facebookmetapixel
Robert Kiyosaki ने खोले 6 निवेश के राज, जिन्हें अपनाकर आप बन सकते हैं अमीर!IRCTC टिकट बुकिंग में नया सिस्टम, फर्जी अकाउंट्स अब नहीं बचेंगेDelhi Weather Today: दिल्ली पर घना कोहरा, AQI 500 के करीब; GRAP स्टेज-4 की कड़ी पाबंदियां लागूElon Musk का अगला बड़ा दांव! SpaceX की IPO प्लानिंग, शेयर बिक्री से ₹800 अरब डॉलर वैल्यूएशन का संकेतUP: सांसद से प्रदेश अध्यक्ष तक, पंकज चौधरी को भाजपा की नई जिम्मेदारीइनकम टैक्स डिपार्टमेंट का अलर्ट: फर्जी डोनेशन क्लेम पर टैक्सपेयर्स को मिलेगा SMS और ईमेलदिल्ली की हवा फिर बिगड़ी, AQI 450 के करीब पहुंचते ही GRAP स्टेज-4 के सभी नियम पूरे NCR में लागूकिराया सीमा के बाद भी मनमानी? 10 में 6 यात्रियों ने एयरलाइंस पर नियम तोड़ने का आरोप लगायाCorporate Actions: बोनस, डिविडेंड और स्प्लिट से भरपूर रहने वाला है अगला हफ्ता, निवेशकों के लिए अलर्ट मोडDividend Stocks: महारत्न PSU अपने निवेशकों को देने जा रही 50% का डिविडेंड, रिकॉर्ड डेट अगले हफ्ते

