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पूर्वी लद्दाख मसले पर अभी और स्पष्टता जरूरी

सेना के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि जिन इलाकों से पहले ही सेना हट चुकी है और बफर जोन बन चुका है वहां कोई बदलाव नहीं हुआ है।

Last Updated- November 10, 2024 | 9:50 PM IST
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मई और जून 2020 में चीन के सीमा सुरक्षा बल के हजारों जवान और पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के हजारों सैनिक तिब्बत और शिनझियान की हाड़ कंपाती सर्दी से निकले और पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को लांघकर पांच अलग-अलग इलाकों में भारतीय जमीन पर काबिज हो गए।

उत्तर से दक्षिण तक फैले ये इलाके थे देपसांग का मैदान, गलवान नदी घाटी, गोगरा-हॉट स्प्रिंग, पैंगॉन्ग सो और देमचॉक। चीन से दुनिया भर में कोविड-19 ले जानेवाले कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से रोज की गश्त रोक चुकीं भारतीय टुकड़ियां हैरत में पड़ गईं।

गश्त नहीं होने का फायदा ही चीन ने उठाया और लद्दाख में घुसपैठ कर डाली। जब तक देश की उत्तरी कमान अपने आरक्षित जवानों को लद्दाख भेजकर पीएलए को रोकती बड़ी संख्या में चीनी जवान भारतीय इलाके में घुसपैठ कर चुके थे। उनकी मदद के लिए तोपखाने और टैंक भी पीछे थे।

भारतीय गश्ती दलों को रोकने के लिए चीन के सैनिकों ने हिंसा का सहारा लेना शुरू कर दिया। 15 जून 2020 को ऐसी ही एक तीखी झड़प हुई, जिसमें 20 भारतीय जवान मारे गए और मारे गए चीनियों की संख्या का तो पता ही नहीं चला। 1975 के बाद पहली बार भारत-चीन सीमा पर झड़प में सैनिकों की जान गई थी। भारत को प्रतिक्रिया देने में समय लगा और 42 टन वजनी टी-90 टैंक समेत तोप आदि को अग्रिम पंक्ति पर भेजा गया जहां उन्हें कई जगह चीन की सेना के सामने तैनात किया गया।

इन बातों को लद्दाख की भौगोलिक स्थिति के साथ रखकर देखा जाना चाहिए। उस समय अखबारों की सुर्खियों में लिखा जा रहा था कि हिमालय में भारत-चीन आमने सामने हैं। उन्हें नहीं पता था कि जिन चौकियों पर यह घटना हुई थी, वे काराकोरम पर्वत श्रृंखला में थीं, हिमालय में नहीं। इसी तरह लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ तिब्बत पठार पर भारत के कब्जे वाले छोटे से हिस्से पर हुई। उस संघर्ष और झड़प के चार वर्ष बाद तक भारत और चीन कूटनीतिक संवाद में रहे।

इसके अलावा दोनों पक्षों के वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के बीच 21 दौर की बातचीत हुई। सैन्य स्तर पर होने वाली चर्चाओं को ही सेनाओं के पीछे हटने का श्रेय दिया जा रहा है। पहले गलवान घाटी और उसके बाद गोगरा- हॉट स्प्रिंग इलाके से दोनों पक्षों के जवान पीछे हटे। इसके बाद पेगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे से सैनिक हटे। बहरहाल, चीन के सैनिक देपसांग और देमचॉक में भारतीय जवानों के सामने अड़े हुए हैं।

अक्टूबर के आखिरी 10 दिनों में भारत का विदेश मंत्रालय यह संकेत देता रहा कि भारत के लगातार दबाव में चीन वह करने को तैयार हो गया है जिसके बारे में वह अब तक चर्चा तक करने से इनकार कर रहा था, यानी-देपसांग और देमचॉक से सैनिकों की वापसी। अगर चीन देपसांग और देमचॉक पर समझौता कर लेता है तो पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा विवाद का हल संभव हो जाएगा।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने घोषणा की थी कि बीते कुछ सप्ताहों के दौरान गहन कूटनीतिक और सैन्य वार्ताओं के परिणामस्वरूप एलएसी पर गश्त को लेकर समझौता हुआ है। इसके नतीजे में ही सेनाओं के पीछे हटने और समझौते की घटना घटी।

