोका जा सके। आज बहुपक्षीय व्यवस्था की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है लेकिन हम शुरुआत कर सकते हैं।
(लेखक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवॉयरनमेंट ऐंड वाटर के सीईओ हैं)