लंबे अर्से के बाद ऐसा हुआ है, जब मौद्रिक और ऋण नीति के ऐलान पर अटकलों का बाजार गर्म है।
एक ओर जहां थोक मूल्य सूचकांक महंगाई की दर में भयंकर तेजी की ओर इशारा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जनवरी तक औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के संकेत नजर आ रहे थे। मौद्रिक नीति के नजरिए से ये विरोधाभासी संकेत हैं और इससे एक-दूसरे के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
बीते शुक्रवार को अर्थव्यवस्था के दोनों सूचकांकों के आंकड़े जारी किए गए। इन आंकड़ों के मुताबिक, महंगाई की दर 7 फीसदी से बढ़कर 7.41 फीसदी होकर खतरनाक स्थिति में पहुंच गई है। ठीक इसके उलट औद्योगिक उत्पादन में जनवरी के मुकाबले फरवरी में सुधार देखा गया। जनवरी में औद्योगिक विकास दर 5.3 फीसदी थी, जो फरवरी में बढ़कर 8.6 फीसदी हो गई।
उद्योग जगत के इस प्रदर्शन को पिछले 6 महीने में काफी बेहतर माना जाएगा। वित्त वर्ष 2007-08 में फरवरी से अप्रैल के बीच औद्योगिक उत्पादन की विकास दर 8.7 फीसदी रहने की उम्मीद है, जो पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि के दौरान (11.2 फीसदी) से कम है।
ये आंकड़े 29 अप्रैल को रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए जाने वाले मौद्रिक नीति में महंगाई दर के प्रतिकूल उठाए जाने वाले कदमों की ओर इशारा करते हैं। हालांकि अगर हम दोनों सूचकांकों की तह में जाएं तो तस्वीर काफी उलझती नजर आती है।
धन के प्रवाह को रोकने के लिए नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) और रेपो रेट में की जाने वाली बढ़ोतरी से औद्योगिक उत्पादन में और गिरावट आएगी। फिलहाल उद्योग जगत के दो सेगमेंट ट्रांसपोर्ट उपकरण और कंज्यूमर डयूरेबल्स प्रमुख रूप से औद्योगिक उत्पादन को प्रभावित कर रहे हैं।
बहरहाल, वर्तमान परिस्थितियों में महंगाई की दर में हो रही बढ़ोतरी के केंद्र में धातुओं की बढ़ती कीमतें (खासकर स्टील) हैं। उपरोक्त दोनों सेक्टर स्टील का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं और धातुओं की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी से उनके उत्पादों की कीमतें कम करने की कोशिशों को झटका लगेगा।
महंगाई में भयंकर तेजी की एक और प्रमुख वजह खाद्य पदार्थों की कीमतों में हुई बढ़ोतरी भी है। लिक्विडिटी पर लगाम लगाने से इस सेक्टर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। खाद्य पदार्थों की कीमतों कम होने के लिए हमें आगामी मॉनसून का इतंजार करना पड़ेगा।
हालांकि अगर महंगाई को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता है, तो इससे बाजार में गलत संकेत जाएंगे। महंगाई की दर को रोकने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा दिखाई गई कमजोर प्रतिबध्दता से महंगाई के और तेज होने की आशंका भी पैदा हो सकती है। इस दलील के आधार पर धन के प्रवाह पर अंकुश लगाने को जायज ठहराया जा सकता है।