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बुनियादी ढांचा: निवेश विवाद निपटान केंद्र और भारत

समय के साथ, आईसीएसआईडी विदेशी निवेशकों और मेजबान देशों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए निश्चित रूप से एक प्रमुख मंच बन गया है।

Last Updated- October 22, 2024 | 10:01 PM IST
India appealed against the decision of WTO's Trade Dispute Settlement Committee

विश्व बैंक समूह की एक संस्था, अंतरराष्ट्रीय निवेश विवाद निपटान केंद्र (आईसीएसआईडी) की स्थापना 1996 में हुई थी और इसका मकसद विदेशी निवेशकों और उनके द्वारा निवेश किए गए देशों के बीच किसी तरह के विवादों का समाधान करने के लिए हुआ।

हालांकि भारत, विश्व बैंक और इसके संबद्ध संस्थानों अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) और बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसने आईसीएसआईडी के लिए हस्ताक्षर नहीं किया है।

आईसीएसआईडी में भारत की गैर-भागीदारी वाली स्थिति का नए सिरे से मूल्यांकन करने की जरूरत है क्योंकि वैश्विक निवेश के प्रवाह वाली इस दुनिया में आईसीएसआईडी सीमा पार निवेश संबंधी विवादों के समाधान के लिए एक विश्वसनीय संस्थान के तौर पर उभरा है।

समय के साथ, आईसीएसआईडी विदेशी निवेशकों और मेजबान देशों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए निश्चित रूप से एक प्रमुख मंच बन गया है। 31 दिसंबर 2023 तक इसके दायरे में 158 अनुबंधित देश और सात हस्ताक्षरकर्ता देश थे, जिसके कन्वेंशन ऐंड एडिशनल फैसिलिटी रूल्स के तहत 967 मध्यस्थता और सुलह के मामले दर्ज किए गए थे।

निश्चित रूप से इसमें भारत की गैर-भागीदारी पर ध्यान खिंच जाता है क्योंकि आईसीएसआईडी कन्वेंशन के 158 सदस्य देशों में से कई भारत के प्रमुख व्यापार एवं निवेश साझेदार हैं।

आईसीएसआईडी न केवल अपने सदस्य देशों और उनके निवेशकों को कन्वेंशन के तहत विवाद समाधान देता है बल्कि आईसीएसआईडी की प्रशासनिक व्यवस्था में अपनी आवाज दर्ज करने का मौका भी मिलता है। इसकी सदस्यता स्वैच्छिक है और इसकी सेवाओं का उपयोग तभी किया जाता है जब दोनों पक्षों की सहमति हो।

आईसीएसआईडी ने कई वर्षों में यह दिखाया है कि यह मध्यस्थता और सुलह के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय निवेश में स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। कई संधियों और राष्ट्रीय कानूनों में इसे शामिल किए जाने से सीमा पार निवेश की स्थिति को आकार देने में इसकी अहमियत देखी जा सकती है जो इस संस्था की स्थापना के बाद तेजी से बढ़ा है। विश्व बैंक की अहम भागीदारी के चलते, जो समाधान दिए जाते हैं उसे विवाद से जुड़े दोनों पक्ष मान्यता देते हैं।

भारत की सदस्यता का मामला ऐसे वक्त में उठ रहा है जब देश अगले कुछ वर्षों में 100 अरब डॉलर सालाना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने के लिए पूरी गंभीरता से काम कर रहा है जो वर्ष 2022-23 के 71 अरब डॉलर से काफी अधिक होगा। इसे हासिल करने के लिए सरकार ने बुनियादी ढांचा और लॉजिस्टिक्स में सुधार और कारोबार स्थापित करने के लिए सुव्यवस्थित प्रक्रिया सहित निजी निवेश के कारकों पर सही तरीके से ध्यान दिया है। आईसीएसआईडी का हस्ताक्षरकर्ता देश होने से विदेशी निवेशकों के एक नए समूह के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी।

ठीक इसी वक्त भारत का विदेश में प्रत्यक्ष निवेश (ओएफडीआई) वित्त वर्ष 2020-21 से लगातार बढ़ रहा है जब यह लगभग 17.8 अरब डॉलर था। भारत ने जिन क्षेत्रों में ओएफडीआई पर जोर दिया उनमें सूचना प्रौद्योगिकी, दवा क्षेत्र, खनिज, ऊर्जा क्षेत्र, विनिर्माण एवं बुनियादी ढांचा क्षेत्र शामिल हैं।

भारतीय कंपनियां एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप के देशों में विलय, अधिग्रहण और नए संयंत्र लगाने (ग्रीनफील्ड) के लिए निवेश करने पर पूरी सक्रियता दिखाती रही हैं। ये निवेश मुख्यतौर पर बाजार में पहुंच, प्रौद्योगिकी अधिग्रहण, संसाधनों में विविधता और रणनीतिक विस्तार जैसे कारकों की वजह से होते हैं।

कुल मिलाकर भारत के विदेशी निवेश में बढ़ोतरी की उम्मीद है क्योंकि भारतीय कंपनियां वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्ज करना चाहती हैं और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना चाहती हैं। यह रुझान भारत के वैश्विक मंच पर बढ़ते आर्थिक प्रभाव को दर्शाता है।

