हाल के समय में कुछ अमीर और शक्तिशाली लोगों को अमेरिका, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। जब विधि का शासन कमजोर हो तो संपत्ति ही अमीरों को गुंडों और अन्य अमीरों से बचाती है। परंतु उन्हें राज्य से बचाव हासिल नहीं होता। सबसे अमीर लोगों को सबसे अधिक खतरा होता है। अमीरों की जीवन की नीति इसी समस्या से नया आकार लेती है। यह प्रभाव का एक अन्य माध्यम है जो तीसरे वैश्वीकरण को आकार दे रहा है और जिसमें विधि के शासन की कमी वाले देशों के लिए संभावनाएं निहित हैं।
द वॉशिंगटन पोस्ट का स्वामित्व जेफ बेजोस के पास है। द वॉशिंगटन पोस्ट अमेरिका में स्वतंत्र मीडिया द्वारा पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आलोचना का एक अहम हिस्सा था। हमें पता है कि अमेरिका में विधि का शासन है क्योंकि ट्रंप संघीय एजेंसियों द्वारा बेजोस, उनके सहयोगियों या कंपनियों के खिलाफ जांच नहीं शुरू करा सके या कोई आदेश नहीं जारी करा सके।
फ्रीडम हाउस के फ्रीडम इन द वर्ल्ड सूचकांक में अमेरिका ने 83 अंक हासिल किए हैं और उसे इस सूचकांक में स्वतंत्र घोषित किया गया है। अमेरिका के अमीर बिना किसी डर, मौत, जेल, निर्वासन असंगत वाणिज्यिक नुकसान की आशंका के सरकार का विरोध कर सकते हैं। परंतु कम स्वतंत्र देशों में हालात अलग नजर आते हैं।
सऊदी अरब जिसे 7 अंक मिले और स्वतंत्र नहीं माना गया, वहां 4 नवंबर, 2017 को करीब 500 लोगों को वहां की भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी ने रिर्ट्ज-कार्लटन होटल में बंदी बना लिया था। उनमें से कई लोगों को खुद को आजाद कराने के लिए अपनी संपत्ति त्यागनी पड़ी। सरकारी अधिकारियों ने कहा कि उन्हें 300 अरब डॉलर से 400 अरब डॉलर की राशि मिलने की उम्मीद थी। इसके साथ ही उन्हें उम्मीद थी कि वे ऐसा करके राजनीतिक शक्ति को केंद्रीकृत कर सकेंगे।
चीन को 9 अंक मिले हैं और वह भी स्वतंत्र देशों की सूची में नहीं है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मार्च 2013 में पद संभालने के बाद राज्य की शक्तियों को निजी क्षेत्र के पीछे लगा दिया जो चीन की सफलता की वजह था। यही वजह है कि 2013 से 2022 के बीच चीन की वृद्धि प्रभावित हुई। चीन में भी भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम की बदौलत एक निजी ई-मेल में शी चिनफिंग की आलोचना करने वाले अचल संपत्ति क्षेत्र के एक पदाधिकारी को 18 वर्ष की कैद की सजा सुना दी गई।
अरबपति जैक मा के पास 2020 के अंत में 60 अरब डॉलर मूल्य की संपत्ति थी लेकिन गत सप्ताह वह अपने साम्राज्य में बड़ी हिस्सेदारी गंवा बैठे। रूस भी 19 अंक के साथ स्वतंत्र नहीं है लेकिन वहां एक अलग परिदृश्य नजर आता है। यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही वहां जबरदस्त आर्थिक तनाव की स्थिति बनी हुई है। उदाहरण के लिए रूबल अपना रुतबा गंवा चुका है। वहां भी भारतीय रुपये के समान ही पूंजी नियंत्रण देखने को मिल रहा है। इन हालात के बीच वहां अमीरों की रहस्य मौत हो रही है। हर माह औसतन तीन अमीर जान गंवा रहे हैं।
