तीन कृषि कानूनों को आश्चर्यजनक ढंग से वापस लिए जाने से अनिश्चितता बढ़ सकती है और सुधारों की प्रक्रिया भी प्रभावित हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्र के नाम संदेश में यह घोषणा की थी कि तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को संसद के आगामी सत्र में वापस लिया जाएगा। सरकार को आशा थी कि इसके बाद किसान संगठन करीब एक वर्ष पहले शुरू किए गए विरोध प्रदर्शन समाप्त कर देंगे। परंतु ऐसा होता नहीं दिख रहा है। विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान संगठन अब अन्य बातों के अलावा यह मांग कर रहे हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी दी जाए और बिजली संशोधन विधेयक को वापस लिया जाए। हालांकि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकारी खरीद की प्रक्रिया जारी रहेगी, लेकिन किसान संगठन कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। चूंकि ऐसा करना व्यावहारिक नहीं है इसलिए बीच का रास्ता तलाश करना होगा।
इसमें कोई शक नहीं कि किसानों को उपज का उचित मूल्य मिलना चाहिए। लेकिन मूल्य गारंटी कई वजहों से उचित नहीं है। एमएसपी का लाभ चुनिंदा राज्यों में और बहुत कम किसानों को मिलता है और सरकार इस स्थिति में नहीं है कि ज्यादा व्यापक खरीदारी कर सके। इसके अलावा पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में एमएसपी की व्यवस्था खेती के मौजूदा रुझान को और पक्का करेगी जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। सब्सिडी वाली बिजली की मदद से भूजल के अत्यधिक दोहन ने इन राज्यों के पर्यावास को भारी नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा कृषि क्षेत्र को उभरते बाजार और मांग की परिस्थितियों के साथ भी तालमेल बिठाने की आवश्यकता है। तीनों कृषि कानून सही दिशा में उठाए गए कदम थे और सुधारों की प्रक्रिया को आगे ले जाने वाले थे। इन कानूनों को जिस तरह पारित किया गया था उसके कारण अंशधारकों के मन में संशय उत्पन्न हुआ। कृषि कानूनों को सबसे पहले जून 2020 में अध्यादेश के रूप में पेश किया गया था और बाद में तमाम चिंताओं को दूर किये बिना ही संसद ने इन्हें पारित कर दिया। चूंकि कृषि एक संवेदनशील क्षेत्र है और यह आबादी के बड़े हिस्से के लिए आजीविका का जरिया है इसलिए सरकार को सहमति बनाने तथा कृषक समुदाय को इसके बारे में समझाने में अधिक समय देना चाहिए था। अध्यादेश का रास्ता अपनाने और हड़बड़ी में विधेयकों को संसद द्वारा पारित करने की कोई जरूरत नहीं थी। सहमति वाला रास्ता सभी अंशधारकों के लिए मददगार साबित होता।
चूंकि अब सरकार ने कानून वापस लेने का निर्णय ले लिया है इसलिए इस बात पर बहस करना उचित है कि कृषि क्षेत्र में सुधारों को किस प्रकार आगे बढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि मौजूदा हालात बरकरार नहीं रहने दिए जा सकते। प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि व्यापक प्रतिनिधित्व वाली समिति इस दिशा में काम करेगी। निश्चित तौर पर आगे बढऩे का सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि राज्य सरकारों को नेतृत्व करने दिया जाए। गत सप्ताह इसी समाचार पत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि नए कृषि कानूनों के जरिये जिन बातों को बढ़ावा देने का इरादा है उनमें से कई बातें पहले ही विभिन्न राज्यों में घटित हो रही हैं। जहां तक किसानों को लाभकारी मूल्य उपलब्ध कराने की बात है, इसके लिए कई तरह के हस्तक्षेप अपनाने होंगे। सरकारी खरीद का जारी रहना इसका एक हिस्सा हो सकता है। सरकार किसानों को कम मूल्य मिलने की भरपाई भी कर सकती है और इसके लिए उसके पास पहले से एक योजना भी है। सरकार सहकारिता या किसान उत्पादकों को मूल्य शृंखला में भागीदारी के लिए भी प्रेरित कर सकती है। सरकार को निरंतर किसानों से बात करते हुए सुधारों को बढ़ावा देना होगा और उत्पादकता में सुधार करना होगा। व्यापक नीति के स्तर पर कृषि कानूनों से जुड़े घटनाक्रम ने भारत की विश्वसनीयता को क्षति पहुंचाई है, इससे बचा जाना चाहिए था।