कोविड की दूसरी लहर से मुकाबले का तरीका

Last Updated- December 12, 2022 | 6:01 AM IST

वर्ष 2020 में लग रहा था कि महामारी का प्रकोप धीरे-धीरे कम हो रहा है। लेकिन अब हम कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से गुजर रहे हैं। इस प्रसार के लिए वायरस की नई किस्मों के उभार, शारीरिक दूरी रखने में कोताही और आंकड़ों से जुड़ी मुश्किलें हैं। लॉकडाउन वायरस के प्रसार पर काबू पाने का एक तीखा समाधान है और इससे परहेज करना चाहिए। कंपनियों को इस बदली हुई हकीकत में वर्ष 2021-22 के लिए रणनीतियां बनाने की जरूरत है। सबसे महत्त्वपूर्ण तरीका बीमारी के बारे में बेहतर आंकड़े और टीकाकरण पर सरकारी नियंत्रण खत्म करना है।
यह बीमारी वर्ष 2020 के शुरुआती दौर में बहुत तेजी से फैली थी। सीरो-सर्वेक्षण से पता चला कि जुलाई-अगस्त तक भारत की आबादी के अच्छे-खासे हिस्से में कोरोनावायरस की ऐंटीबॉडी विकसित हो चुकी थी। मुंबई के बारे में यह सामने आया कि अमीर लोग महामारी के दौरान अपने घरों में ही बंद रहे जबकि रोजी-रोटी की तलाश में बाहर निकलने को मजबूर गरीबों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी थी। ऐसे में इसकी पूरी संभावना थी कि धनी लोग टीकाकरण में तेजी दिखाएंगे और कोविड की फटकार शांत होने लगेगी। लेकिन टीका-निर्माताओं, वायरस के अलग प्रकारों और व्यवहार के बीच जारी रस्साकशी के बीच हम महामारी की दूसरी लहर में फंस गए हैं।
डेटा की समस्याएं: कोरोना संक्रमण की जांच एवं सकारात्मक पाए जाने वाले लोगों की संख्या पर मानक आंकड़े समस्यापरक हैं। जांच का काम यादृच्छिक आधार पर नहीं होता है। पिछले साल कुछ महीनों तक कोरोना जांच पर सरकार का ही एकाधिकार था और कुछ समय बाद ही निजी क्षेत्र के दरवाजे इसके लिए खोले गए। जांचों की किल्लत भी चल रही थी। गरीबों में महामारी पैर पसार रही थी और अमूमन वे अपनी जांच भी नहींं करा रहे थे। ऐसे में पिछले साल के जांच आंकड़ों में तमाम बीमार लोग शामिल होने से रह गए। जांच के आंकड़े और सीरो-प्रसार सर्वेक्षण के आंकड़ों में मौजूद फर्क इसकी तस्दीक भी करता है।
आज यह बीमारी अमीरों में भी फैल रही है और उनके कोविड जांच कराने की पूरी संभावना है। निजी क्षेत्र की जांच में क्षमता संबंधी गतिरोधों को दूर किया जा चुका है। हम स्वास्थ्य देखभाल क्षमता में तनाव की खबरें देखते-सुनते ही हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य देखभाल सेवा का इस्तेमाल करने की संभावना अमीरों में अधिक होती है।
गैर-यादृच्छिक जांच भारत में परंपरागत कोविड-19 डेटा का अभिशाप रही है और मौजूदा स्थिति इस बात का एक बढिय़ा उदाहरण है कि इस आंकड़े के परीक्षण में क्यों सावधानी बरतनी चाहिए। भारत में कोविड-19 पर इकलौता उपयोगी डेटा घरों से औचक जुटाए गए नमूने ही हैं।
वायरस के प्रकार: कोरोनावायरस का एक नया प्रकार सामने आया है जिसे बी1.1.7 का कूटनाम दिया गया है। यह प्रकार अधिक संक्रामक एवं उग्र माना जा रहा है। ई-484के जैसी दूसरी वायरस किस्में भी एक भयावह आशंका है। इसकी तर्कसंगत संभावना है कि वायरस की नई किस्में भारत में अपनी जड़ें जमा चुकी हैं। इस तर्क के आधार पर कोविड-19 महामारी आज पिछले साल की तुलना में कहींं अधिक बड़ी समस्या बन चुकी है। दुनिया भर में इस्तेमाल हो रहे टीके नई वायरस किस्मों पर भी आम तौर पर असरदार हैं। लेकिन वैज्ञानिकों को नई किस्मों को ध्यान में रखते हुए टीकों के संवद्र्धित संस्करण उतारने होंगे। मानव प्रतिरक्षा प्रणाली में नए आंकड़े को लोड करने के लिए बूस्टर खुराकों की भी जरूरत पड़ सकती है।
व्यवहार: लोग कई महीनों से शारीरिक दूरी का पालन करते-करते भावनात्मक तौर पर थक चुके हैं और इसके साथ आर्थिक तनाव भी है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की बहाली ने आर्थिक परिस्थितियों में वैश्विक सुधारों को गति देने में मदद की है और आय को पुराने स्तर पर लाने के लिए हर कोई हर कारोबारी मौके को भुनाने के लिए लालायित है। यह एहतियातों की एक कीमत पर हुआ है।
