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स्वास्थ्य बीमा को ‘सेहतमंद’ बनाने की जरूरत

स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में सुधार के लिए जरूरी कदम, प्रीमियम में वृद्धि और निगरानी की कमी बनीं बड़ी समस्याएं

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- May 01, 2025 | 11:35 PM IST

भारत में स्वास्थ्य बीमा के दावे खारिज होने का डर पॉलिसीधारकों में बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ, बीमा उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि कम से कम 10 फीसदी स्वास्थ्य बीमा दावे फर्जी होते हैं। उनके अनुसार इससे स्वास्थ्य बीमा उद्योग को हर साल 12,000 करोड़ रुपये नुकसान होता है। सूत्रों के अनुसार अगर फर्जीवाड़े के मामले न हों तो एक ईमानदार पॉलिसीधारक के लिए प्रीमियम लगभग 20 फीसदी तक कम हो सकता है।

स्वास्थ्य बीमा दावे निपटान के दौरान फर्जीवाड़े से निपटना बीमा उद्योग के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसके अलावा दूसरी चुनौतियां भी हैं। अस्पतालों पर निगरानी का अभाव भी उनमें एक है क्योंकि भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र राज्य सूची में आता है। विभिन्न अस्पतालों में एक ही बीमारी के इलाज के लिए अलग-अलग रकम मांगी जाती है। इससे पॉलिसीधारकों और बीमा कंपनियों दोनों के लिए समस्याएं खड़ी होती हैं। भारी भरकम बिल की समस्या आम हो गई है।

अस्पतालों में यह काम कई तरीकों से किया जाता है, जैसे गैर-जरूरी सेवाओं की आड़ में अधिक रकम ऐंठना, अत्यधिक महंगे इलाज का हवाला देकर भारी भरकम बिल तैयार करना और एक प्रक्रिया के तहत आने वाली विभिन्न सेवाओं के लिए भी अलग-अलग बिल तैयार करने जैसे हथकंडे अपनाए जाते हैं। कभी-कभी तो बिना मरीज के ही बिल और चिकित्सकों के फर्जी परामर्श तैयार हो जाते हैं। किस अस्पताल से कब कितना बिल आ जाए इसका कोई ठिकाना न होने की वजह से ही बीमा कंपनियां अधिक प्रीमियम वसूलती हैं।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य बीमा (स्टैंड-अलोन) उद्योग ने वित्त वर्ष 2023-24 में 3.5 फीसदी मुनाफा मार्जिन के साथ कारोबार किया था। निजी क्षेत्र की सामान्य जीवन बीमा कंपनियां अधिक मार्जिन कमाती हैं जबकि सरकारी सामान्य जीवन बीमा कंपनियों के मामले में यह कम होता है। अस्पतालों के लिए औसत मार्जिन कम से कम 30 फीसदी हो सकता है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में ही कहा था कि वर्ष 2032 तक भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा बीमा बाजार बन जाएगा। उन्होंने कहा कि 2024-2028 के बीच यह कारोबार 7.1 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ेगा। इस तरह, जी-20 देशों में भारत सबसे तेजी से बढ़ता बीमा बाजार साबित होगा।

अगर बात स्वास्थ्य बीमा की करें तो वर्ष 2047 के लिए सभी के लिए स्वास्थ्य बीमा का लक्ष्य हासिल करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? इस सवाल का जवाब खोजने से पहले हम कुछ आंकड़ों पर विचार करते हैं। स्वास्थ्य एवं सामान्य जीवन बीमा कंपनियों के बीमा कवरेज की पहुंच वित्त वर्ष 2024 में 57.2 करोड़ लोगों तक हो गई थी। इन बीमा कंपनियों ने वित्त वर्ष 2024 में 83,500 करोड़ रुपये के दावे निपटाए, जो वित्त वर्ष 2023 की तुलना मे 17.7 फीसदी अधिक थे।

स्वास्थ्य एवं सामान्य जीवन बीमा उद्योग ने वित्त वर्ष 2024 में कुल 2.68 करोड़, जो कि इसके पिछले साल 2.35 करोड़ था। इन कंपनियों ने वित्त वर्ष 2022 में 2.18 करोड़ दावे निपटाए थे। सिर्फ स्वास्थ्य बीमा देने वाली एकल कंपनियों ने अपना दावा अनुपात सुधार कर वित्त वर्ष 2024 में 89 फीसदी तक पहुंच दिया, जो वित्त वर्ष 2023 में 84 फीसदी था। वित्त वर्ष 2024 में इस उद्योग में 19 लाख एजेंट सक्रिय थे और 4.75 लाख करोड़ रुपये मूल्य की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां थीं।

