कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने हाल ही में यह अनुशंसा की है कि सबसे आम इस्तेमाल वाले उर्वरक यानी यूरिया को भी अन्य उर्वरकों की तरह पोषण आधारित सब्सिडी (एनबीएस) प्रणाली के तहत लाया जाना चाहिए। इस मांग का लक्ष्य यही है कि नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और पौधों को पोषण देने वाले अन्य पोषक तत्त्वों से बने उर्वरकों की कीमतों में समता स्थापित की जा सके ताकि उनका संतुलित और जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल किया जा सके।
अन्य उर्वरकों की तुलना में यूरिया की अनावश्यक रूप से कम कीमत के परिणामस्वरूप नाइट्रोजन का अत्यधिक इस्तेमाल होने लगा तथा समान महत्त्व वाले अन्य पोषकों के इस्तेमाल में कमी देखने को मिली। इनमें से कुछ अहम सूक्ष्म और द्वितीयक पोषक भी हैं जिनका इस्तेमाल पौधों में किया जाता है। मिट्टी की सेहत तथा उसकी उर्वरता पर भी इनका गलत असर हुआ है।
इसका नतीजा यह हुआ कि उतनी ही फसल हासिल करने के लिए पोषक तत्त्वों की ऊंची खुराक का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो यह खेती के लिए अच्छा नहीं होगा। खासतौर पर कृषि से होने वाला मुनाफा प्रभावित होगा जो पहले ही काफी कठिनाइयों से जूझ रहा है।
यूरिया पर सीएसीपी की सलाह न तो नई है और न ही वह कुछ अलग है। कृषि वैज्ञानिक 2010 में एनबीएस व्यवस्था की अवधारणा सामने आने के बाद से ही इसकी मांग करते रहे हैं ताकि उर्वरक सब्सिडी में समता स्थापित की जा सके। बहरहाल तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने इसे नहीं माना क्योंकि यूरिया की कीमत तय करना अभी भी राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील मसला है।
यही कारण है कि उर्वरक सब्सिडी में इजाफा जारी रहा और 2022-23 में यह बढ़कर 2.3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई। इस बीच यूरिया की खपत में तेज इजाफा हुआ और यह 33 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया जबकि अन्य उर्वरकों के इस्तेमाल में मामूली इजाफा हुआ। पोषण के इस्तेमाल में असंतुलन और बढ़ता गया जो मिट्टी की सेहत के लिए कतई अच्छा नहीं है। मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के सामने भी ऐसी ही दुविधा है।
अगले वर्ष आम चुनाव होने हैं और ऐसे में बेहतर होगा कि वह कम से कम राजनीतिक दृष्टि से कम मुश्किल सुझाव का पालन करे और प्रति किसान यूरिया के सब्सिडी वाले बैग की सीमा तय कर दे। इसके अलावा यह काम आसानी से किया जा सकता है क्योंकि सब्सिडी वाले उर्वरकों की बिक्री डिजिटल मशीनों के माध्यम से की जाती है और खरीदार की पहचान आधार या अन्य पहचान प्रमाणों के माध्यम से दर्ज की जाती है।
सरकार भी पोषकों के इस्तेमाल में असंतुलन के असर से पूरी तरह नावाकिफ नहीं है। उस पर यह आरोप भी नहीं लगाया जा सकता है कि वह इससे निपटने के जतन नहीं कर रही है। यूरिया पर अनिवार्य तौर पर नीम की परत और सॉइल हेल्थ कार्ड जारी करना आदि का मुख्य उद्देश्य यही था कि पौधों को दिए जाने वाले पोषण को समुचित बनाने पर ध्यान दिया जाए।
परंतु इन उपायों से वांछित परिणाम नहीं मिले। ताजा अनुमान बताते हैं कि नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश के इस्तेमाल का अनुपात 4:2:1 के बजाय 13:5:1 है। ऐसे में प्रतीत होता है कि कीमतों को समुचित बनाकर ही इस असंतुलन को दूर किया जा सकता है।
साथ ही यह उर्वरक क्षेत्र में मूल्य सुधार अपनाने का सबसे बेहतर समय भी है। यूरिया का घरेलू उत्पादन बढ़ रहा है और आयात की जरूरत तेजी से कम हो रही है। ऐसा इसलिए हुआ कि बंद पड़े उर्वरक संयंत्र चालू हो गए हैं और नया नैनो यूरिया बन चुका है जिस पर किसी सब्सिडी की जरूरत नहीं है।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों की कीमत भी कम हुई है। फरवरी 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ने के साथ ही कीमतें आसमान छूने लगी थीं। ऐसे में सरकार को इस अवसर का लाभ लेना चाहिए और सीएसीपी की अनुशंसा के मुताबिक उर्वरक कीमतों में समता लानी चाहिए।