वर्ष 2020 में चीन के साथ सीमा पर तनाव बढ़ने के बाद भारत ने वहां की कंपनियों के लिए देश में कारोबार करना काफी मुश्किल बना दिया था। भारत ने चीन को झुकाने के लिए टिकटॉक सहित कई मोबाइल ऐप्लिकेशन (ऐप) पर भी प्रतिबंध लगा दिए थे। बिज़नेस स्टैंडर्ड को दिए साक्षात्कार में पूर्व विदेश सचिव एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने कहा था, ‘अगर आपको लगता है कि ऐप पर पाबंदी लगाकर चीन का व्यवहार बदला जा सकता है तो फिर मैं आपको शुभकामनाएं ही दे सकता हूं।‘ मेनन ने कहा था, ‘मुझे नहीं लगता कि इन ऐप को तैयार करने वाली कंपनियां और इनके मालिक चीन की सरकार पर किसी तरह का दबाव बना पाएंगे। इससे चीन के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आएगा।’
मगर पाकिस्तान के मामले में सिंधु जल समझौता (आईडब्ल्यूटी) स्थगित कर भारत ने एक तगड़ा कदम उठाया है। हालांकि, अभी देखना बाकी है कि यह कदम पाकिस्तान का व्यवहार बदलने के लिए काफी होगा या नहीं। भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था। तब से दोनों देश कई बार भिड़ चुके हैं मगर इस समझौते पर युद्धों एवं आपसी विवाद का कोई असर नहीं हुआ। जब भी सिंधु नदी का पानी रोकने की बात उठती तो पाकिस्तान तुरंत हरकत में आ जाता था। पाकिस्तान ने पहले और अब एक बार फिर चेतावनी दी है कि सिंधु जल समझौते का उल्लंघन पाकिस्तान के खिलाफ ‘युद्ध का ऐलान’ ही माना जाएगा।
तिब्बत में हिमालय की ऊंची चोटियों से निकलकर सिंधु नदी जम्मू-कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान में प्रवेश करती है। यह नदी पंजाब और सिंध के उपजाऊ इलाकों में बहती हुई बाद में अरब सागर में मिल जाती है। सिंधु नदी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए हमेशा से जीवन रेखा की तरह रही है। पाकिस्तान में कुल श्रम बल के आधे हिस्से को रोजगार देने के साथ ही यह नदी उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कम से कम एक चौथाई योगदान देती है।
अप्रैल 1948 में भारत ने पहली बार पाकिस्तान की तरफ सिंधु नदी का प्रवाह रोक दिया था। उस समय नए देश के रूप में अस्तित्व में आए पाकिस्तान के हुक्मरान को पहली बार एहसास हुआ था कि भारत इस नदी के पानी को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। पाकिस्तान को यह भी महसूस हुआ कि उसे सिंधु जल के मामले में भारत सरकार के रहमो करम पर निर्भर रहना होगा।
जब भारत ने 2008 में बगलिहार बांध में पानी भरना शुरू किया तो चिनाब नदी में जल का प्रवाह अत्यधिक कम हो गया। इससे बौखला कर लश्कर-ए-तैयबा के सह-संस्थापक हाफिज सईद ने धमकी दी कि पानी रुका तो फिर खून बहेगा। वर्ष 2009 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी (एक अंतराल के बाद वह वर्तमान राष्ट्रपति भी हैं) ने अमेरिकी समाचार पत्र वॉशिंगटन पोस्ट में लिखे अपने एक आलेख में अमेरिका से अनुरोध किया कि वह भारत के साथ जल सहित तमाम विवादास्पद मुद्दों के समाधान में भूमिका निभाए। जरदारी ने कहा कि जल का मसला काफी गंभीर है और इसका समाधान नहीं होने के विनाशकारी परिणाम सामने आ सकते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचने के साथ ही दक्षिण एशिया में चरमपंथ और आतंकवाद को भी शह मिल सकती है।
2016 में उरी में आर्मी बेस पर जैश-ए-मोहम्मद के हमले में 19 जवानों की शहादत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों की बैठक बुलाई जिसमें सिंधु नदी जल समझौते पर चर्चा हुई। इस बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते’। कुछ हफ्तों बाद बठिंडा में रावी नदी के किनारे उन्होंने कहा कि वह ‘पाकिस्तान में रावी नदी का एक बूंद पानी जाने नहीं देंगे’। हालांकि भारत को सिंधु जल समझौता स्थगित करने की घोषणा करने में 9 वर्षों का समय लग गया।
इस समझौते के निलंबित रहने से पाकिस्तान को कितना नुकसान होगा? इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। पाकिस्तान के कृषि मंत्रालय के अनुसार लाहौर में इस समय एक क्विंटल (100 किलोग्राम) टमाटर की कीमत 3,600-4,000 पाकिस्तानी रुपये है। अगर सितंबर में चिनाब नदी का जल स्तर कम हो जाता है तो रबी फसलों की बुआई में देरी होगी। इससे टमाटर की उपलब्धता कम हो जाएगी और दाम काफी बढ़ जाएंगे जिससे महंगाई ऊंचे स्तरों पर पहुंच जाएगी।
सरकार नियंत्रित पाकिस्तान काउंसिल ऑफ रिसर्च इन वाटर रिसोर्सेस (पीसीआरडब्ल्यूआर) ने आगाह किया है कि 2025 में देश में जल संकट विकराल रूप ले सकता है। पाकिस्तान जल पर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की अपील करता रहा है। बगलिहार बांध भारत के खिलाफ अपील हारने के बाद वहां की सीनेट समिति ने उस समय सिंधु आयुक्त सैयद जमात अली शाह पर ‘गद्दारी’ करने और भारत को जल आपूर्ति पर नियंत्रण हासिल करने की ‘क्षमता’ मुहैया कराने का आरोप लगाया। शाह पाकिस्तान से भाग गए और कनाडा में शरण की मांग की। पाकिस्तान के समाचार पत्रों के अनुसार वह अब कनाडा के नागरिक बन चुके हैं जहां से उनके प्रत्यर्पण एवं पाकिस्तान में मुकदमा चलाए जाने की मांग खारिज हो चुकी है। वर्ष 2018 में नरेंद्र मोदी ने किशनगंगा बिजली संयंत्र का उद्घाटन किया और इस दौरान पाकिस्तान यह शिकायत करता रहा कि इस बांध ने सिंधु जल समझौते का उल्लंघन किया है। पाकिस्तान ने विश्व बैंक से भी हस्तक्षेप की मांग की मगर उसकी अर्जी नहीं सुनी गई।
विशेषज्ञों का कहना है कि सिंधु जल समझौते में दोनों देशों के बीच बातचीत एवं संवाद की व्यवस्था की गई थी। अक्सर आपसी बातचीत से दूर रहने वाले दोनों देशों में से किसी ने भी इस व्यवस्था का इस्तेमाल नहीं किया है। पाकिस्तान को जल रोकने के लिए क्या भारत तेजी से बांधों का निर्माण कर सकता है? क्या जल अकेला सबसे बड़ा ऐसा मुद्दा बन सकता है जो पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने लगाने के साथ उसका व्यवहार बदलने के लिए विवश कर सकता है? अगर ऐसा होता है तो दुनिया की यह पहली घटना होगी और भारत एक भी गोली चलाए बिना ही जंग जीत जाएगा।