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OBS के निर्यात में अपार संभावनाएं, सॉफ्टवेयर एवं सूचना-प्रौद्योगिकी को भी पछाड़ने की संभावना

भारत में ओबीएस निर्यात के प्रमुख स्रोत के रूप में उभर रही हैं और सरकार से पर्याप्त एवं उचित समर्थन मिलने पर ये सॉफ्टवेयर एवं सूचना-प्रौद्योगिकी को भी पछाड़ सकती हैं।

Last Updated- July 29, 2024 | 9:13 PM IST
OBS के निर्यात में अपार संभावनाएं, सॉफ्टवेयर एवं सूचना-प्रौद्योगिकी को भी पछाड़ने की संभावना, There is immense potential in the export of OBS, the possibility of surpassing even software and information technology

वर्ष 2030 तक अन्य कारोबारी सेवाएं (ओबीएस) भारत से निर्यात का अगला बड़ा स्रोत हो सकती हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि ये सॉफ्टवेयर एवं सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) सेवा क्षेत्र को भी पीछे छोड़ देंगी। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत से सेवा निर्यात में ओबीएस नए असरदार भागीदार के रूप में उभर रही हैं।

ओबीएस खंड में वे सेवाएं आती हैं जो विविध कारोबारी परिचालनों जैसे कारोबार परामर्श, अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) और रिसर्च एवं डिजाइन (आरऐंडडी) से संबंधित होती हैं। इसमें विज्ञापन, जन संपर्क, बाजार शोध, लॉजिस्टिक्स, लेखा, अंकेक्षण (ऑडिट), वास्तुशिल्प एवं विधि सेवाएं सहित कई विधा आती हैं।

वित्त वर्ष 2022-23 में भारत से 150 अरब डॉलर मूल्य (वैश्विक हिस्सेदारी का 20 प्रतिशत) की सॉफ्टवेयर एवं आईटी सेवाओं और 80 अरब डॉलर मूल्य (वैश्विक हिस्सेदारी का 4.2 प्रतिशत) की ओबीएस का निर्यात हुआ। सॉफ्टवेयर एवं आईटी सेवाओं की भारत से सेवाओं के कुल निर्यात में आधी से अधिक हिस्सेदारी रहती है और ओबीएस की लगभग एक चौथाई हिस्सेदारी होती है।

आइए, यह समझने की कोशिश करते हैं कि क्यों ओबीएस में आईटी से भी आगे निकलने की क्षमता है। यद्यपि सॉफ्टवेयर एवं आईटी भारत से निर्यात के सबसे बड़े स्रोत हैं मगर ओबीएस का व्यापार भी तेजी से बढ़ रहा है। वैश्विक स्तर पर सेवाओं का निर्यात लगभग 7.1 लाख करोड़ डॉलर रहा। इनमें ओबीएस का निर्यात 1.8 लाख करोड़ डॉलर (25.4 प्रतिशत) और सॉफ्टवेयर एवं आईटी का 762 अरब डॉलर (10.7 प्रतिशत) रहा।

आने वाले वर्षों में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और केवल एक देश पर निर्यात संबंधी निर्भरता के कारण सॉफ्टवेयर एवं आईटी क्षेत्र की वृद्धि नरम पड़ सकती है। भारत आईटी निर्यात से जो कमाई करता है, उसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से अधिक होती है। कुछ रणनीतिक कदमों से आने वाले वर्षों में भारत से ओबीएस निर्यात सॉफ्टवेयर एवं आईटी की तुलना में तेज गति से आगे बढ़ सकता है।

ओबीएस का बढ़ रहा वैश्विक व्यापार

विशेष सेवाओं की बढ़ती मांग, सेवाओं का विनिर्माण से जुड़ाव और तकनीक में प्रगति ओबीएस की वृद्धि को बढ़ावा दे रहे हैं। बड़ी विनिर्माण कंपनियां लागत कम करने के लिए संरचना, विकास एवं उत्पादन कार्य अलग-अलग जगहों पर ले जा रहे हैं। इस कदम के बाद अभियांत्रिकी, आईटी, लॉजिस्टिक्स एवं आरऐंडडी की मांग बढ़ रही है।

