बहुराष्ट्रीय कंपनियां और उच्च आय वाले व्यक्ति (एचएनआई) कम कर वाले क्षेत्रों और टैक्स हैवन (कर बचाने वाले इलाकों) में जाकर या तो कर चोरी करते हैं या काफी कर बचा लेते हैं, जिस पर दुनिया भर में चिंता बनी हुई है। विकासशील देशों में यह चिंता ज्यादा नजर आती है क्योंकि उन्हें बुनियादी ढांचा बढ़ाने तथा मानव विकास करने और पर्यावरण की चुनौतियों से लड़ने के लिए संसाधनों की जरूरत होती। इससे भी अहम बात है कि उनके लिए महामारी तथा अंतरराष्ट्रीय वैमनस्य के कारण उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों से लड़खड़ाई वृहद अर्थव्यवस्था को संभालना बहुत जरूरी है। इसके लिए घाटे और कर्ज पर काबू पाना होगा, जिसके लिए एक बार फिर संसाधनों की दरकार होती है। इन चुनौतियों ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बिगाड़ दी है और उत्पादन की लागत तथा ऊर्जा की कीमत चढ़ा दी हैं।
इस सिलसिले में यूरोपीय संघ की ईयू टैक्स ऑब्जर्वेटरी से आई रिपोर्ट पर ध्यान देना चाहिए। वैश्विक कर चोरी पर आई इस रिपोर्ट के मुताबिक बहुराष्ट्रीय कंपनियां और एचएनआई कई तरह से कर चोरी करते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसके लिए ट्रांसफर प्राइसिंग का तरीका सबसे ज्यादा अपनाती हैं। इसमें अधिक कर वाले किसी देश में मौजूद सहायक कंपनी कम कर वाले किसी देश में मौजूद संबंधित कंपनी से बेहद ऊंची कीमत पर प्रबंधन या वित्तीय सेवाएं खरीदती है। इस तरह वह अपना मुनाफा कम कर वाले देश में पहुंचा देती है।
दूसरे तरीके में अधिक कर वाले देश की कंपनी कम कर वाले देश की संबंधित कंपनी से ऊंचे ब्याज पर कर लेती है और ब्याज चुकाने के नाम पर अपना मुनाफा वहां पहुंचा देती है। तीसरा तरीका अपना मुख्यालय टैक्स हैवन में बना लेना तथा ट्रेडमार्क, बौद्धिक संपदा अधिकार एवं लोगो जैसी अमूर्त संपत्तियों के इस्तेमाल के बदले उच्च कर वाले देश की सहायक कंपनी से रॉयल्टी लेना है। बहुराष्ट्रीय डिजिटल कंपनियां खास तौर पर ऐसा करती हैं क्योंकि वे अपना मुख्यालय कम कर वाले देश में आसानी से बना सकती हैं और कर देने से बच सकती हैं।
वैश्वीकरण और आधुनिक तकनीक ने जटिलता बढ़ा दी हैं और एचएनआई तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए कर चोरी के नए रास्ते बना दिए हैं। वित्तीय लेनदेन की जानकारी कई पक्षों को देने का नियम 2017 में शुरू होने के बाद एचएनआई विदेश में नकदी रखने के बजाय रियल एस्टेट में लगा रहे हैं। अन्य देशों में अचल संपत्ति रखने की वैध वजह हो सकती हैं मगर वह काले धन को सफेद बनाने का जरिया भी हो सकता है।
हाल की रिपोर्ट कहती है कि विदेश में रखी करीब 25 फीसदी वित्तीय संपत्ति को अचल संपत्ति में बदल दिया गया है ताकि लेनदेन की जानकारी नहीं देनी पड़े। रिपोर्ट में दुबई का उदाहरण दिया गया है, जहां विदेशियों की बेशुमार अचल संपत्ति है। इसमें से 20 फीसदी तो भारतीयों की ही है और माना जाता है इसका बड़ा हिस्सा कर चोरी से आया है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों और एचएनआई की कर चोरी पर दुनिया भर के नीति निर्माताओं का ध्यान गया है। पिछले एक दशक में सरकारों ने इस चुनौती से निपटने के लिए साथ मिलकर कई अहम कदम उठाए हैं। 2013 में जी20 देशों ने अधिक कर वाले देशों से मुनाफा कम कर वाले देशों में भेजने की समस्या से निपटने का काम आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) को सौंपा, जिससे इस पर समावेशी व्यवस्था तैयार हुई। ओईसीडी ने 15 बिंदुओं की कार्य योजना बनाई, जिसे लागू करने के लिए करीब 140 देश साथ काम कर रहे हैं ताकि कर चोरी रोकी जा सके और अंतरराष्ट्रीय कर नियमन में तालमेल हो। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी।
