द स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के मुताबिक बीते पांच वर्षों (2018-22) के दौरान भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक बना रहा। वैश्विक हथियार आयात में 11 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत सऊदी अरब (9.6 फीसदी), कतर (6.4 फीसदी), ऑस्ट्रेलिया (4.7 फीसदी) और चीन (4.6 फीसदी) से आगे रहा।
इस बीच रक्षा मंत्रालय ने संसद में एक लिखित उत्तर में बताया है कि विदेशी हथियार खरीद पर भारत का व्यय 2018-19 के कुल व्यय के 45 फीसदी से कम होकर दिसंबर 2022-23 में 36.7 फीसदी रह गया। चीन अपने व्यापक रक्षा उपकरण आयात की भरपाई पाकिस्तान जैसे देशों को हथियार निर्यात से कर देता है लेकिन भारत का रक्षा निर्यात मोटे तौर पर स्थिर रहा है।
रक्षा मंत्रालय के एक वक्तव्य के मुताबिक भारत ने 2018-19 में 10,746 करोड़ रुपये के रक्षा उपकरणों का निर्यात किया और इस वर्ष तक यह बढ़कर केवल 14,000 करोड़ रुपये ही हुआ है। भारत का रक्षा उद्योग उच्च मूल्य वाले निर्यात की बाट जोह रहा है।
उदाहरण के लिए तेजस लड़ाकू विमान, ब्रह्मोस मिसाइलें, विध्वंसक पोत, युद्धपोत, हवाई रक्षा मिसाइल, तोपें, रॉकेट लॉन्चर अथवा वायुसेना के अड्डों का आधुनिकीकरण आदि। लेकिन हमें आमतौर पर गोली-बारूद और तटीय इलाकों में गश्त करने वाले जहाज जैसे कम मूल्य के उपकरणों के अनुबंध ही हासिल होते हैं।
भारत के रक्षा उत्पादन केंद्र अभी भी हथियार उत्पादन व्यवस्था के विभिन्न आयामों को जान-समझ ही रहे हैं। फिर चाहे बात एयरक्राफ्ट फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम और कंप्यूटर्स की हो या विमान ढांचे के डिजाइन की या फिर टैंक-गनरी साइटिंग और एक्टिव आर्मर प्रोटेक्शन सिस्टम्स की जो भारतीय उद्योग जगत को सावधानीपूर्वक चुने गए सिस्टम और सबसिस्टम का डिजाइन तैयार करने, उन्हें विकसित करने और बनाने की सुविधा देंगे। ये सभी समग्र हथियार प्रणाली के लिए बहुत आवश्यक हैं।
हमें जिन क्षेत्रों पर ध्यान देना है उनका सावधानीपूर्वक चयन करना भी जरूरी होगा। उदाहरण के लिए सन 1946 के साथ अब तक अकेले ब्रिटेन की एक कंपनी ही एयरक्राफ्ट इजेक्शन (विमान से बाहर निकलने में मददगार) बनाती है, अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसका दबदबा है और कंपनी के आंकड़ों के मुताबिक उसने अब तक सफलतापूर्वक इजेक्शन के जरिये 7,691 लोगों की जिंदगी बचाई है।
जब भी कोई लड़ाकू विमान विकसित किया जाता है तो पूरी संभावना रहती है कि उसका निर्माता इजेक्शन सीट के लिए कंपनी से संपर्क करेगा। इसी प्रकार ब्रिटेन की ही एक अन्य कंपनी सन 1934 से उड़ते विमान में ईंधन डालने के मामले में बाजार की अगुआ है। इस प्रणाली के चलते लड़ाकू विमान हवा में उड़ते हुए ही टैंकर विमान से ईंधन ले लेते हैं। हमने यहां ब्रिटेन की दो कंपनियों का जिक्र इसलिए किया कि भारतीय और ब्रिटिश रक्षा बजट लगभग बराबर है।
बहरहाल कृत्रिम मेधा, मशीन लर्निंग और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी तकनीकों को देखते हुए भारत की उच्च तकनीक वाली स्टार्टअप और मझोले छोटे तथा सूक्ष्म उपक्रम खुद को भविष्य के इन परिवर्तनकारी क्षेत्रों में रसूखदार स्थिति में ला सकते हैं। इसके लिए रक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों के बीच तालमेल की आवश्यकता होगी।
अगर रक्षा मंत्रालय समुचित लक्ष्य और रुख तय करे तो और भी बेहतर होगा। बीते छह वर्ष में एक लक्ष्य यह भी रहा कि रक्षा उत्पादन को बढ़ाकर 1.75 लाख करोड़ रुपये किया जाए तथा रक्षा निर्यात को 1.5 अरब डॉलर से बढ़ाकर 5 अरब डॉलर किया जाए।
बहरहाल, निर्यात अभी भी काफी कम है। आयात निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने कई हथियार प्लेटफॉर्म के आयात पर रोक लगाई है लेकिन यह समझना होगा कि भले ही समय पर घरेलू क्षमताओं का विकास न हो लेकिन भारत की रक्षा तैयारी प्रभावित नहीं होनी चाहिए। आयात पर निर्भरता कम करने के लिए एक सही रणनीति की आवश्यकता है। आयात पर बहुत अधिक निर्भरता के कारण चुनौतीपूर्ण माहौल में सैन्य जोखिम बढ़ सकता है।