सेवाओं का विनिर्माण में यह जुड़ाव विनिर्माण के ‘सेवाकरण’ या सर्विसिफिकेशन के नाम से जाना जाता है, जो ओबीएस को बढ़ावा दे रहा है। उदाहरण के लिए कार बनाने वाली कोई अमेरिकी कंपनी इंजन बनाने का जिम्मा भारत में किसी इंजीनियरिंग कंपनी को दे रही है। यह ‘सर्विसिफिकेशन’ के रुझान को दर्शा रहा है।

इसके अलावा विदेश में कारोबार विस्तार करने वाली कंपनियों को नए बाजारों में अधिक सेवाओं की आवश्यकता होती है। तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में तेज वृद्धि भी इंजीनियरिंग, विज्ञापन और आरऐंडडी सेवाओं की मांग बढ़ाती हैं। तकनीक में प्रगति जैसे क्लाउड कंप्यूटिंग, दूर बैठे काम करने की तकनीक और डिजिटल प्लेटफॉर्म दुनिया भर में अधिक सेवाएं पहुंचा रही है, जिससे उनका व्यापार तेजी से बढ़ रहा है।

विभिन्न क्षेत्रों में डिजिटल माध्यम के अधिक इस्तेमाल से तकनीकी एवं इंजीनियरिंग सेवाओं की मांग और तेजी से बढ़ रही है। यूरोप की किसी दवा कंपनी द्वारा भारत में आरऐंडडी केंद्र के लिए रकम मुहैया कराना या किसी भारतीय एजेंसी द्वारा किसी कोरियाई इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी के लिए मार्केटिंग अभियान चलाना इन गतिविधियों का उदाहरण हो सकता है।

कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा काम होना भी एक अन्य कारक है। कंपनियां इंजीनियरिंग, आरऐंडडी और विज्ञापन जैसे कार्य भारत जैसे कम खर्चीले स्थानों से कराती हैं। इससे इन कंपनियों को प्रमुख कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है और विशेष सेवाओं के लिए दूसरे देशों की विशेषज्ञता पर निर्भर रहती हैं।

इसके अलावा नियामकीय दबावों के कारण व्यवसायों को अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुपालन के लिए परामर्श सेवाओं की आवश्यकता महसूस हो रही है। इन सभी कारणों से दुनिया भर में ओबीएस का वैश्विक व्यापार तेजी से बढ़ रहा है। भारत को इस रुझान से लाभान्वित होने का पूरा हक है।

भारत के ओबीएस निर्यात की ताकत कौन?

भारत से 80 अरब डॉलर मूल्य के ओबीएस का निर्यात होता है, जिनमें आधा वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) से और शेष हिस्सा विभिन्न आकार की कंपनियों एवं परामर्श इकाइयों से आता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) द्वारा स्थापित जीसीसी आईटी सेवाएं, वित्त, मानव संसाधन, आरऐंडडी और विभिन्न बैक-ऑफिस (प्रशासन एवं सहायता कर्मियों वाला विभाग जो सीधे ग्राहकों से संवाद नहीं करते हैं) परिचालन आदि कार्य संभालते हैं।

भारत में लगभग 1,500 जीसीसी हैं, जो बेंगलूरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, मुंबई, गुरुग्राम और नोएडा में हैं। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, आईबीएम, जीई, वॉलमार्ट, जेपी मॉर्गन, गोल्डमैन सैक्स, एचएसबीसी, सीमेंस और इंटेल जैसी कंपनियां ये जीसीसी स्थापित करती हैं। जीसीसी बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) और नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग (केपीओ) के विकास का अगला चरण हैं।

बीपीओ और केपीओ ने कई ग्राहकों को अपनी सेवाएं दीं मगर बड़ी एमएनसी अब धीरे-धीरे अपने जीसीसी लगाकर यह काम खुद करने लगी हैं। इससे इन कंपनियों को रकम बचाने और डेटा सुरक्षा से जुड़े मसलों से बेहतर तरीके से निपटने में मदद मिलती है। जीसीसी ने भारतीय आईटी कंपनियों से कुछ कारोबार छीन लिए हैं। जीसीसी के बाहर ओबीएस निर्यात में मुख्यतः स्थानीय कंपनियों का योगदान होता है।

कई छोटी नई कंपनियां और बड़ी सलाहकार इकाइयां लेखा एवं कर, विधि सेवा, प्रबंधन सलाह, विपणन एवं विज्ञापन सेवा, वास्तुशिल्प सेवा एवं लॉजिस्टिक्स सेवा जैसे क्षेत्रों में विशिष्ट सेवाएं देती हैं। ये कंपनियां अपनी सेवाएं पहुंचाने के लिए सीधे ग्राहकों के साथ या मध्यस्थों के साथ मिलकर काम करती हैं।

