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सिलिकन वैली बैंक के झटके से मुमकिन है उबरना

सकंट समाधान के उपाय फेड, वेंचर कैपिटल, बैंक के प्रबंधन और खुद सिलिकन वैली में ही हैं मौजूद हैं। बता रहे हैं श्याम पोनप्पा

Last Updated- April 11, 2023 | 8:51 PM IST
emphasis on sustainability
इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती

करीब डेढ़ दशक पहले 2008 में लीमन ब्रदर्स के ढहने के बाद अब सिलिकन वैली बैंक का पतन इसलिए महत्त्वपूर्ण घटना है कि यह उस क्षेत्र में अहम भूमिका निभाता था, जो नवाचार और उत्पादकता से भरपूर है और पूरी दुनिया के लिए नवाचार लाता है। बैंक के पतन से यह सवाल खड़ा हो गया है कि रचनात्मक रुख अपनाने से इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है या नहीं।

सैद्धांतिक तौर पर बैंक उन ग्राहकों के बल पर चलते हैं, जो अपनी जमा राशि का एक हिस्सा ही निकालते हैं। मगर हकीकत ज्यादा पेचीदा है, जहां ग्राहक म्युचुअल फंडों से या शेयरों, बॉन्डों तथा दूसरी संपत्तियों में सीधे निवेश कर ज्यादा रिटर्न पाने की कोशिश करते हैं। फिर भी बैंकिंग भरोसे पर चलती है, जहां लोगों को लगता है कि जब चाहेंगे अपनी रकम निकाल सकते हैं।

सिलिकन वैली बैंक संकट ने इस धारणा को हिला दिया है। बैंक के पतन की शुरुआत तकनीकी कंपनियों के संस्थापकों और अग्रणी वेंचर कैपिटल (वीसी) फंड प्रबंधकों के सिलिकन वैली सोशल मीडिया नेटवर्कों में बदहवासी फैलने से हुई। सिलिकन वैली बैंक का कारोबारी मॉडल टिकाऊ नहीं था और उसमें तरलता की गंभीर समस्याएं थीं।

यह आम तौर पर सिलिकन वैली के वीसी और उनके ग्राहकों (सभी तकनीकी एवं जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप में से लगभग आधे) का ही पसंदीदा बैंक था। इसने रेहन वाले दीर्घकालिक बॉन्डों में निवेश किया था। प्रौद्योगिकी कंपनियों को जबरदस्त मुनाफे के कारण 2021 में बैंक में जमा राशि बहुत बढ़ गई और इसने 2022 में इसने करीब 80 अरब डॉलर कम प्रतिफल वाले बॉन्डों में लगा दिए। इससे बॉन्डों में सिलिकन वैली बॉन्ड का कुल निवेश 90 अरब डॉलर से ऊपर चला गया।

जब ब्याज दरें कम थीं तब तो यह उसके लिए फायदेमंद रहा मगर दरें बढ़ते ही मुश्किल शुरू हो गईं। फेडरल रिजर्व ने अप्रैल, 2022 से अभी तक दरों में कुल 4.5 फीसदी का इजाफा कर दिया। जुलाई 2022 में उसने सिलिकन वैली बैंक को चेतावनी भी दीं, जिन्हें अनसुना कर दिया गया।

इस बीच प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सुस्ती के कारण ग्राहकों ने निकासी की और ब्याज दर के प्रति संवेदनशील बॉन्डों का मूल्य भी घट गया। चूंकि बॉन्ड में परिपक्व होने तक निवेश किया गया था, इसलिए सिलिकन वैली बैंक ने इस नुकसान को तब तक नजरअंदाज किया, जब तक मूडीज ने डाउनग्रेड करने की चेतावनी नहीं दी।

