सरकार ने गत सप्ताह एक अधिसूचना जारी करके सभी सक्रिय सनदी लेखाकारों (CA), कंपनी सेक्रेटरीज (CS) और कॉस्ट ऐंड वर्क्स अकाउंटेंट्स (CWA) को अपने क्लाइंट के लिए किए जाने वाले चुनिंदा कामों के लिए धन शोधन निरोधक अधिनियम (PMLA) 2002 के अधीन लाने का कदम उठाया है। इसे काले धन से संबंधित लेनदेन की रोकथाम के लिए एक व्यावहारिक कदम माना जा सकता है।
इस अधिसूचना के तहत अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री, क्लाइंट के पैसे का प्रबंधन, प्रतिभूतियों एवं अन्य परिसंपत्तियों, बैंक, बचत और प्रतिभूति खातों का प्रबंधन, कंपनियों के निर्माण, परिचालन और प्रबंधन के लिए योगदान की व्यवस्था और सीमित दायित्व वाली साझेदारियों या न्यासों का प्रबंधन अथवा कारोबारी संस्थाओं की खरीद या बिक्री शामिल हैं।
CA, CS और CWA से कहा गया है कि वे ऐसे लेनदेन के मामलों की जानकारी प्राधिकारियों को दें और वे जिन क्लाइंट के लिए इस प्रकार के लेनदेन करेंगे उनके लिए KYC के मानकों को भी पूरा करें। इसका अर्थ यह होगा कि CA, CS और CWA भी PMLA के तहत ऐसे लेनदेन के लिए बराबर जिम्मेदार होंगे। अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया है कि नियमित सेवाओं मसलन लेखाकारों का पंजीयन अथवा वित्तीय सलाह देने का शुल्क आदि को PMLA के दायरे में नहीं लाया जाएगा।
इस बदलाव की तात्कालिक जरूरत फाइनैंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (FATF) के इस वर्ष नवंबर में होने वाले आकलन की वजह से पड़ी। FATF सन 1989 में स्थापित निगरानी संस्था है जो वैश्विक स्तर पर धन शोधन तथा आतंकी गतिविधियों की फाइनैंसिंग पर नजर रखती है। भारत 2010 में FATF के आकलन में शामिल हुआ और अगली बार महामारी के कारण इसे टाल दिया गया।
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अनुपालन की इस कवायद के अधीन ही सरकार ने मार्च में धन शोधन के नियमों में संशोधन करके बैंकों, वित्तीय संस्थानों के लिए यह जरूरी कर दिया था कि वे गैर लाभकारी संस्थानों और गैर सरकारी संस्थानों तथा राजनीतिक रुख वाले लोगों के वित्तीय लेनदेन का हिसाब रखे।
राजनीतिक रुख वाले लोगों में वे लोग शामिल हैं जिन्हें किसी विदेशी राष्ट्र, राज्याध्यक्षों या सरकार ने काम पर रखा हो, वरिष्ठ राजनेताओं, वरिष्ठ सरकारी या न्यायिक या सैन्य अधिकारियों, सरकारी उपक्रमों के वरिष्ठ कार्यकारियों तथा राजनीतिक दलों के महत्त्वपूर्ण अधिकारी भी इनमें शामिल हैं।
अनुमान के मुताबिक ही अंकेक्षण समुदाय ने इस अधिसूचना में उल्लिखित शर्तों को लेकर आशंकाएं प्रकट की हैं। उन्होंने उचित ही यह प्रश्न किया है कि अधिवक्ताओं और विधिक पेशेवरों को इस नए प्रावधान के दायरे से बाहर रखा गया है।
सरकार ने इसकी वजह स्पष्ट करते हुए कहा कि हालांकि अधिवक्ता अपने क्लाइंट के लिए ऐसे वित्तीय लेनदेन करते हैं लेकिन उन्हें ऐसी सेवाओं के लिए पैसे लेने की मनाही है क्योंकि अधिवक्ता अधिनियम उन्हें एजेंट के रूप में काम करने से रोकता है। वहीं दूसरी ओर पेशेवर लेखाकार ऐसी सेवाएं देते हैं क्योंकि उन पर ऐसा कोई कानून लागू नहीं होता। यह अंतर बेमानी सा है।
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अगर यह मान लिया जाए कि CA, CS और CWA को क्लाइंट के लेनदेन का जवाबदेह बनाने की वजह धोखाधड़ी वाले व्यवहार का पता लगाना और धन शोधन की जानकारी सामने लाना है तो यह समझ पाना मुश्किल है कि अधिवक्ताओं और विधिक पेशेवरों को इससे बाहर क्यों रखा जाना चाहिए?
तार्किक रूप से देखें तो किसी लेनदेन के लिए शुल्क लेने अथवा न लेने से लेनदेन की प्रकृति निर्धारित नहीं होती। अगर ताजा अधिसूचना का अर्थ वैश्विक टास्क फोर्स का अनुपालन है तो भी काले धन वाले सौदे रोकने में इसकी उपयोगिता को इस प्रकार की अन्य संस्थाओं को बाहर रखकर शिथिल नहीं किया जाना चाहिए जो स्वयं ऐसी ही भूमिका निभाते हैं।