कुछ भारतीय कंपनियां इंजीनियरिंग, निर्माण और आईटी विकास में परियोजना के आधार पर काम कर अंतरराष्ट्रीय परियोजनाएं हासिल कर लेती हैं। वे दुनिया भर में अपनी सेवाएं देने के लिए अक्सर स्वतंत्र इकाइयों (फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म) का इस्तेमाल करती हैं।

निर्यात क्षमता हासिल करने की रणनीति

कई छोटी कंपनियां ओबीएस का निर्यात तो करती हैं मगर भारत में ज्यादातर अभियांत्रिकी, शोध एवं प्रबंधन पेशेवर इस क्षेत्र में व्यापक संभावनाओं से परिचित नहीं हैं। पर्याप्त एवं उचित समर्थन दिया जाए तो ओबीएस निर्यात करने वाली कंपनियों की संख्या में भारी इजाफा हो सकता है। इस दिशा में पांच-सूत्री योजना फायदेमंद हो सकती है।

नियामकीय समीक्षाः सरकार को ओबीएस क्षेत्र में प्रत्येक विशिष्टीकृत सेवा के लिए स्थानीय नियमों की समीक्षा करनी चाहिए और उन्हें श्रेष्ठ वैश्विक मानकों के अनुरूप करना चाहिए। प्रमाणन नियमः ओबीएस में जरूरी विभिन्न पेशेवर हुनर एवं नियामकीय जानकारियों के लिए वैश्विक बाजार की आवश्यकताओं पर आधारित प्रमाणन मानक लागू किया जाना चाहिए। इससे पेशेवरों को अपने हुनर विश्व-स्तरीय बनाने में मदद मिलेगी।

संघ स्थापित करने की जरूरतः सॉफ्टवेयर एवं आईटी खंडों की तुलना में ओबीएस में सैकड़ों विशिष्ट सेवाएं हैं और इनमें प्रत्येक के लिए अलग हुनर, नियम एवं कारोबारी बाधाएं हैं। इसे देखते हुए बड़ी ओबीएस श्रेणियों के लिए संघ/संगठन स्थापित करने की जरूरत हैं। ये संघ सदस्यों को भारत और दुनिया में नियामकीय चुनौतियों से बाहर निकलने में मदद करेंगे।

दूसरे देशों में अपने समान संघों/संघठनों से सहयोग कर भारतीय संघ खरीदार एवं विक्रेताओं से जुड़ पाएंगे। ये संगठन कितने असरदार रहेंगे, यह उनके नेतृत्व एवं संरचना पर निर्भर करेगा। कई लोग गर्व से यह याद करते हैं कि किस तरह देवांग मेहता की सक्रियता ने 1990 के दशक में भारत के आईटी उद्योग को शुरुआती दौर में मदद पहुंचाई।

व्यापार आंकड़ों का प्रकाशनः भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लेन-देन के देशवार आंकड़े जारी नहीं करता है। किसी खास ओबीएस पर विस्तृत आंकड़े विभिन्न ओबीएस श्रेणियों में विभिन्न क्षेत्रों के लिए मौजूद संभावनाओं को रेखांकित कर सकते हैं।

व्यापार वार्ताः व्यापार वार्ता के दौरान भारत साझेदार देशों पर दबाव डाल सकता है कि वे अपने बाजारों तक भारतीय कंपनियों के पहुंचने की राह में लगाई गई पाबंदी कम करें। ये प्रतिबंध ज्यादातर डेटा सुक्षा से जुड़ी चिंता, मालिकाना हक की सीमा, राष्ट्रीयता की जरूरत या खास सेवा प्रकारों पर पाबंदी से जुड़े हैं।

भारत में ओबीएस क्षेत्र की वृद्धि न केवल अर्थव्यवस्था को मजबूती देगी बल्कि उद्यमशीलता के उच्च गुणवत्ता वाले अवसर भी लाखों की संख्या में पैदा करेगी। अब ओबीएस खंड की पूर्ण क्षमता का लाभ उठाने के लिए निर्णायक कदम उठाने का समय आ गया है।

(लेखक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के संस्थापक हैं)

First Published - July 29, 2024 | 9:12 PM IST

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