मूडीज की चेतावनी सुनते ही सिलिकन वैली बैंक हरकत में आ गया। उसने 21 अरब डॉलर कीमत के बॉन्ड घाटा उठाकर भी बेचने की योजना बनाई ताकि रकम को ऊंचे रिटर्न वाली संपत्तियों में दोबारा निवेश किया जा सके। साथ ही उसने घाटे की भरपाई के लिए शेयर बेचकर 1.75 अरब डॉलर जुटाने की योजना भी बनाई। बॉन्ड 1.8 अरब डॉलर का घाटा उठाकर बेचे गए।

इस योजना और प्रस्तावित शेयर बिक्री के कारण मूडीज ने मामूली डाउनग्रेड किया मगर 9 मार्च को जब बाजार खुले तो शेयर बिक्री की तैयारी पूरी नहीं थी। सिलिकन वैली बैंक ने जिस समय घाटे और प्रस्तावित शेयर बिक्री की घोषणा की उसी समय दिवालिया हो चुके बिटकॉइन एक्सचेंज एफटीएक्स से जुड़े बैंक सिल्वरगेट कैपिटल के बंद होने की बुरी खबर भी आई।

सिलिकन वैली बैंक का शेयर बुरी तरह पिट गया और उसी दिन कुछ वेंचर कैपिटल फंडों तथा उनके ग्राहकों ने 42 अरब डॉलर निकालने की कोशिश की। कैलिफोर्निया के बैंकिंग नियामक ने सिलिकन वैली बैंक बंद कर दिया और फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन को रिसीवर बना दिया। सिलिकन वैली बैंक, वीसी और स्टार्टअप का पूरा तंत्र खुद इन भीतरी लोगों ने बरबाद कर दिया।

बाजार अगर उबर पाया तो भी उसे उबरने में कई वर्ष लग जाएंगे। इस बीच सिलिकन वैली बैंक के पतन के बाद हर जगह स्टार्ट-अप के सामने पहले से बहुत सख्त शर्तें रखी जा रही हैं।

वेंचर कैपिटल फंडों के एक समूह की कोशिशों ने उम्मीद बनाए रखी है। जनरल कैटलिस्ट के हेमंत तनेजा की कोशिशों से सिकोया कैपिटल, एक्सेल पार्टनर्स, न्यू एंटरप्राइजेज वेंचर्स, खोसला वेंचर्स, क्लाइनर पर्किंस, बिसेमर और लाइट स्पीड जैसे बड़े नामों समेत करीब 700 वीसी फंडों ने सिलिकन वैली बैंक या उसके उत्तराधिकारी को उबारने में मदद की बात कही है।

यदि वे नियामक और सरकार के साथ मिलकर बेहतर तरलता और जोखिम प्रबंधन वाला कोई समाधान निकालने में सफल रहे तो एक ही क्षेत्र के ज्यादा ग्राहक होने के बाद भी विचारों को उत्पादों और सेवाओं में बदलने की सिलिकन वैली बैंक की बेमिसाल क्षमता फिर खड़ी हो सकती है। फेड जांच कर रहा है कि गड़बड़ कहां हुई और उसकी रिपोर्ट 1 मई तक सार्वजनिक होने की संभावना है।

इन घटनाओं से इस बात को बल मिलता है कि संकट के समय मुक्त बाजारों में धारणाओं और यथार्थ में नियमों, कायदों, सरकारों तथा सरकार प्रायोजित क्षमताओं पर निर्भरता के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। दुनिया भर में वाणिज्यिक कारण हों, राजनीतिक कारण हों, आपदा हों, दंगे हों या युद्ध हों, यह बात हर जगह सही साबित होती है।

इससे इस धारणा पर भी सवाल खड़ा होता है कि बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाएं प्रचलित तरीकों वाले नियामकीय बोझों के बगैर भी चल सकती हैं क्योंकि तकनीकी विकास के कारण किसी तरह की मध्यस्थता की जरूरत नहीं रह गई है और बात सामाजिक हितों को ध्यान में रखे बगैर मुनाफा कमाने तक ही सीमित हो गई है। ट्रंप प्रशासन में नियमों का हल्का होना और ढिलाई बढ़ना इसका उदाहरण है।

