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खतरनाक कचरे के खतरे

Last Updated- December 29, 2022 | 11:30 PM IST
hazardous waste hazards
Creative Commons license

देश में कचरा प्रबंधन उद्योग की अनियमित प्रकृति के कारण हमारा देश दुनिया भर के कचरे का डंपिंग ग्राउंड बन गया है। यह बात हमारे पर्यावरण और जन स्वास्थ्य दोनों के लिए नुकसानदेह है। इसके लिए काफी हद तक निगरानी और नियंत्रण की कमजोरी, भ्रष्टाचार और सबसे बढ़कर गरीब भारतीय श्रमिकों की मौजूदगी जिम्मेदार है जो देश के अलग-अलग हिस्सों में अत्य​धिक गरीबी में जीवन बिता रहे हैं। यह बात ब्लूमबर्ग की एक हालिया रिपोर्ट से भी जाहिर होती है जिससे पता चलता है कि देश की राजधानी से महज 128 किलोमीटर दूर ​स्थित मुजफ्फरनगर में अमेरिका से आने वाले प्ला​स्टिक कचरे के लिए एक बड़ा डंपिंग ग्राउंड है।

ऐसे ज्यादातर मामले रिसाइकल्ड अर्थात पुनर्चक्रित प्ला​स्टिक पेपर के आयात की आड़ में छिप जाते हैं क्योंकि इस क्षेत्र की कागज मिलें इसे लकड़ी की छाल की तुलना में सस्ते कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करती हैं। कानून के मुताबिक सरकार पुनर्चक्रित पेपर में दो फीसदी तक की मिलावट की इजाजत देती है। इस नियमन के कारण बड़े पैमाने पर प्ला​स्टिक कचरे मसलन ​शिपिंग में काम आने वाले लिफाफों, गंदे डाइपर, प्ला​स्टिक की बोतलों आदि के देश में बिना किसी जांच पड़ताल के आसानी से आने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

हालांकि आयातित कचरे का यह पहाड़ भी हजारों कचरा बीनने वालों को रोजगार प्रदान करता है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार मिलों में वे कचरे को छांटते हैं ताकि कीमती सामान मसलन पानी की बोतल आदि छांट सकें जिनका पुनर्चक्रण संभव है।​ बिना लाइसेंस वाले ठेकेदार बाकी कचरा ले जाते हैं और लगभग 250-300 रुपये रोजाना की दर से भुगतान कर उसे दोबारा छंटवाते हैं ताकि पुनर्चक्रित करने लायक कोई और सामग्री मिले तो निकाली जा सके।

शेष कचरे को पेपर और चीनी मिलों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल के लिए बेच दिया जाता है। इनमें से किसी मिल के पास ऐसे बॉयलर और फर्नेस नहीं हैं जो इस कचरे को पूरी तरह समाप्त कर सकें, न ही ऐसे फिल्टरेशन संयंत्र हैं जो जहरीले उत्सर्जन को नियंत्रित कर सकें। ऐसे में इस भीड़भाड़ वाले शहर के सात लाख बा​शिंदे नियमित रूप से माइक्रोप्ला​स्टिक वाली हवा में सांस लेने को विवश हैं।

यह रिपोर्ट भारत के कचरा प्रबंधन कारोबार का एक गंदा सच बाहर लाती है। एक और जाना-पहचाना कारोबार है ई-कचरा जिसे स्वीकार नहीं किया जाता है। ई-कचरे में न केवल भारत के पुराने लैपटॉपों, मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं से उत्पन्न कचरा आता है, वहीं इसमें प​श्चिम से आयातित कचरा भी शामिल है। वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी थी कि दुनिया के इलेक्ट्रॉनिक कचरे में से 90 फीसदी भारत आता है। मुजफ्फरनगर की तरह यह जहरीला कचरा रद्दीवालों के असंगठित क्षेत्र की आजीविका का एक बड़ा जरिया है।

उन्हें रद्दी चुनने के लिए बहुत मामूली भुगतान किया जाता है और उनके पास सुर​क्षित ढंग से काम करने के लिए जरूरी उपकरण भी नहीं होते। बाकी कचरे को सीधे आग के हवाले कर दिया जाता है जिससे हवा में भयंकर प्रदूषण फैलता है। ध्यान देने वाली बात है कि सरकार द्वारा 2016 में अधिसूचित नियमों के तहत ई-कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद यह कारोबार फल-फूल रहा है। इस वर्ष के आरंभ में सरकार ने संसद को बताया था कि 2019 से अब तक अवैध ई-कचरा आयात के 29 मामले देश भर में पकड़े गए हैं।

विकसित देशों द्वारा भारत जैसे देशों में कचरा निपटान को रोकने के लिए कड़े कानून प्रवर्तन और निगरानी व्यवस्था की आवश्यकता है जिसमें बंदरगाहों से लेकर प्रदूषण नियंत्रण तक हर जगह सख्ती बरतनी होगी। लेकिन अगर आ​र्थिक वृद्धि टिकाऊ ढंग से आगे नहीं बढ़ी और देश की बढ़ती श्रम श​क्ति को सार्थक रोजगार हीं मिले तो रिसाइ​कलिंग करने वाली कंपनियों से लेकर रद्दीवालों तक को ऐसे काम अपनाने का प्रोत्साहन मिलता रहेगा। 

First Published - December 29, 2022 | 9:41 PM IST

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