भारत का एफडीआई प्रवाह देश और विदेश में बढ़ रहा है ऐसे में विभिन्न स्रोतों के कारण निवेश विवाद की संभावना भी बढ़ती है। इनमें राजनीतिक एवं नियामकीय बदलाव, भू-राजनीतिक तनाव, आर्थिक संकट, दावों का जोखिम, अनुबंध उल्लंघन, पूंजी परिवर्तनीयता के मुद्दे, मुद्रा को स्वदेश भेजने पर प्रतिबंध, रॉयल्टी एवं करों में बदलाव, सांस्कृतिक स्तर पर गलतफहमियां, पर्यावरणीय चिंताएं एवं पारदर्शिता के मामले शामिल हैं।

भारत के विदेशी निवेश में विस्तार से ऐसे हालात का सामना करने का खतरा बढ़ गया है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय निवेश के जटिल माहौल को समझने और जोखिम कम करने के लिए एक प्रभावी और निष्पक्ष विवाद सुलह तंत्र की आवश्यकता है। पहले भी, भारत ने विदेशी निवेशकों के साथ कई विवादों का सामना किया है जिनमें वोडाफोन और केयर्न एनर्जी के साथ कर विवाद, एनरॉन की दाभोल बिजली परियोजना और पॉस्को स्टील प्लांट से जुड़े मुद्दे शामिल हैं।

इसी तरह, भारत के विदेशी निवेश भी प्रभावित हुए हैं और इन्हें झटका लगा है। इंडोनेशिया द्वारा कोयला निर्यात पर अप्रत्याशित उपकर लगाने से भारत के दो बहुत बड़े आयातित कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों की व्यवहार्यता को लेकर अस्तित्व संबंधी गंभीर सवाल खड़े हुए। कई ऐसे भी मशहूर मामले हुए हैं जहां मेजबान देशों के साथ वाणिज्यिक विवादों के कारण भारतीय निवेश जोखिम में पड़ गया है।

आईसीएसआईडी विश्वसनीय तरीके से जोखिम कम करने का अवसर देता है। इसका सदस्य बनकर भारत, विदेशी निवेशकों को विवादों के समाधान के लिए एक विश्वसनीय कानूनी ढांचा मुहैया करा सकता है, जिससे निवेश के केंद्र के तौर पर भारत के लिए आकर्षण काफी बढ़ जाएगा। विदेश में निवेश करने वाले भारतीय कारोबारियों को भी इसी तरह के संरक्षण का लाभ मिलेगा।

आईसीएसआईडी के पीछे की मूल अवधारणा यह है कि विदेशी निवेशक हर जगह कानून के नियम और कानूनी विवादों के निपटान के लिए निष्पक्ष तंत्र पर निर्भर रहें। यह भारत में आने वाले निवेशकों के लिए उतना ही सच है जितना कि विदेश जाने वाले भारतीय निवेशकों के लिए।

भारत को एफडीआई में वृद्धि बरकरार रखने के लिए केवल नीतियों में थोड़ा बदलाव करने के बजाय कुछ और पहल करनी होगी और इसे निवेश को लेकर आधुनिक रवैया अपनाने की जरूरत है। भारत के लिए आईसीएसआईडी में शामिल होना एक बड़ा कदम साबित होगा। इस कदम से दुनिया को पता चलेगा कि भारत निवेशकों के लिए एक पारदर्शी और विश्वसनीय माहौल बनाने को लेकर गंभीर है।

इससे आत्मविश्वास बढ़ने के साथ ही अधिक विदेशी निवेश बढ़ेगा। भारत की स्वतंत्रता कम होने को लेकर चिंता जताई जा रही है लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि आईसीएसआईडी में शामिल होने से होने वाले फायदे, जैसे कि भारत की वैश्विक स्तर पर निवेश आकर्षित करने की क्षमता में वृद्धि और दीर्घकालीन आर्थिक विकास, इन चिंताओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि आईसीएसआईडी की सदस्यता भारत की मॉडल द्विपक्षीय निवेश संधि के अनुरूप है। यह भारत के कानूनी सुधारों के व्यापक प्रयासों का पूरक होगा, जैसे कि न्यायिक प्रक्रियाओं को और बेहतर बनाने के साथ ही यह मौजूदा जरूरतों के अनुरूप हो। इससे निवेशकों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर विवादों को सुलझाने के लिए अधिक विकल्प मिलेंगे।

दुनिया भर के देश एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं ताकि निवेशकों को अपने देश में आकर्षित कर सकें। भारत को भी इस प्रतिस्पर्धा में आगे रहने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए। आईसीएसआईडी में शामिल होना ऐसा ही एक महत्त्वपूर्ण कदम है और इस मौके को भारत को गंवाना नहीं चाहिए।

(लेखक बुनियादी ढांचा विशेषज्ञ हैं। वह द इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक एवं प्रबंध न्यासी हैं। लेख में वृंदा सिंह का भी योगदान है)

First Published - October 22, 2024 | 9:49 PM IST

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