प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जम्मू कश्मीर के विभिन्न नेताओं की हुई बैठक के चंद दिन बाद ही इस केंद्रशासित क्षेत्र के प्रशासन को लगने लगा है कि एक नया ‘जाना-पहचाना अजनबी’ इस इलाके की सियासत में आ गया है।
पहले के आरोपित हितों को खुलकर नकार देने और सभी सियासी दलों को नई चुनौतियों से निपटने के लिए ताजी सोच की जरूरत होगी ताकि जीवन की गुणवत्ता बेहतर की जा सके।
उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के एक करीबी सूत्र ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि अगर कश्मीर घाटी की तरह जम्मू क्षेत्र के नेता भी अगले कुछ हफ्तों में पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किए जाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो फिर वे गलती कर रहे हैं। इस सूत्र का कहना है, ‘केंद्र सरकार के लिए पूर्ण-राज्य का दर्जा इस सफर के आखिरी मुकाम जैसा है। वहां तक पहुंचने के लिए एक लंबी दूरी तय करनी होगी। इस राह में कई मोड़ हैं, कुछ ठहराव के केंद्र हैं और कई जगहों पर ‘आगे रास्ता बंद है’ की तख्तियां भी लगी हुई हैं। ऐसे में सियासी ताकतों के लिए एक राह निकालना काफी चुनौतीपूर्ण होगा।’
केंद्रशासित क्षेत्र का प्रशासन यहां के लोगों की जिंदगी की गुणवत्ता सुधारने के लिए अपनी तरफ से वह हर चीज कर रहा है जो वह कर सकता है और जो कुछ भी उसके अधिकार क्षेत्र में आता है। इस सूत्र के मुताबिक, ‘मकसद यह है कि शासन एवं जवाबदेही को प्रशासन के निचले स्तर तक ले जाया जा सके। हम यह लक्ष्य हासिल करने को लेकर बेहद गंभीर हैं।’
इसके लिए प्रशासन ने पिछले साल जम्मू-कश्मीर स्वास्थ्य योजना का ऐलान किया था जिसका लक्ष्य सभी निवासियों को सार्वभौम स्वास्थ्य बीमा कवर मुहैया कराना है। इस योजना पर सालाना 123 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। जम्मू कश्मीर के करीब 5 लाख लोग पहले से ही ‘आयुष्मान भारत’ प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना के दायरे में आ चुके हैं और इस नई योजना के तहत बाकी लोगों को भी स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराने की तैयारी है। इस योजना के दायरे में कैंसर, गुर्दा खराब होने और कोविड-19 जैसे गंभीर रोगों के मरीज आएंगे। इसके योग्य परिवारों की पहचान के लिए एक सर्वे पिछले साल शुरू किया गया था। अब यह सर्वे पूरा हो चुका है और केंद्रशासित क्षेत्र के निवासी इस योजना का लाभ उठाने भी लगे हैं। योजना की खास बात यह है कि एक बार योजना के तहत पंजीकरण हो जाने के बाद भारत के किसी भी सूचीबद्ध अस्पताल में इलाज कराया जा सकता है।
रियायती दरों पर गैस सिलिंडर एवं स्टोव मुहैया कराने वाली ‘उज्ज्वला’ योजना देश के बाकी हिस्सों की तरह जम्मू कश्मीर के निवासियों के लिए भी उपलब्ध है। अशांति एवं हिंसा से प्रभावित इलाकों में भी लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं। असल में जागरूक नागरिक गैस एजेंसियों द्वारा सब्सिडी में की गई गड़बडिय़ों की जानकारी खुद आगे बढ़कर दी जिनके आधार पर कई जगह छापे भी मारे गए हैं। सब्सिडी वाले सिलिंडर वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को देने की बात पता चलने पर कुछ गैस एजेंसियों के खिलाफ मामले भी दर्ज किए गए हैं।
जम्मू कश्मीर प्रशासन के एक अधिकारी कहते हैं, ‘इस पूरी कवायद का सार यह है कि हमने उन योजनाओं को भी जमीनी स्तर पर लागू किया है जो पहले भी कागजी तौर पर उपलब्ध थीं लेकिन यहां के लोगों को उनका लाभ नहीं मिलता था। हम इन सभी योजनाओं के लाभ पहुंचाना चाहते हैं।’ लेकिन जम्मू कश्मीर में कुछ भी उतना सरल नहीं होता है जितना वह दिखता है। यहां के लोग, खासकर सोपोर एवं बारामूला में, हमेशा ही इस बात को लेकर आशंकित रहते हैं कि अगर उन्होंने भारतीय मदद स्वीकार की तो वे पाकिस्तान की शह पर पल रहे दहशतगर्दों के निशाने पर आ जाएंगे। ऐसा रसोई गैस जैसी बेहद बुनियादी बात या फिर परिसीमन से इलाके का जनांकिकी स्वरूप बदल जाने से जुड़ी चिंता जैसे मसले पर भी हो सकता है। एक अन्य स्रोत का कहना है कि परिसीमन का काम पूरी तरह ईमानदारी से किया जाएगा। इसके जरिये राज्य के चरित्र को बदलने का कोई इरादा नहीं है। सूत्रों के मुताबिक सुरक्षाबलों का मानना है कि यहां सक्रिय करीब 200 दहशतगर्दों को एक छोटे भौगोलिक क्षेत्र में सीमित किया जा सकता है जहां से बाद में उन्हें पकड़ा भी जा सकता है। इसके लिए ‘पाकिस्तान के डर को जाना ही होगा।।’
प्रशासन के सामने एक और जिम्मेदारी है। वह चाहता है कि जब पाकिस्तान की नजरें दूसरे मुद्दों पर लगी हुई हैं, वह अपने फायदे बढ़ा ले और तेजी से काम करे। फिलहाल कश्मीर पाकिस्तान की प्राथमिकता सूची में नीचे आ चुका है जबकि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की सितंबर में होने वाली वापसी को लेकर वह कहीं ज्यादा फिक्रमंद है। पाकिस्तान को लग रहा है कि अगर पड़ोसी देश अफगानिस्तान में तालिबान के दबदबे वाली सरकार आ गई तो उसे तगड़े भू-राजनीतिक आघात सहने पड़ेंगे। इसकी दूसरी बड़ी चिंता वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) की तरफ से उसके यहां विदेशी निवेश पर पाबंदी बढ़ाने को लेकर है। कराची स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ बिजऩेस एडमिनिस्ट्रेशन में पत्रकारिता केंद्र के निदेशक कमाल सिद्दीकी कहते हैं, ‘यहां पर कोई यथार्थपरक उम्मीद नहीं है कि भारत कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दे देगा।’
पाकिस्तान की शीर्ष भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं की सूची में कश्मीर फिलहाल चौथे पायदान पर ही है।
ऐसे हालात में जम्मू कश्मीर प्रशासन को लगता है कि उसने घाटी के साथ-साथ जम्मू के सियासी दलों को भी यह संदेश पहुंचा दिया है कि केंद्र अपने सख्त रुख पर ही नहीं टिका रहेगा। प्रशासन सियासी दलों को एक रास्ता देना चाहता है ताकि वे इस लचीलेपन का फायदा उठाकर मुख्यधारा की राजनीति में अपनी गरिमा कायम रखते हुए वापस लौट सकें। एक सूत्र कहते हैं, ‘लेकिन इसे हमारी कमजोरी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। हम एक झंडा, एक बाजार एवं एक भारत को लेकर एकदम साफ हैं।’