पुतिन के कार्यकाल के शुरुआती दशक में प्रभावशाली लोगों को मौत, जेल, निर्वासन और संपत्ति की जब्ती आदि का सामना करना पड़ा। इसके लिए भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों का सहारा लिया गया। जिस समय तक युद्ध शुरू हुआ उस वक्त तक रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। जो अमीर और समृद्ध बच गए वे आमतौर पर सत्ता के साथ हो गए।
यानी रूस में अमीरों के मरने का जो ताजा दौर चल रहा है उसका यूक्रेन पर आक्रमण का विरोध करने से कोई रिश्ता नहीं है। बल्कि इस समय जबकि रूस आर्थिक मुश्किलों में है तो उसे लेकर झगड़े भी बढ़ गए हैं। इन मौतों को उससे जोड़ा जा सकता है। जब मुश्किल वक्त होता है तब ऐसे हालात निर्मित होते हैं।
अमेरिकी राजनेता एडलाई ई स्टीवेनसन ने एक बार कहा था, ‘एक मुक्त समाज की मेरी परिभाषा ऐसे समाज की है जहां अलोकप्रिय होकर भी सुरक्षित रहा जा सके।’ मुक्त समाज ऐसा समाज है जहां अमीर होकर भी सुरक्षित रहा जा सके। यहां तक कि जब विधि का शासन कमजोर होता है तब भी अमीरों का रसूख कायम रहता है। उन्हें आम लोगों के हमलों से बचाव हासिल होता है। बदमाश भी सामान्य लोगों को परेशान करने में सक्षम होते हैं लेकिन अमीर वर्ग को नहीं। लेकिन अमीरों को सत्ता के दमन से बचाव मौजूद नहीं होता।
इस समस्या पर हमारी जानकारी दो तरह के चयन पूर्वग्रहों से संचालित होते हैं। जब सत्ता आंट समूह के मा पर हमला करती है तो हलचल मच जाती है लेकिन अन्य मामलों की रिपोर्टिंग या तो सीमित होती है या अनुपस्थित रहती है। इसके अलावा अत्यधिक संपदा से भी भृकुटियां टेढ़ी होती हैं। ऐसे में संपत्तिहरण की आशंका भी होती है।
अमीरों के आशावाद को समझना जरूरी है। एक समय था जब इस बात को लेकर आशावाद था कि दुनिया कैसे काम करेगी। बर्लिन की दीवार के गिरने के बाद माना जा रहा था कि भविष्य का सफर पूंजीवाद और स्वतंत्रता की ओर होगा। परंतु कई चीजें गलत दिशा में चली गईं। इसके बावजूद इस बात को लेकर भरोसा रहा कि समय के साथ चीजें बदलेंगी क्योंकि कहते हैं नदियां हमेशा समुद्र तक पहुंचती हैं।
परंतु ऐसा नहीं हुआ और दुनिया तीसरे वैश्वीकरण की दिशा में है जहां मुक्त देशों के बीच वास्तविक वैश्वीकरण है जबकि शेष विश्व को साथ लेने को लेकर सतर्कता बरती जा रही है। यह सतर्कता तीन स्तरों पर देखी जा सकती है: पहला, राज्य की शक्ति का प्रयोग। हमने देखा कि कैसे अमेरिकी सरकार चीन की सरकारी कंपनियों मसलन हुआवे आदि को अपने देश में काम नहीं करने दे रही। दूसरा अमीर देशों वित्तीय निवेशकों द्वारा असुरक्षित जगहों पर निवेश के समय उच्च जोखिम प्रीमियम की मांग। तीसरा, वैश्विक मूल्य श्रृंखला का सुरक्षित जगहों पर निवेश पर जोर।
अति अमीरों का संशोधित आशावाद भी तीसरे आशावाद को गति दे रहा है। चीन और रूस के कई अमीर परिवार अपनी संपत्ति, कारोबार, घर और अपने प्रियजनों को लंदन जैसे शहरों में स्थानांतरित कर रहे हैं। वृद्धि और पुनर्वितरण दोनों ही खेमों की नजर इस समस्त गतिविधि पर बनी हुई है। अमीर चाहे कराधान के शिकार हों या वृद्धि के इंजन के चलते ऐसा कर रहे हों, लेकिन उनका यूं बाहर जाना किसी भी खेमे के लिए अच्छी बात नहीं है।
(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)