किसी कंपनी के निदेशक मंडल (बोर्ड) की संरचना नियामकीय आवश्यकताओं और कंपनी की अपनी आवश्यकताओं के आपसी संबंधों पर निर्भर करती है। मगर पिछले एक दशक के दौरान निदेशक मंडल स्पष्ट और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में बदल गए हैं। यह बदलाव कंपनी अधिनियम 2013, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड नियमन (सूचीबद्धता अनिवार्यता एवं उद्घोषणा आवश्यकता), शेयरधारकों की तरफ से बढ़ते दबाव और स्वयं निदेशक मंडल द्वारा उठाए गए कदमों का नतीजा है।
निदेशक मंडल में महिलाओं की उपस्थिति एक ऐसा बदलाव है जो सभी का ध्यान आकृष्ट कर रहा है। वर्ष 2014 में कंपनी कानून प्रभाव में आने से पहले 20 निदेशकों में केवल एक महिला निदेशक हुआ करती थी। अब यह अनुपात बढ़कर पांच हो गया है।
एनएसई 500 कंपनियों के निदेशक मंडल की संरचना पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 31 मार्च, 2023 तक इनमें महिला प्रतिनिधियों की भागीदारी 18.2 प्रतिशत थी। मार्च 2021 में निदेशक मंडलों में महिला निदेशकों की भागीदारी के वैश्विक अनुपात 19.7 प्रतिशत से बहुत दूर नहीं है। मगर यह आंकड़ा सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मार्च 2020 के 16.7 प्रतिशत से यह अनुपात मात्र 1.5 प्रतिशत बढ़ा है।
निःसंदेह नियमों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है मगर महिला-पुरुष समानता केवल इनसे ही सुनिश्चित नहीं की जा सकती। वर्तमान आंकड़े प्रभावी अनुपालन का अधिक नतीजा हैं क्योंकि कंपनियों ने स्वयं महिला-पुरुष समानता के महत्त्व पर ध्यान नहीं दिया है और न ही इसके लिए ठोस प्रयास किए हैं। कंपनियों को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए और प्रयास करने की आवश्यकता है।
अक्टूबर 2015 में किए गए एक अन्य अध्ययन पर भी विचार किया जाए तो हमें पता चलता है कि निदेशकों की संख्या तो नहीं बदली है मगर स्वतंत्र निदेशक नियुक्त किए जाने की तरफ रुझान जरूर बढ़ा है। मार्च 2023 में निदेशकों की संख्या 4,724 थी, जो अक्टूबर 2015 में 4,654 थी। 2015 में कंपनियों के निदेशक मंडलों में कुल 1,242 स्वतंत्र निदेशक (26.7 प्रतिशत) थे। यह संख्या अब बढ़कर 2,066 (42.7 प्रतिशत) हो गई है।
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निदेशक मंडल की स्वतंत्रता, गैर-स्वतंत्र अध्यक्ष, निदेशकों के उत्तरदायित्व जैसे कई अन्य मानदंड निदेशक मंडल को लेकर बढ़ी जागरूकता और निवेशकों एवं नियामकों सहित सभी संबंधित पक्षों की ऊंची अपेक्षाओं की तरफ इशारा कर रहे हैं। वर्तमान में हम निफ्टी 500 कंपनियों और एसऐंडपी 500 कंपनियों के निदेशक मंडलों में निदेशकों में समाभिरूपता देख रहे हैं। इसमें किसी तरह के आश्चर्य की बात नहीं है।
भारत में निदेशक मंडल और इसकी समितियों से जुड़े नियमन ब्रिटेन और अमेरिका के बाजारों से प्रेरित दिखाई देते हैं। ब्रिटेन और अमेरिका के बाजार निदेशक मंडल को प्राथमिकता देते हैं। इसके अलावा कॉर्पोरेट निदेशक मंडल की अपेक्षाओं को निवेशकों से बल मिला है, खासकर इसमें विदेशी संस्थागत निवेशकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इतने समय बाद अब जाकर घरेलू निवेशकों ने निदेशक मंडल की संरचना पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है।
प्रवर्तकों की उपस्थिति वाले निदेशक मंडल क्या अमेरिका के निदेशक मंडल के साथ समानता रखते हैं? अगर मालिकाना हक अलग-अलग है तो क्या निदेशक मंडल भी अलग-अलग नहीं होने चाहिए? अमेरिका और ब्रिटेन में निदेशक मंडलों की भूमिका संस्थागत मालिकाना हक और ‘प्रवर्तकों’ की अनुपस्थिति से तय होती है। इन बाजारों में निवेशक कंपनी प्रबंधन से इसके निदेशक मंडल के माध्यम से बात करते हैं।
भारत में मालिकाना हक कुछ गिने-चुने लोगों के हाथों में होने से निदेशक मंडल को मालिक और अल्पांश शेयरधारकों के हितों के बीच टकराव रोकने के लिए मध्स्थता करनी पड़ती है। इन अंतरों को बेहतर तरीके से समझने की आवश्यकता है। जो बदलाव हमने देखे हैं वे मोटे तौर पर नियमन में बदलाव (कार्यकाल की सीमा, स्वतंत्रता, विविधता) का नतीजा हैं मगर निदेशक मंडलों को यह अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित कंपनी को अपनी आवश्यक एवं बड़ी जरूरतें पूरी करने में किसी तरह की परेशानी पेश नहीं आए। यह सुनिश्चित करने के लिए दो तरह के नियमन काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
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कंपनी अधिनियम निदेशक मंडलों को निदेशकों एवं स्वयं अपने प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कहता है। सेबी ने सूचीबद्धता से जुड़े दिशानिर्देशों के माध्यम से कहा है कि कंपनियों को निदेशक मंडल के निदेशकों के हुनर, उनकी विशेषज्ञता और क्षमता की जानकारी निर्धारित प्रारूप के तहत देनी चाहिए। दोनों स्तरों पर तय हुए दिशानिर्देश आपस में मिलकर नामांकन एवं पारिश्रमिक समितियों को उनके कार्यों में मदद पहुंचाएंगे।
ये कार्य अनुपालन और कंपनी के समक्ष संभावनाओं का लाभ उठाने एवं जोखिमों से निपटने में उपयुक्त एवं सक्षम निदेशक मंडल के कौशल के आकलन के बीच संतुलन स्थापित करने से जुड़े हैं। नियमन अब सख्त अनुपालन पर जोर दे रहे हैं और कारोबार पहले से अधिक पेचीदा हो गए हैं, साथ ही निवेशकों की अपेक्षाएं भी बढ़ गई हैं। इन तमाम बातों के मद्देनजर एक उपयुक्त एवं सक्षम निदेशक मंडल का गठन पहले से अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
(लेखक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेस इंडिया लिमिटेड से जुड़े हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं)