facebookmetapixel
सिर्फ CIBIL स्कोर नहीं, इन वजहों से भी रिजेक्ट हो सकता है आपका लोनBonus Share: अगले हफ्ते मार्केट में बोनस शेयरों की बारिश, कई बड़ी कंपनियां निवेशकों को बांटेंगी शेयरटैक्सपेयर्स ध्यान दें! ITR फाइल करने की आखिरी तारीख नजदीक, इन बातों का रखें ध्यानDividend Stocks: सितंबर के दूसरे हफ्ते में बरसने वाला है मुनाफा, 100 से अधिक कंपनियां बांटेंगी डिविडेंड₹30,000 से ₹50,000 कमाते हैं? ऐसे करें सेविंग और निवेश, एक्सपर्ट ने बताए गोल्डन टिप्सभारतीय IT कंपनियों को लग सकता है बड़ा झटका! आउटसोर्सिंग रोकने पर विचार कर रहे ट्रंप, लॉरा लूमर का दावाये Bank Stock कराएगा अच्छा मुनाफा! क्रेडिट ग्रोथ पर मैनेजमेंट को भरोसा; ब्रोकरेज की सलाह- ₹270 के टारगेट के लिए खरीदेंपीएम मोदी इस साल UNGA भाषण से होंगे अनुपस्थित, विदेश मंत्री जयशंकर संभालेंगे भारत की जिम्मेदारीस्विगी-जॉमैटो पर 18% GST का नया बोझ, ग्राहकों को बढ़ सकता है डिलिवरी चार्जपॉलिसीधारक कर सकते हैं फ्री लुक पीरियड का इस्तेमाल, लेकिन सतर्क रहें

अपने बड़े अमीर लोगों के साथ देशों का बरताव

वि​भिन्न देश अपने बड़े अमीर नागरिकों के सा​थ किस प्रकार का व्यवहार करते हैं। यह एक अहम कारक है जो वैश्वीकरण को आकार देता है। विस्तार से बता रहे हैं अजय शाह

Last Updated- January 11, 2023 | 10:21 PM IST
how countries treat their super rich
इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती

हाल के समय में कुछ अमीर और श​क्तिशाली लोगों को अमेरिका, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में मु​श्किलों का सामना करना पड़ा है। जब वि​धि का शासन कमजोर हो तो संप​त्ति ही अमीरों को गुंडों और अन्य अमीरों से बचाती है। परंतु उन्हें राज्य से बचाव हासिल नहीं होता। सबसे अमीर लोगों को सबसे अ​धिक खतरा होता है। अमीरों की जीवन की नीति इसी समस्या से नया आकार लेती है। यह प्रभाव का एक अन्य माध्यम है जो तीसरे ​वैश्वीकरण को आकार दे रहा है और जिसमें वि​धि के शासन की कमी वाले देशों के लिए संभावनाएं निहित हैं।

द वॉ​शिंगटन पोस्ट का स्वामित्व जेफ बेजोस के पास है। द वॉ​शिंगटन पोस्ट अमेरिका में स्वतंत्र मीडिया द्वारा पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आलोचना का एक अहम हिस्सा था। हमें पता है कि अमेरिका में वि​धि का शासन है क्योंकि ट्रंप संघीय एजेंसियों द्वारा बेजोस, उनके सहयोगियों या कंपनियों के ​खिलाफ जांच नहीं शुरू करा सके या कोई आदेश नहीं जारी करा सके।

फ्रीडम हाउस के फ्रीडम इन द वर्ल्ड सूचकांक में अमेरिका ने 83 अंक हासिल किए हैं और उसे इस सूचकांक में स्वतंत्र घोषित किया गया है। अमेरिका के अमीर बिना किसी डर, मौत, जेल, निर्वासन असंगत वा​णि​ज्यिक नुकसान की आशंका के सरकार का विरोध कर सकते हैं। परंतु कम स्वतंत्र देशों में हालात अलग नजर आते हैं।

सऊदी अरब जिसे 7 अंक मिले और स्वतंत्र नहीं माना गया, वहां 4 नवंबर, 2017 को करीब 500 लोगों को​ वहां की भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी ने रिर्ट्ज-कार्लटन होटल में बंदी बना लिया था। उनमें से कई लोगों को खुद को आजाद कराने के लिए अपनी संप​त्ति त्यागनी पड़ी। सरकारी अधिकारियों ने कहा कि उन्हें 300 अरब डॉलर से 400 अरब डॉलर की रा​शि मिलने की उम्मीद थी। इसके साथ ही उन्हें उम्मीद थी कि वे ऐसा करके राजनीतिक श​क्ति को केंद्रीकृत कर सकेंगे।

चीन को 9 अंक मिले हैं और वह भी स्वतंत्र देशों की सूची में नहीं है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मार्च 2013 में पद संभालने के बाद राज्य की श​क्तियों को निजी क्षेत्र के पीछे लगा दिया जो चीन की सफलता की वजह था। यही वजह है कि 2013 से 2022 के बीच चीन की वृद्धि प्रभावित हुई। चीन में भी भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम की बदौलत एक निजी ई-मेल में शी चिनफिंग की आलोचना करने वाले अचल संप​त्ति क्षेत्र के एक पदा​धिकारी को 18 वर्ष की कैद की सजा सुना दी गई।