बहरहाल, भारत ने घोषणा की है कि देपसांग और देमचॉक के लिए चीन-भारत समझौता हो गया है लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय या राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय की ओर से ऐसा बयान नहीं आया है। गुरुवार 24 अक्टूबर को चीन के रक्षा मंत्रालय ने एक वक्तव्य में संकेत दिया कि बातचीत अभी जारी रहेगी। उसने स्वीकार किया कि चीन और भारत मतभेद कम करने और गतिरोध समाप्त करने के लिए सैनिकों को हटाने पर कुछ सहमत हुए हैं।

चीन ने कहा कि दोनों देश ‘जल्द ही’ स्वीकार्य समझौते पर पहुंचने के लिए बातचीत जारी रखेंगे। रविवार 27 अक्टूबर को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुंबई में कहा कि बातचीत अभी शुरुआती चरण में ही है।

उन्होंने कहा, ‘हमने फैसला किया है कि अधिक तनाव वाली जगहों पर गश्त नहीं की जाएगी। यानी वर्तमान समझौते के तहत हम अगले चरण पर ध्यान देंगे और बात करेंगे कि सीमा को संभाला कैसे जाए। सारे विवाद हल नहीं हुए हैं लेकिन हम पहले दौर में पहुंच गए हैं।’ उन्होंने कहा कि भारत जल्द ही एलएसी के इलाके में गश्त दोबारा शुरू करेगा।

भारतीय सेना और सरकार से आ रहे वक्तव्यों और घोषणाओं की बात करें तो दोनों में प्रकट आशावाद के स्तर में अंतर है। बेहतर होगा कुछ प्रश्न किए जाएं ताकि इस अंतर को समझा जा सके।

पहला, क्या अप्रैल 2020 के पहले की यथास्थिति पूरी तरह बहाल कर दी गई है, खास तौर पर टकराव वाले इलाके देपसांग और देमचॉक में? भारतीय सेना के मुताबिक मंगलवार को सेना के हटने का काम शुरू हुआ और अगले दिन पूरा कर लिया गया। भारतीय सेना के सूत्रों के अनुसार इन इलाकों में गश्त अक्टूबर 2024 के आखिर तक शुरू हो जानी थी। देखना होगा कि क्या ऐसा हुआ या फिर जयशंकर की बात ही सही है कि बातचीत अभी प्रारंभिक स्तर पर है। सवाल यह है कि सच क्या है?

दूसरा, सेना के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि जिन इलाकों से पहले ही सेना हट चुकी है और बफर जोन बन चुका है वहां कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसका स्पष्ट अर्थ है कि गलवान, पैन्गॉन्ग सो, पीपी15 और पीपी17ए, गोगरा और हॉट स्प्रिंग में बफर जोन बने ही हुए हैं। ऐसे में यह दावा कितना सही है कि अप्रैल 2020 की स्थिति बहाल कर दी गई है क्योंकि उस वक्त तो इन क्षेत्रों में भारतीय सेना गश्त लगाती थी। जाहिर है अब वह स्थिति नहीं रह गई है।

तीसरा, चीन की सरकार ने साफ कहा है कि पीएलए द्वारा पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ की एक अहम वजह है भारत द्वारा एलएसी पर बुनियादी ढांचा खास तौर पर दरबुक-श्यॉक-दौलत बेग ओल्डी (डीएस डीबीओ) जैसी अहम सड़कें तैयार करना, जो मध्य लद्दाख में पैंगॉन्ग सो झील के इलाके को काराकोरम दर्रे जैसी सामरिक रूप से अहम जगह से जोड़ती हैं। सरकार को इस अहम प्रश्न का उत्तर देना चाहिए कि क्या उसने बुनियादी ढांचा निर्माण पर किसी रोक को स्वीकार किया है या उन्हें किसी तरह चीन के बुनियादी ढांचा विकास से जोड़ दिया है?

आखिर में सरकार को गश्त पर प्रतिबंधों के बारे में भी स्पष्ट बताना चाहिए कि क्या उसने भारत और चीन की गश्त के दौरान गतिरोध से बचने के लिए किसी तरह के प्रतिबंध स्वीकार किए हैं?

First Published - November 10, 2024 | 9:50 PM IST

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