महिंद्रा एंड महिंद्रा के रुद्रपुर प्लांट के कर्मचारियों ने अपनी ईएसओपी (एंप्लॉयीज स्टॉक ओनरशिप प्लान) बजट और इंजीनियरिंग क्षमता के जरिये एक अस्पताल खोला है।
जब महिंद्रा एंड महिंद्रा ने हर साल अपने टैक्स के बाद लाभ (पीएटी) का 1 फीसदी हिस्सा समाज और सामुदायिक हितों से जुड़े कार्यों में खर्च करने का फैसला किया, तो उसे अपने इस प्रोजेक्ट के लिए अलग पहचान की जरूरत महसूस हुई। इस जरूरत के मद्देनजर कंपनी ने ईएसओपी की शुरुआत की।महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अपने कर्मचारियों को शेयर के विकल्पों के बजाय (जो जाहिर तौर पर मौजूद है) ‘सामाजिक विकल्प’ ऑफर करने का फैसला किया।
इसकी महत्ता सुनिश्चित करने के लिए कंपनी ने अपने मध्य क्रम और सीनियर स्तर के कर्मचारियों के प्रदर्शन के निर्धारण में ईएसओपी को प्रमुख आधार बनाया है। कंपनी की मानव संसाधन (एचआर) और कॉरपोरेट सेवाओं के अध्यक्ष राजीव दुबे कहते हैं, ‘ईएसओपी के मामले में बेहतर प्रदर्शन करने वाले कर्मचारी ऊंचे वेतन और भत्ते के हकदार होंगे। हालांकि यह तो पूरी कहानी का एक हिस्सा है। दरअसल, इसके जरिये महिंद्रा के कर्मचारियों के समाज में योगदान को सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है।’
यहां सवाल यह पैदा होता है कि यह कवायद अन्य कंपनियों की सीएसआर ( कॉरपोरेट सामाजिक जवाबदेही) से किस तरह अलग है? इस मामले में दुबे का कहना है कि ईएसओपी स्कीम को इस कदर तैयार किया गया है कि यह कर्मचारियों से पूरी तरह जुड़ा हुआ हो। साथ ही एक अन्य मामले में यह स्कीम सीएसआर से अलग है। इसमें कर्मचारियों के मौद्रिक योगदान के बजाय सामाजिक कार्यों के योगदान को ज्यादा तवाो दी गई है।
ईएसओपी स्कीम महज जनसंपर्क का हथियार बनकर न रह जाए और सुचारु रूप से चले, इसके लिए कंपनी ने इस बाबत विस्तृत ढांचा तैयार किया है। कंपनी के हर प्लांट और ऑफिस का अपना अलग ईएसओपी प्रमुख, ईएसओपी चैंपियन और इस स्कीम को लागू करने वाली काउंसिल है, जो इस स्कीम में कर्मचारियों की अधिकतम सहभागिता के लिए जिम्मेदार हैं। यह सिस्टम काफी अच्छे ढंग से काम भी कर रहा है।
मिसाल के तौर पर लाइफलाइन एक्सप्रेस स्कीम का जिक्र किया जा सकता है। इसके जरिये उत्तराखंड में पहली बार चलते-फिरते रेल अस्पताल का निर्माण किया गया है। इसमें महिंद्रा एंड महिंद्रा के रुद्रपुर प्लांट स्थित कृषि उपकरण सेक्टर के कर्मचारियों का प्रमुख योगदान रहा है। इन कर्मचारियों ने अपने ईएसओपी बजट का इस्तेमाल इस बड़े हेल्थ प्रोजेक्ट में करने का फैसला किया।
इस प्रोजेक्ट के तहत लाइफलाइन एक्सप्रेस दूर-दराज के इलाकों में मुफ्त मेडिकल और सर्जरी सेवाएं मुहैया कराता है। लाइफलाइन एक्सप्रेस में पूरी तरह से एयरकंडीशंड 5 डिब्बे हैं, जो आधुनिक मेडिकल और सर्जिकल सुविधाओं से लैस हैं। साथ ही इसमें डॉक्टर भी मौजूद रहते हैं। चूंकि यह महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी द्वारा की गई सबसे बड़ी ईएसओपी पहल थी. इसलिए कंपनी के आला प्रबंधन अधिकारियों ने महसूस किया कि कंपनी की भूमिका ऐसी स्कीमों को कार्यान्वित करने तक ही सीमित नहीं है।
