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मॉनिटरी ट्रांसमिशन का नया तरीका: उधारी में सफलता का रोडमैप

आरबीआई ने फरवरी में ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू किया था और अप्रैल और जून में भी यह जारी रहा और फिर अगस्त में थमा

Last Updated- September 04, 2025 | 11:25 PM IST
Bond Yield

विभिन्न परिपक्वता अवधि वाले सभी बॉन्ड (सरकारी प्रतिभूतियां, राज्य विकास ऋण और कॉरपोरेट बॉन्ड) पर यील्ड बढ़ती जा रही हैं। इसके साथ, सरकारी प्रतिभूतियों और एसडीएल एवं कॉरपोरेट बॉन्ड के बीच यील्ड का अंतर (स्प्रेड) भी बढ़ता जा रहा है।खबरों के अनुसार पिछले सप्ताह कम से कम दो कंपनियों आवासीय एवं शहरी विकास निगम लिमिटेड (हुडको) और बजाज फाइनैंस लिमिटेड ने बाजार से रकम जुटाने की योजना ठंडे बस्ते में डाल दी क्योंकि यील्ड उनके हिसाब से काफी अधिक हो गई थीं। बॉन्ड बाजार के मौजूदा हालात पर विचार करने से पहले हम यह समझ लेते हैं ऐसे हालात आखिर क्यों बने हैं।

जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति 1.55 फीसदी बढ़ी जो पिछले 8 वर्षों की सबसे सुस्त बढ़ोतरी थी। खुदरा मुद्रास्फीति लगातार पांचवें महीने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लक्ष्य 4 फीसदी (2 प्रतिशत घट-बढ़) से नीचे रही। वर्ष 2019 के बाद यह पहला अवसर था जब खुदरा मुद्रास्फीति आरबीआई के लक्ष्य से नीचे ही सिमट कर रह गई। आरबीआई ने फरवरी और जून के बीच रीपो दर 6.5 फीसदी से घटाकर 5.5 फीसदी कर दी। केंद्रीय बैंक द्वारा नकद आरक्षी अनुपात में 1 फीसदी कटौती का फैसला 6 सितंबर से शुरू होने वाले पखवाड़े में प्रभावी हो जाएगा। इस कटौती से बैंकिंग प्रणाली में 2.5 लाख करोड़ रुपये आ जाएंगे। आदर्श रूप में इस तरह की पृष्ठभूमि में बॉन्ड यील्ड में कमी आनी चाहिए जिससे ट्रेजरी प्रबंधकों को खुश होना चाहिए। मगर ट्रेजरी कार्यालयों में बॉन्ड डीलरों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं। वे सभी अपने नुकसान की भरपाई करने में जुटे हैं।

गत 26 अगस्त को 10 साल की अवधि के सरकारी बॉन्ड पर यील्ड कारोबार के दौरान 6.65 फीसदी तक पहुंच गई और बाद में 6.60 फीसदी पर बंद हुई। चालू वित्त वर्ष में यह यील्ड सबसे अधिक है। इससे पहले 26 मार्च को यील्ड 6.60 फीसदी पर पहुंची थीं। उस समय यह 6.645 फीसदी तक पहुंच गई थी मगर 6.60 फीसदी पर बंद हुईं। उल्लेखनीय है कि मार्च के अंतिम सप्ताह में नीतिगत दर 6.25 फीसदी थी और वित्तीय प्रणाली में नकदी की कमी लगभग 20,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी। फिलहाल नीतिगत दर 5.5 फीसदी है और 26 अगस्त को वित्तीय प्रणाली में 1.78 लाख करोड़ रुपये अधिशेष नकदी थी।

आरबीआई ने फरवरी में ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू किया था और अप्रैल और जून में भी यह जारी रहा और फिर अगस्त में थम गया। पहले दो अवसरों पर केंद्रीय बैंक ने 25 आधार अंक और जून में 50 आधार अंक की कटौती की थी। कुछ दूसरे आंकडे भी हैं। 10 वर्ष की अवधि के बॉन्ड पर यील्ड बढ़ रही है मगर अल्प अवधि के ट्रेजरी बिल (बॉन्ड) पर इसमें कमी आ रही है। अब 26 मार्च और 26 अगस्त के रुझान पर विचार करते हैं। 26 मार्च को 91 दिन और 180 दिन के ट्रेजरी बिल पर यील्ड 6.52 फीसदी थी जबकि 364 दिन के ट्रेजरी बिल पर यील्ड 6.47 फीसदी थी। 26 अगस्त को 91 दिन की अवधि के ट्रेजरी बिल पर यील्ड कम होकर 5.484 फीसदी, 180 दिन के बिल पर 5.575 फीसदी और 364 दिन के बिल पर 5.60 फीसदी रह गईं। ओवरनाइट इंटरबैंक कॉल मनी रेट कम होकर 26 अगस्त को 5.49 फीसदी रह गई जो 26 मार्च को 6 31 फीसदी थी।

दूसरे शब्दों में कहें तो नीतिगत दर में कटौती का प्रभाव अल्प अवधि में महसूस किया जाता है मगर दीर्घ अवधि के बॉन्ड पर यह नहीं दिखता है। बॉन्ड कारोबार में इसे बीयर स्टीपनिंग कहते हैं। यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें दीर्घ अवधि की ब्याज दरें अल्प अवधि की ब्याज दरों की तुलना में तेजी से बढ़ती हैं जिससे यील्ड कर्व अधिक हो जाता है। यील्ड कर्व बॉन्ड पर यील्ड या ब्याज को दर्शाता है जिनकी क्रेडिट गुणवत्ता समान होती है लेकिन परिपक्वता तिथियां अलग-अलग होती हैं।