नियामकीय जरूरतें

अमेरिकी और भारतीय बैंकिंग नियामकों में कई तरह के बदलावों की जरूरत है। इनका मकसद सीमाओं का उल्लंघन होने पर माफ करना या नरमी बरतना नहीं होना चाहिए बल्कि हल निकालना चाहिए और सख्त दंड के जरिये नैतिक पतन होने ही नहीं देना चाहिए। जरूरत के हिसाब से नियंत्रण लागू करने की जरूरत है।

मौजूदा तरीके जैसे मंदी के लिए फेड का स्ट्रेस टेस्ट दरों में तेजी से बढ़ोतरी के कारण पैदा हो रही समस्याओं का शायद नहीं पहचान सके। संकट को टालना ही लक्ष्य होना चाहिए। सिलिकन वैली बैंक के मामले में नियामक समय रहते ब्रिज फाइनैंसिंग यानी अंतरिम तौर पर कर्ज का इंतजाम कर सकता था और प्रबंधन में बदलाव कर सकता था या अनुकूल वेंचर कैपिटल फंडों अथवा निवेशकों को उसमें शामिल कर सकता था।

यह अमेरिका की ढिलाई बरतने या हाथ झाड़ लेने की उस प्रवृत्ति के खिलाफ है, जिसके तहत वह प्रतिभूतियों को परिपक्वता तक निवेश बनाए रखने या बिक्री के लिए उपलब्ध होने की श्रेणी में अपनी मर्जी से रखने और उनकी श्रेणी बदल देने की छूट देता है।

इसका मतलब है कि सख्त नियंत्रण होने पर भी ब्याज दर से जुड़े जोखिम छिपे रह सकते हैं। इसके बजाय सभी प्रतिभूतियों के लिए ब्याज दर बेमेल, संपत्ति वृद्धि अथवा क्षरण और उससे संबंधित जोखिम प्रबंधन कारकों जैसे वेरिएबल्स का पता लगाने वाला व्यावहारिक, नियम आधारित सॉफ्टवेयर अपवाद रिपोर्ट के जरिये समस्याओं की चेतावनी दे सकता है।

प्रबंधन और नियामक लगातार जांच-पड़ताल के जरिये समस्याओं का पता लगाने के बजाय यह काम कर सकते हैं। बेमेल, संपत्ति में कृत्रिम बढ़ोतरी और इसी तरह की समस्याओं का पता लगाने के लिए प्रतिभूतियों को मार्क-टु-मार्केट करने के पारंपरिक तरीकों के बजाय यही काम प्रतिभूतियों और कर्जों के सबंध में ऑटोमेटेड, नियम आधारित उपायों के जरिये किया जा सकता है। रियल एस्टेट ऋणों के मामले में बड़े और कई ऋणों के लिए इक्विटी भागीदारी बढ़ाई जा सकती है।

डिजिटल ऑटोमेशन का स्तर अधूरा होना भारत में समस्या है। उदाहरण के लिए सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक की प्रकाशित सामग्री में डेटाबेस में ढूंढने योग्य भाषा और आंकड़ों के बजाय अक्सर टेक्स्ट की तस्वीर, पीडीएफ या संख्यात्मक दस्तावेज होते हैं। नियमित अंतराल पर आने वाली इन रिपोर्टों को अक्सर संकलित ही नहीं किया जाता, जिससे सिलसिलेवार जानकारी निकालने के लिए बार-बार शुरू से अंत तक जाना पड़ता है।

चेतावनी देने और सिलिकन वैली बैंक के पतन जैसी स्थितियों से बचने के लिए नियंत्रण लागू करना, पहल करना और सॉफ्टवेयर अलर्ट तैयार करना संभव है।

First Published - April 11, 2023 | 8:51 PM IST

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