कंपनी को अब प्रेरक और आइडिया मुहैया कराने वाली भूमिका में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए। महिंद्रा एंड महिंद्रा लाइफलाइन एक्सप्रेस की कोर टीम ने इस बाबत रुद्रपुर जिला प्रशासन और संबंधित रेल अधिकारियों के साथ मिलकर इस इलाके की संभावित रेल साइटों का दौरा किया। इस टीम में कंपनी की मुंबई स्थित सीएसआर टीम के सदस्य और रुद्रपुर प्लांट के कर्मचारी और प्रतिनिधि शामिल थे।
लाइफलाइन एक्सप्रेस पूरी तरह से कर्मचारियों का प्रोजेक्ट था। इसके तहत सबसे पहले रुद्रपुर प्लांट के मैनेजरों और अन्य आला अधिकारियों ने एक साथ मिलकर सीएसआर टीम से यह जानने की कोशिश की कि इस पूरी कवायद में उनकी क्या भूमिका होगी और इस प्रोजेक्ट को अंजाम देने में कितने लोगों की जरूरत होगी। यह काम हो जाने के बाद कर्मचारियों ने स्क्रीनिंग सेंटर और महिंद्रा वॉर्ड के संबंध में स्टडी की।
इसका मकसद लाइफलाइन एक्सप्रेस प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार करना था। इसके तहत ट्रांसपोर्ट, वॉर्ड में साफ-सफाई, कैंटीन, दवाओं के स्टॉक, मरीज के लिए पूछताछ और जनरल मेंटिनेंस के लिए अलग-अलग उपसमिति बनाई गई। एक तरह से कहा जाए तो प्लांट के इंजीनियर ही पूरे अस्पताल का जिम्मा संभाल रहे थे। वैसे कर्मचारी जो अब तक ट्रैक्टर और कृषि संबंधी अन्य उपकरणों और उत्पादन लक्ष्यों से जुड़ी दुनिया में मशरूफ थे, अब उनका वास्ता आम लोगों, मरीजों, सर्जनों व स्वंयसेवकों से पड़ रहा था।
कंपनी की कृषि उपकरण इकाई, जो अब तक अपने उत्पादों के निर्माण के लिए 2 पुरस्कार (जापान क्वॉलिटी मेडल और डेमिंग प्राइज)जीत चुकी है, अब अपनी इंजीनियरिंग क्षमता का इस्तेमाल लोगों से सीधे तौर पर जुड़े प्रोजेक्ट में भी कर रही है। कंपनी के कर्मचारी जो अब तक अपनी क्षमता का इस्तेमाल कृषि संबंधी उपकरणों को बनाने में कर रहे थे, अब उतनी ही ऊर्जा के साथ उपसमिति के जरिये लोगों के दुख-दर्द को दूर करने में जुट गए थे। इसकी एक बानगी देखिए।
किसी गांव में मेडिकल चेक-अप और सर्जरी के लिए हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा थी। महिंद्रा के इंजीनियरों ने पीएफडी (प्रोसेस फ्लो डायग्राम) विधि के जरिये इस भीड़ के प्रबंधन की तैयारी पहले ही कर ली थी।ऑपरेशन के दौरान भी वहां अफरा-तफरी का आलम था। लाइफलाइन एक्सप्रेस के इर्दगिर्द मरीजों और उनके साथ पहुंचने वाले लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई थी। साथ ही ऑपरेशन करा चुके मरीज यहां से रुखसत हो रहे थे।
रुद्रपुर के इंजीनियरों ने इस अफरा-तफरी के आलम में संतुलन कायम रखने के लिए प्रबंधन के बुनियादी नियमों को अपनाया और इसके जरिये समस्या को दूर करने में काफी मदद मिली। इस बाबत रुद्रपुर प्लांट के कर्मचारियों की मेहनत रंग लाई और डॉक्टरों ने 24 दिनों मे 647 सर्जरी की और मोतियाबिंद, पोलियो, बहरापन से ग्रस्त 2 हजार से भी ज्यादा मरीजों को भी अपनी सेवाएं मुहैया कराईं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही है कि इस पूरी प्रक्रिया में कंपनी के इंजीनियरों और अन्य कर्मचारियों को काफी कुछ सीखने का मौका मिला। कर्मचारी भीड़ के प्रबंधन, संकट प्रबंधन, प्रशासकीय गुर और संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल की कला सीखने में सफल रहे।