विभिन्न सरकारों, नागरिक समाज और श्रम संगठनों ने मिलकर अंतरराष्ट्रीय कंपनी कराधान में सुधार के लिए स्वतंत्र आयोग बनाया है, जो अनुसंधान के जरिये इस समस्या को उजागर कर रहा है और कम कर वाले क्षेत्रों में मुख्यालय बना रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुनाफे को विभिन्न देशों में बांटने के तरीके सुझा रहा है। इसके लिए उनके निवेश, काराबोर या कर्मचारियों को पैमाना बनाया जा रहा है ताकि उनकी आय पर हर देश में कर वसूला जा सके।
किंतु अनुपालन सुनिश्चित करने के मामले में ज्यादा कुछ हासिल नहीं हो सका है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समझौते नहीं हुए हैं। फिर भी हाल की दो घटनाओं ने इस दिशा में कुछ अहम बदलाव किए हैं: पहली, बैंकों के लिए वित्तीय लेनदेन की जानकारी कई पक्षों को देने की जो अनिवार्यता 2017 में लागू की गई थी उसके दायरे में 2023 तक 100 से अधिक देश आ गए थे। दूसरी, बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर वैश्विक न्यूनतम कर लगाने का 2021 का अंतरराष्ट्रीय समझौता इसी दिशा में आगे का कदम है। इस पर 140 से अधिक देश राजी भी हो गए हैं। इन उपायों का असर हुआ है लेकिन कर चोरी का ठोस इलाज अभी बाकी है।
वैश्विक कर वंचना रिपोर्ट से निकले निष्कर्ष बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग और नीतिगत हस्तक्षेप बढ़ाना जरूरी क्यों है। पहला, 2013 में बैंक सूचनाओं के स्वत: आदान-प्रदान पर सहमति बनी, जिससे दुनिया भर में बैंकों की गोपनीयता कम हुई है और पिछले एक दशक के दौरान विदेश में कर चोरी करीब एक तिहाई कम हो गई है। एक दशक पहले विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 10 फीसदी हिस्सा टैक्स हैवन में परिवारों की वित्तीय संपत्ति के रूप में होता था।
विदेशों में वित्तीय संपत्ति तो उतनी ही रही मगर अब उसमें से केवल 25 फीसदी कर चोरी से आती है। यकीनन कुछ कर चोरी जारी है क्योंकि कुछ बैंक अनुपालन नहीं करते, शेल बैंक का इस्तेमाल होता है, बहुत कम जानकारी दी जाती है, अमेरिका साझा रिपोर्टिंग मानक से बाहर है, जानकारी देने के मानकों में कमियां हैं और कुछ देशों में प्रशासनिक क्षमता भी कम है।
दूसरा, 140 देशों ने वास्तविक उत्पादन वाले देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर कम से कम 15 फीसदी कर लगाने पर रजामंदी जताई है और इससे राजस्व 10 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है। लेकिन खामियों के कारण असली संग्रह उम्मीद से कम रह गया है। समय के साथ खामियां बढ़ती गईं और कर प्रोत्साहन देकर कुछ देश सबसे नीचे रहने की होड़ में लग गए।
तीसरा, दुनिया भर के अरबपति खोखा कंपनियों का इस्तेमाल कर अपनी संपत्ति पर महज 0.5 फीसदी कर चुका रहे हैं। चौथा, मुनाफे का बड़ा हिस्सा अब भी टैक्स हैवन में जा रहा है और इसमें करीब 40 फीसदी हिस्सेदारी तो अमेरिकी कंपनियों की ही है! यह रकम दुनिया भर के कंपनी कर राजस्व की 10 फीसदी तक हो सकती है।
हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों और एचएनआई को अनुपालन के लिए विवश कैसे कर सकते हैं? रिपोर्ट कहती है कि न्यूनतम कर को बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया जाए और खामियां मिटाई जाएं। इसमें दुनिया के अरबपतियों से उनकी संपत्ति का कम से कम 2 फीसदी कर वसूले जाने की भी हिमायत की गई है। लंबे अरसे से रह रहे लोग कम कर वाले देश में बसने जाएं तो उन पर भी कर लगाने का प्रस्ताव है। वैश्विक रजामंदी न बने तो देशों को खुद ये उपाय लागू कर देने चाहिए।
सवाल यह है कि वैश्विक रजामंदी के बगैर देश खुद ऐसा कर सकते हैं? क्या अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां ऐसा समझौता होने देंगी? क्या विकासशील देशों के पास शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों और एचएनआई से जूझने की ताकत है? इन सवालों का जवाब आसान नहीं है, इसलिए कशमकश चलती रहेगी।