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क्या पश्चिम का महान ‘खुलापन’ प्रयोग विफल हो रहा है?

डॉनल्ड ट्रंप ने अप्रवासन पर एक दशक पहले जो मुहिम छेड़ी थी क्या वह वास्तव में सफल होती दिख रही है? इस पर मंथन कर रहे हैं

Last Updated- July 02, 2025 | 10:49 PM IST
Illegal Immigrants
प्रतीकात्मक तस्वीर

पश्चिमी देशों का खुलेपन का महान प्रयोग क्या समाप्त हो रहा है? पूरे पश्चिमी जगत में, यूरोप, उत्तरी अमेरिका और यहां तक कि जापान में भी, विदेशी छात्रों, शोधकर्ताओं, कामगारों और शरणार्थियों को अपने यहां स्वीकार करने की अब उतनी तत्परता नहीं दिख रही है जितनी सिर्फ पांच साल पहले थी। आखिर इस रुझान के पीछे क्या कारण हो सकते हैं और दुनिया के लिए इसका क्या अर्थ है? इस महीने अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के राजनीतिक करियर की शुरुआत को एक दशक पूरा हो जाएगा ऐसे में खुलेपन के सिद्धांत से इतर पश्चिमी देशों की सीमाएं बंद होने की शुरुआत क्या उनकी प्रमुख उपलब्धि है?

ट्रंप के अतिवादी स्वभाव और उनकी खतरनाक बयानबाजी की वजह से आव्रजन क्षेत्र में उनके कदम सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। यह उचित भी हो सकता है क्योंकि यही ट्रंप के राजनीतिक करियर का आधार रहा है। जब वे जून 2015 में अपनी न्यूयॉर्क की बिल्डिंग से नीचे उतरे और घोषणा की कि वे राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं तब उन्होंने मेक्सिको के आप्रवासियों को अपराधी और बलात्कारी बताकर तुरंत एक विवादास्पद स्थिति पैदा कर दी। उन्होंने कहा, ‘वे अपने प्रतिभाशाली लोगों को नहीं भेज रहे हैं।’

ऐसी बयानबाजी अमेरिका की राजनीति में पहले कभी नहीं सुनी गई थी जिसके कारण मुख्यधारा के अधिकांश दक्षिणपंथी लोगों ने उन्हें एक उम्मीदवार के रूप में खारिज कर दिया। हालांकि उनके इसी तरह के संदेश ने उनका समर्थन आधार भी लगातार बढ़ाया है। इस मुद्दे ने ही उन्हें एक आक्रामक अभियान चलाने की गुंजाइश दी जिसकी बदाैलत उन्होंने एक-एक करके मुख्यधारा के हर रिपब्लिकन को चुनावी दौड़ से बाहर कर दिया।

पिछले साल यानी 2024 में, जब वह उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के खिलाफ एक बहस हारते हुए नजर आ रहे थे तो उन्होंने शरणार्थियों पर छोटे शहर ओहायो के बिल्लियों और कुत्तों को खाने का आरोप लगाकर मामले को और तूल दे दिया, जहां उन्हें रखा गया था। यह बात पूरी तरह गलत थी और इसका व्यापक रूप से मखौल भी उड़ाया गया लेकिन इसने यह भी सुनिश्चित किया कि उन्हें इस तरह की बहस से ऐसी सुर्खियां मिलती रहें जो उनके समर्थन आधार को बढ़ा सकती थीं। इस दशक के दौरान उनकी बयानबाजी और भी चौंकाती रही है। पिछले अभियान में उन्होंने आप्रवासियों पर अमेरिका के ‘खून में जहर घोलने’ का आरोप लगाया।

राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने ऐसे कई कदम उठाए हैं जिनके कारण अमेरिका में अब वैसे लोगों के लिए एक मुश्किल और शत्रुतापूर्ण माहौल बनता दिख रहा है जो अमेरिकी लोगों जैसे नहीं दिखते। बिना वर्दी और मास्क पहने आव्रजन एजेंट अंधाधुंध लोगों को सड़कों से उठा रहे हैं और उन्हें बिना उचित प्रक्रिया के सेंट्रल अमेरिका की जेलों में डाला जा रहा है। यह कार्रवाई निश्चित रूप से उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं।

इस अखबार ने हाल ही में संपादकीय में बताया है कि ट्रंप ने जन्मजात नागरिकता के बिंदु को भी खत्म करने का विकल्प चुना है जिससे वह यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि भविष्य में आने वाले (या अतीत के)आप्रवासियों के अमेरिका में जन्मे बच्चों पर भी ऐसी ही कार्रवाई हो सकती है।

हालांकि इससे भी कुछ बुरा होने की संभावना बन सकती है। ट्रंप के सलाहकार और उनकी रिपब्लिकन पार्टी के कुछ लोग अमेरिकी नागरिकों के नागरिकता अधिकारों को भी छीनना चाहते हैं। तकनीकी रूप से, कानून में ‘नागरिकता से वंचित करने’ की एक प्रक्रिया मौजूद है, जिसका उद्देश्य शीत युद्ध के दौरान रूसी जासूसों को देश से बाहर रखना था। इसके मुताबिक यदि अभियोग पक्ष का वकील यह साबित कर सके कि जासूस ने अपने आवेदन पत्र पर झूठ बोला था तब विचाराधीन कम्युनिस्ट विध्वंसक, अमेरिकी नागरिकता के संरक्षण का दावा नहीं कर सकता था। (इसका अंदाजा आवेदन पत्र के उन अजीब सवालों की व्याख्या से हो सकता है जिनमें पूछा जाता था कि क्या आप कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं या थे।)

