राज्य सभा का उप सभापति (लोक सभा में उपाध्यक्ष होते हैं और राज्य सभा में उप सभापति होते हैं, जिनका पद 2019 से ही खाली पड़ा है) होना कोई आसान काम नहीं है। सभापति प्रश्नकाल में सदन की अध्यक्षता करते हैं और इसके पूरे होते ही आसन छोड़ देते हैं।
शून्य काल (जब सदस्यों को तत्काल सूचना देकर और कई बार सूचना दिए बगैर ही मुद्दे उठाने की इजाजत होती है) को आम तौर पर उप सभापति ही संभालते हैं। यही वह समय होता है, जब तख्तियां दिखने लगती हैं, कागज फाड़े जाते हैं और कई बार नियम भी तोड़ दिए जाते हैं। महत्त्वपूर्ण और कई बार विवादास्पद चर्चाओं की अध्यक्षता भी उप-सभापति ही करते हैं। ऐसे में उनकी नजर हर जगह होनी चाहिए।
हरिवंश नारायण सिंह या हरिवंश (जो नाम खुद उन्हें भी पसंद है) पहली बार 2014 में राज्य सभा के सदस्य बने थे और 2018 में उन्हें उप सभापति चुन लिया गया। उनके नाम की सिफारिश उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने की थी। बिहार में उनकी पार्टी ने पाले बदले मगर वह इस पद पर बने रहे। राज्य सभा में उनका कार्यकाल 2020 में समाप्त हुआ और इसके साथ ही उप सभापति के पद से भी वह हट गए। लेकिन जब जदयू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में लौटी तब उन्हें फिर से राज्य सभा के लिए निर्वाचित किया गया और वह उप सभापति भी बन गए। उनके दोबारा चुने जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘वह शानदार अंपायर हैं और सदन की हर पंक्ति में खड़े हैं।’
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उन्हें राजनीति के लिए जदयू के नीतीश कुमार ने चुना था। लेकिन हरिवंश का कर्मक्षेत्र पत्रकारिता था और उनके वास्तविक आदर्श थे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर। दोनों एक ही इलाके – पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार – से आते थे। चंद्रशेखर बलिया से थे। हरिवंश का परिवार जयप्रकाश नारायण के गांव सिताब दियारा में रहता था। दोनों परिवारों के कई ताल्लुकात थे।
चंद्रशेखर समाजवादी थे। हरिवंश लोहिया के रास्ते पर चलते थे। दोनों की पहली मुलाकात जसलोक अस्पताल में हुई थी, जहां गुर्दे खराब होने के कारण जेपी भर्ती थे। हरिवंश हिंदी की प्रसिद्ध पत्रिका धर्मयुग में काम कर रहे थे और उन्होंने चंद्रशेखर का साक्षात्कार किया। बाद में उन्होंने कई बार उनका साक्षात्कार किया और उनके दृढ़ विचारों से प्रभावित हो गए। बाद में जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री (1990-91) बने तो वह प्रधानमंत्री कार्यालय में अतिरिक्त मीडिया सलाहकार बना दिए गए।
चंद्रशेखर के प्रभाव और पत्रकार के तौर पर प्रशिक्षण के कारण उनके मन में यह विचार दृढ़ता से घर कर गया कि हर चीज के दो पहलू होते हैं और अंत में हर व्यक्ति को न्याय मिलना चाहिए। 1989 में जब उन्होंने रांची से प्रकाशित होने वाले प्रभात खबर में काम शुरू किया तो उसकी केवल 500 प्रतियां बिकती थीं। अगले आठ साल में और खास तौर पर बिहार से कटकर झारखंड बनने के बाद इसकी 2 लाख प्रतियां बिकने लगीं। हरिवंश ने खबरों को स्थानीय रंग देकर यह कारनामा किया। इस दौरान भ्रष्टाचार और जमीन हड़पने जैसे मसले प्रमुख मुद्दे बन गए और अखबार खुद को ‘केवल अखबार नहीं आंदोलन’ लिखता था। प्रभात खबर उन चुनिंदा अखबारों में था, जिसने लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री रहते समय हुए चारा घोटाले की खबर सबसे पहले दी और सुशील मोदी जैसे नेताओं की मदद से अंत तक इस पर लिखता रहा।
राजनीति में आने के बाद हरिवंश की विनम्रता उनके बहुत काम आई। 2020 में विपक्ष दो कृषि विधेयकों को समीक्षा के लिए प्रवर समिति के पास भेजे जाने की मांग कर रहा था किंतु हरिवंश ने इस पर ध्वनि मत की इजाजत दे दी। इस पर विपक्ष उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ले आया। उम्मीद के मुताबिक सभापति वेंकैया नायडू ने प्रस्ताव खारिज कर दिया। लेकिन ऐसा केवल एक बार हुआ। भारतीय संसद के इतिहास के जिस दौर में सांसदों का निष्कासन आम बात हो गई थी (2024 के शीतकालीन सत्र में 46 राज्य सभा सांसद निलंबित किए गए) उसमें विशेषाधिकार हनन के मसले पर जिस तरह उन्होंने चर्चा कराई, उससे निष्पक्षता और न्याय भरा उनका रुख सामने आया।
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उदाहरण के लिए आम आदमी पार्टी (आप) के सदस्य राघव चड्ढा पर यह झूठा दावा करने का आरोप लगा कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2023 को प्रवर समिति के पास भेजे जाने के प्रस्ताव पर सांसद उनके साथ हैं, जबकि सांसदों के हस्ताक्षर उनके पास नहीं थे। गृहमंत्री अमित शाह ने झूठे हस्ताक्षरों का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। चड्ढा को निलंबित कर दिया गया। हरिवंश ने विशेषाधिकार समिति की कार्यवाही चतुराई के साथ संभाली और निलंबन खत्म हो गया। विपक्ष के एक सदस्य ने कहा, ‘जब हरिवंश आसन पर होते हैं तो आपको लगता है कि आपकी आवाज सुनी जाएगी। दूसरे सभापतियों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता।’
निर्वाचन आयोग ने 9 सितंबर को नए उप राष्ट्रपति का चुनाव कराने की घोषणा की है। लोक सभा और राज्य सभा में निर्वाचित सदस्यों तथा मनोनीत सदस्यों की संख्या देखते हुए चुनाव में सरकार के उम्मीदवार की विजय लगभग तय है। तीन नामों की चर्चा चल रही है – एक केंद्रीय मंत्री, दक्षिण के एक राज्य के राज्यपाल और उप सभापति। यदि हरिवंश चुने जाते हैं तो उनके राजनीतिक जीवन को नई दिशा मिलेगी।