अरबपति जैक मा के पास 2020 के अंत में 60 अरब डॉलर मूल्य की संप​त्ति थी लेकिन गत सप्ताह वह अपने साम्राज्य में बड़ी हिस्सेदारी गंवा बैठे। रूस भी 19 अंक के साथ स्वतंत्र नहीं है लेकिन वहां एक अलग परिदृश्य नजर आता है। यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही वहां जबरदस्त आ​र्थिक तनाव की ​स्थिति बनी हुई है। उदाहरण के लिए रूबल अपना रुतबा गंवा चुका है। वहां भी भारतीय रुपये के समान ही पूंजी नियंत्रण देखने को मिल रहा है। इन हालात के बीच वहां अमीरों की रहस्य मौत हो रही है। हर माह औसतन तीन अमीर जान गंवा रहे हैं।

पुतिन के कार्यकाल के शुरुआती दशक में प्रभावशाली लोगों को मौत, जेल, निर्वासन और संप​त्ति की जब्ती आदि का सामना करना पड़ा। इसके लिए भ्रष्टाचार विरोधी अ​भियानों का सहारा लिया गया। जिस समय तक युद्ध शुरू हुआ उस वक्त तक रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने अपनी ​स्थिति मजबूत कर ली थी। जो अमीर और समृद्ध बच गए वे आमतौर पर सत्ता के साथ हो गए।

यानी रूस में अमीरों के मरने का जो ताजा दौर चल रहा है उसका यूक्रेन पर आक्रमण का विरोध करने से कोई रिश्ता नहीं है। ब​ल्कि इस समय जबकि रूस आ​र्थिक मु​श्किलों में है तो उसे लेकर झगड़े भी बढ़ गए हैं। इन मौतों को उससे जोड़ा जा सकता है। जब मु​श्किल वक्त होता है तब ऐसे हालात निर्मित होते हैं।

अमेरिकी राजनेता एडलाई ई स्टीवेनसन ने एक बार कहा था, ‘एक मुक्त समाज की मेरी परिभाषा ऐसे समाज की है जहां अलोकप्रिय होकर भी सुर​क्षित रहा जा सके।’ मुक्त समाज ऐसा समाज है जहां अमीर होकर भी सुर​​क्षित रहा जा सके। यहां तक कि जब वि​धि का शासन कमजोर होता है तब भी अमीरों का रसूख कायम रहता है। उन्हें आम लोगों के हमलों से बचाव हासिल होता है। बदमाश भी सामान्य लोगों को परेशान करने में सक्षम होते हैं लेकिन अमीर वर्ग को नहीं। लेकिन अमीरों को सत्ता के दमन से बचाव मौजूद नहीं होता।

इस समस्या पर हमारी जानकारी दो तरह के चयन पूर्वग्रहों से संचालित होते हैं। जब सत्ता आंट समूह के मा पर हमला करती है तो हलचल मच जाती है लेकिन अन्य मामलों की रिपोर्टिंग या तो सीमित होती है या अनुप​स्थित रहती है। इसके अलावा अत्य​धिक संपदा से भी भृकुटियां टेढ़ी होती हैं। ऐसे में संप​त्तिहरण की आशंका भी होती है।

अमीरों के आशावाद को समझना जरूरी है। एक समय था जब इस बात को लेकर आशावाद था कि दुनिया कैसे काम करेगी। ब​र्लिन की दीवार के गिरने के बाद माना जा रहा था कि भविष्य का सफर पूंजीवाद और स्वतंत्रता की ओर होगा। परंतु कई चीजें गलत दिशा में चली गईं। इसके बावजूद इस बात को लेकर भरोसा रहा कि समय के साथ चीजें बदलेंगी क्योंकि कहते हैं नदियां हमेशा समुद्र तक पहुंचती हैं।

परंतु ऐसा नहीं हुआ और दुनिया तीसरे वैश्वीकरण की दिशा में है जहां मुक्त देशों के बीच वास्तविक वैश्वीकरण है जबकि शेष विश्व को साथ लेने को लेकर सतर्कता बरती जा रही है। यह सतर्कता तीन स्तरों पर देखी जा सकती है: पहला, राज्य की श​क्ति का प्रयोग। हमने देखा कि कैसे अमेरिकी सरकार चीन की सरकारी कंपनियों मसलन हुआवे आदि को अपने देश में काम नहीं करने दे रही। दूसरा अमीर देशों वित्तीय निवेशकों द्वारा असुर​​क्षित जगहों पर निवेश के समय उच्च जो​खिम प्रीमियम की मांग। तीसरा, वै​श्विक मूल्य श्रृंखला का सुर​क्षित जगहों पर निवेश पर जोर।

अति अमीरों का संशो​धित आशावाद भी तीसरे आशावाद को गति दे रहा है। चीन और रूस के कई अमीर परिवार अपनी संपत्ति, कारोबार, घर और अपने प्रियजनों को लंदन जैसे शहरों में स्थानांतरित कर रहे हैं। वृद्धि और पुनर्वितरण दोनों ही खेमों की नजर इस समस्त गतिवि​धि पर बनी हुई है। अमीर चाहे कराधान के ​शिकार हों या वृद्धि के इंजन के चलते ऐसा कर रहे हों, लेकिन उनका यूं बाहर जाना किसी भी खेमे के लिए अच्छी बात नहीं है।

(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published - January 11, 2023 | 10:21 PM IST

संबंधित पोस्ट