ट्रंप के कुछ करीबी लोगों ने इस कानून की क्षमता पहचानी है और वे बड़े पैमाने पर निर्वासन के लिए इसका दुरुपयोग कर सकते हैं। पहले से ही, एक रिपब्लिकन कांग्रेस प्रतिनिधि ने न्यूयॉर्क शहर के मेयर पद के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जोहरान ममदानी के खिलाफ इसका इस्तेमाल करने की अपील की है जो बचपन से ही एक अमेरिकी नागरिक हैं। जिसने भी अमेरिकी नागरिक बनने से पहले अपने राजनीतिक विचार व्यक्त किए हैं, उन पर सैद्धांतिक रूप से ‘आतंकवाद के समर्थन के बारे में जानबूझकर गलतबयानी करने या तथ्यों को छिपाने’ में लिप्त होने का दावा किया जा सकता है, जैसा कि ममदानी पर भी आरोप लग रहे हैं।

इस बीच, विदेशी छात्रों और शोधकर्ताओं पर नकेल कसी जा रही है। जिन विश्वविद्यालयों ने सरकार का विरोध किया है उनकी फंडिंग रोक दी गई है और विदेशियों को दाखिला देने का उनका अधिकार छीना जा रहा है जैसे कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी। यदि आप संबंधित वीजा के लिए आवेदन कर रहे हैं तब आपको अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट को सार्वजनिक करना होगा और अमेरिकी अधिकारियों को वीजा पाने के इच्छुक व्यक्ति की सोशल मीडिया पर पोस्ट खंगालने की अनुमति होगी ताकि अंदाजा मिले कि उसने मौजूदा प्रशासन को नापसंद होने वाले पोस्ट किए गए हैं या नहीं। सबसे अजीब बात यह है कि ऐसी कहानियां भी फैल रही हैं कि अमेरिका की यात्रा करने वाले भी ईमेल, मीम्स या उनके फोन पर चैट की गलत व्याख्याओं के आधार पर पूछताछ, हिरासत में लिए जाने या निर्वासित किए जाने की जद में आ रहे हैं।

ट्रंप का लक्ष्य अमेरिका को, उन सभी के लिए एक ऐसी अप्रिय जगह बनाना हो सकता है जिनके पूर्वज मेफ्लावर जहाज से ब्रिटेन से अमेरिका नहीं आए थे।  हालांकि यह अलग बात है कि इस तरह के कदम अमेरिकी वैश्विक नेतृत्व और उसकी प्रतिस्पर्धा क्षमता को बरबाद कर देंगे।

यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि केवल अमेरिका ही अपनी सीमाएं बंद करने की कवायद नहीं कर रहा है। एक दशक बीत चुका है, जब जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल ने सीरिया में खूनी गृहयुद्ध से पलायन करने वाले तीन लाख प्रवासियों के लिए अपने देश की सीमाएं खोली थीं। कुल मिलाकर, वर्ष 2015 और 2016 में, जर्मन अधिकारियों को दस लाख से अधिक शरणार्थियों के आवेदन मिले थे। मर्केल के इस फैसले और यूरोप भर में इसी तरह के अन्य फैसलों से यूरोपीय महाद्वीप की राजनीति में एक प्रभाव पड़ा है।

हालांकि कुछ ही देशों में ब्रिटेन जितना तेज और आश्चर्यजनक बदलाव देखने को मिला है। करीब 9 साल पहले देश में यूरोपीय संघ छोड़ने के लिए मतदान किया था जिसमें समर्थन का अंतर बेहद कम था। ब्रेक्जिट समर्थकों ने दावा किया था कि मतदाताओं का इरादा देश पर ‘अपना नियंत्रण वापस लेना’ था, जिसमें इसकी सीमाएं भी शामिल थीं। लेकिन उस वक्त से, गैर-यूरोपीय देशों विशेष रूप से भारत से ब्रिटेन जाने वाले प्रवासियों की तादाद कई गुना बढ़ गई है। कई लोग मानते हैं कि विशेष श्रेणियों के तहत इनमें से कुछ प्रवासी आवेदन फर्जीवाड़े या हेरफेर का परिणाम हैं।

अब हमें यह अजीबोगरीब नजारा देखने को मिल रहा है कि दक्षिणपंथी कंजर्वेटिव ने बड़े पैमाने पर प्रवासन को बढ़ावा दिया जबकि उनके मध्यमार्गी-वामपंथी उत्तराधिकारी उन पर ‘खुली सीमाओं का प्रयोग’ करने का आरोप लगाते हैं जिससे उनके मुताबिक ब्रिटेन ‘अजनबियों का द्वीप’ बन जाएगा। पूरे यूरोप में मुख्यधारा के नेता धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से महाद्वीप को बंद कर रहे हैं। वे ट्रंप जैसी बयानबाजी नहीं करेंगे लेकिन उनके जैसे लोगों को देश की सीमा से बाहर रखने के लिए, वे आप्रवासन की नीति पर बिना किसी हिचकिचाहट के उनके ही नक्शेकदम पर चलेंगे।

First Published - July 2, 2025 | 10:34 PM IST

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