6 जून को नीतिगत दर में कमी के बाद 10 वर्ष की अवधि के बॉन्ड की कीमत 101.64 रुपये पहुंच गई थी मगर बाद में 100.67 पर बंद हुई। 26 अगस्त को इसकी कीमत कम होकर 97.77 रुपये रह गई। यील्ड और बॉन्ड की कीमत एक दूसरी के विपरीत चलती है। अब आप समझ गए होंगे कि बॉन्ड डीलर क्यों मायूस दिख रहे हैं।

दीर्घ अवधि के बॉन्ड पर यील्ड में बढ़ोतरी एक दूसरी कहानी है। एक दूसरी अहम बात सरकारी प्रतिभूतियों और एसडीएल एवं कॉरपोरेट बॉन्ड पर यील्ड में बढ़ता अंतर है। 29 अगस्त को कारोबार बंद होने पर सरकारी प्रतिभूतियों और एसडीएल एवं कॉरपोरेट बॉन्ड पर स्प्रेड 68 आधार अंक था। दरों में कटौती के मौजूदा दौर में 6 फरवरी को हुई पहली कटौती के दिन सरकारी प्रतिभूतियों एवं एसडीएल के बीच स्प्रेड 40 आधार अंक था। सरकारी प्रतिभूतियों एवं कॉरपोरेट बॉन्ड का स्प्रेड 55 आधार अंक था। 6 जून को दरों में हुई आखिरी कटौती के दिन सरकारी प्रतिभूतियों और एसडीएल के बीच स्प्रेड 42 आधार अंक और सरकारी प्रतिभूतियों और कॉरपोरेट बॉन्ड के बीच 66 आधार अंक था।

ये आंकड़े मांग-आपूर्ति में असंतुलन की तरफ इशारा कर रहे हैं। बाजार में बिक्री के लिए अधिक बॉन्ड मौजूद हैं मगर इनकी मांग सुस्त पड़ती जा रही है। बैंकों को यील्ड बढ़ने के बीच बॉन्ड खरीदने में कोई लाभ नजर नहीं आ रहा है। बाजार को भी लग रहा है कि ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला समाप्त हो गया है। 29 अगस्त तक केंद्र सरकार की सकल उधारी 6,38,000 करोड़ रुपये थी जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 6,00,607 करोड़ रुपये रही थी। जहां तक एसडीएल की बात है तो इनके जरिये इस साल अब तक 3,79,310 करोड़ रुपये जुटाए गए हैं जबकि पिछले साल इसी अवधि तक 3,03,394 करोड़ रुपये जुटाए गए थे। शुद्ध उधारी में भी यह रुझान दिख रहा है। यह ऐसा समय है जब बड़े पेंशन फंड बॉन्ड बाजार से दूर रह रहे हैं और शेयरों पर दांव खेल रहे हैं। अब उन्हें शेयरों में अपने कोष के 15 फीसदी के बजाय 25 फीसदी तक निवेश करने की अनुमति मिल गई है।

एक आंकड़ा मोटे तौर पर सरकारी बॉन्ड में बैंकों की दिलचस्पी कम होने का इशारा कर रहा है। चालू वित्त वर्ष में 8 अगस्त तक बैंकिंग प्रणाली ने जमा के रूप में 8,93,287 करोड़ रुपये जुटाए हैं। इस अवधि के दौरान बैंकों ने 3,62,069 करोड़ रुपये ऋण आवंटित किए हैं। बैंकों ने सरकारी प्रतिभूतियों में मात्र 51,536 करोड़ रुपये निवेश किए हैं। पिछले साल इसी अवधि में यह निवेश 2,22,255 करोड़ रुपये था।

अंत में बड़ा सवाल यह है कि ये आंकड़े आखिर क्या संकेत दे रहे हैं? केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ब्याज दरों में 1 फीसदी अंक कटौती का लाभ नहीं मिला है। बाजार से रकम जुटाने वाली कंपनियों को भी कोई खास फायदा नहीं मिला है। उनके लिए उधारी पर लागत बढ़ गई है। हां, यह जरूर है कि बैंकों से ऋण लेने वाली कंपनियों को लाभ हुआ है क्योंकि ऐसे ऋणों पर ब्याज बाहरी मानक जैसे रीपो दर या एक साल के ट्रेजरी बिल से जुड़े हैं। इन पर ब्याज में कमी आई है। कई बैंकों ने अपनी कोष आधारित उधारी की सीमांत लागत दर घटा दी है।

मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि केंद्रीय बैंक के पास मौद्रिक प्रसार यानी उसका लाभ ज्यादा प्रभावी तरीके से पहुंचाने और सरकार के उधारी कार्यक्रमों को सफल बनाने की योजना मौजूद है। बेशक, जून तिमाही में रियल जीडीपी में 7.8 फीसदी वृद्धि आगे ब्याज दरों में कमी की उम्मीद पर पानी फेर चुकी है। बाजार जून में हुई मौद्रिक नीति समीक्षा में रुख में हुए बदलाव पर अब नाखुशी का इजहार भी नहीं कर सकता।


(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)

First Published - September 4, 2025 | 11:18 PM IST

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