इस स्थिति में नीति-निर्माताओं को क्या करना चाहिए?
कंपनियों को इस संभावना को भी ध्यान में रखना चाहिए कि सरकारें फिर से लॉकडाउन कर देंगी। लॉकडाउन के पिछले अनुभव से मिले सबक पर गौर करना समझदारी होगी और इसके आधार पर भविष्य में भी ऐसे हालात के लिए कहीं  बेहतर  ढंग से तैयार रहा जा सकता है।
कंपनियों को यह मानकर चलना चाहिए कि कोविड-19 से जुड़े आर्थिक तनाव जल्दी खत्म नहीं होंगे और नए वित्त वर्ष पर भी इसका साया मंडराता रहेगा। दफ्तर के तय ढांचे से इतर घरों से काम करने का चलन महज अपवाद नहीं था, यह आधुनिक कार्यस्थल का एक अनवरत अंग होगा। लिहाजा उस कामकाजी परिवेश के हिसाब से प्रक्रियाएं भी निर्धारित करने की जरूरत है। कंपनियों को अपने कर्मचारियों और ग्राहकों के अलावा उनके घरवालों के टीकाकरण के लिए खास अभियान चलाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि सामान्य स्थिति की बहाली का यही सही रास्ता है।
दूर रहते हुए काम करना, वयस्क टीकाकरण अभियान एवं दरवाजों पर तापमान की स्क्रीनिंग नए दौर का स्थायी भाव है।
सरकार के भीतर बैठे नीति-निर्माताओं के लिए सख्त लॉकडाउन लगाना सुरक्षा रंगमंच जैसा है लेकिन लागत के बरक्स लाभ के विश्लेषण में यह बहुत पीछे छूट जाता है। परीक्षण आंकड़े दूसरी लहर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं। मास्क जैसे आम स्वास्थ्य उपकरण के इस्तेमाल को बाध्यकारी बनाना कहीं बेहतर है। शादियों, मंदिरों एवं नाइटक्लब में भीड़भाड़ रोकने और एयर कंडिशनरों के वेंटिलेशन में बदलाव के लिए राज्य की शक्ति का इस्तेमाल सीमित ढंग से ही होना चाहिए।
हमें टीकाकरण की दिशा में बेहतर प्रदर्शन की जरूरत है। फिलहाल भारत की सिर्फ 5 फीसदी आबादी को ही कोविड का टीका लगा है जबकि ब्रिटेन की आधी आबादी को टीका लग चुका है। अमेरिका एवं ब्रिटेन रोजाना 100 लोगों के लिए  0.8-0.9 खुराक जारी कर रहे हैं लेकिन भारत में यह मूल्य छह गुना कम 0.15 प्रति 100 है।
एक समरूपता पर गौर कीजिए। भारत में जब कोविड-19 की जांच शुरू हुई थी तो निजी प्रयोगशालाओं को जांच से रोकने के लिए सरकारी शक्ति का इस्तेमाल किया गया था। इसके नतीजे बेहद खराब रहे। बहरहाल समय रहते सूझबूझ आई और भारत के विशाल निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को भी कोरोना जांच में शामिल कर लिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत का जांच अंतराल दूर हो पाया।
फिलहाल टीकाकरण में सरकारी व्यवस्था का ही एकाधिकार है। राज्य की अगुआई वाला टीकाकरण अमेरिका एवं ब्रिटेन में ठीक से काम कर रहा है। भारत में सरकारी क्षमता कम है और टीका खुराकों की आवक भी छह गुना कम है। नीति-निर्माताओं को टीकाकरण में सभी सरकारी दबाव हटा देने चाहिए। कई टीकों का आयात किया जाए और अपने पड़ोसियों, कर्मचारियों, ग्राहकों एवं परिसर में रहने वाले लोगों के लिए टीकाकरण शिविर लगाए जाएं। मसलन, दो-दो खुराकें देने की परिचालन मजबूरियों को देखते हुए भारत के अधिकांश हिस्से में जॉनसन ऐंड जॉनसन का एकल खुराक टीका अधिक आकर्षक विकल्प नजर आता है। हमें टीके के एकल रूप से बचना चाहिए क्योंकि यह अपने बचाव के तरीके तलाश चुके खास किस्म के कोरोनावायरस के मुकाबले अधिक अशक्त होगा।
फिलहाल 30 लाख खुराकें प्रतिदिन लगाई जा रही हैं। इस दर से देश के करीब 100 करोड़ लोगों को कोविड का टीका लगाने में 600 दिन लग जाएंगे। अगर हम अमेरिका एवं ब्रिटेन की आधी दर (प्रति 100 लोगों को प्रतिदिन 0.5 खुराक) भी हासिल करने में सफल हो जाते हैं तो यह अवधि घटकर 190 दिन रह जाएगी।
आंकड़ों का फासला ठोस फैसलों को बाधित करता है। हमें सीरो-प्रसार, संक्रमण एवं टीकाकरण की दरों के बारे में जानने की जरूरत है। हमें वायरस किस्मों की जीनोम निगरानी के साथ हरेक टीके के लिए पुनर्संक्रमण दर पर नजर रखने की जरूरत है। भारत के 200 शहरों में घरों से यादृच्छिक नमूने जुटाकर हर हफ्ते यह काम करना होगा।
(लेखक स्वतंत्र आर्थिक विश्लेषक हैं)

First Published - April 12, 2021 | 11:15 PM IST

संबंधित पोस्ट