वित्त वर्ष 2024 में 25 सामान्य बीमा कंपनियां थी जिनमें चार सार्वजनिक क्षेत्र की भी थीं। 5 एकल स्वास्थ्य बीमा कंपनियां भी थीं। भारत में गैर-जीवन बीमा (जिसमें स्वास्थ्य बीमा भी शामिल है) की पहुंच जीडीपी के महज 1 फीसदी तक है। इसमें विभिन्न सरकारी बीमा कंपनियों द्वारा चलाई जा रहीं स्वास्थ्य पॉलिसियां भी शामिल हैं।

वैश्विक स्तर पर अमेरिका में गैर-जीवन बीमा की पहुंच सबसे अधिक (9.3 फीसदी) है जिसके बाद नीदरलैंड (7.2 फीसदी), कनाडा (4.7 फीसदी), जर्मनी (3.4 फीसदी) और ऑस्ट्रेलिया (3.3 फीसदी) का नाम आता है। बीमा पहुंच का आकलन जीडीपी में बीमा प्रीमियम के प्रतिशत अनुपात के आधार पर किया जाता है। देश में बीमा पहुंच बढ़ाने के लिए भारत को बहु-आयामी उपाय करने होंगे जिसमें सभी हितधारकों (सरकार, बीमा कंपनियां, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताएं और आम लोग) की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।

आइए, दुनिया में कुछ सफल प्रारूपों पर नजर डालते हैं। अमेरिका में सार्वजनिक कार्यक्रम (मेडिकेयर एवं मेडिकएड) और निजी बीमा, दोनों की मिश्रित प्रणाली काम करती है। वहां नियोक्ता-प्रायोजित बीमा, कवर की सुविधा देने का प्रमुख जरिया है। ब्रिटेन, स्पेन और न्यूजीलैंड में ‘बेवरिज’ स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली अपनाई गई है। इसमें कराधान के जरिये सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य देखभाल की व्यवस्था है और लोगों को सीधे अपनी जेब से प्रीमियम का भुगतान नहीं करना पड़ता है। जर्मनी और जापान ‘बिस्मार्क मॉडल’ का इस्तेमाल करते हैं जिसमें कर्मचारी एवं नियोक्ता स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम भरते हैं।

कनाडा और कुछ अन्य देश राष्ट्रीय बीमा ढांचा अपनाते हैं। इस ढांचे में सरकार करों के माध्यम से राजस्व जुटाकर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पूरा खर्च वहन करती है। सिंगापुर में हाइब्रिड मॉडल के अंतर्गत सस्ते प्रीमियम पर उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं दी जाती हैं।

मगर भारत में स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में कई चुनौतियां हैं। देश में वित्त वर्ष 2024 में इलाज पर आने वाला खर्च 14 फीसदी बढ़ गया, जो एशिया के किसी भी देश की तुलना में सबसे अधिक रहा। अगर सभी स्वास्थ्य बीमा कवर के लिए प्रीमियम में बढ़ोतरी की शिकायत कर रहे हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

सामान्य बीमा परिषद के आंकड़े दर्शाते हैं कि स्वास्थ्य बीमा की वृद्धि दर पिछले वित्त वर्ष की 20.25 फीसदी से घट कर वित्त वर्ष 2025 में 8.98 फीसदी रह गई। बीमा कंपनियों की सकल प्रीमियम आय 1.18 लाख करोड़ रुपये रही जो वित्त वर्ष 2024 में 1.08 लाख करोड़ रुपये रही थी। बीमा प्रीमियम में बढ़ोतरी और दावे के अस्वीकार होने के कारण लोग स्वास्थ्य बीमा खरीदने से परहेज करने लगे हैं।

समस्या की जड़ यह है कि अस्पतालों पर निगरानी केंद्र एवं राज्य दोनों के कानूनों से रखी जाती है। इन कानूनों के क्रियान्वयन सभी राज्यों में समान रूप से नहीं होते हैं। निदान केंद्रों के लिए एकीकृत निगरानी नहीं होने से भी सेवा की गुणवत्ता और मूल्य निर्धारण मानक दोनों से जुड़ी चिंताएं पैदा होती है। स्वास्थ्य राज्य सूची में आता है इसलिए ब्रिटेन की तरह एक केंद्रीकृत नियमन का प्रावधान नहीं किया जा सकता मगर इससे निपटने के दूसरे तरीके जरूर मौजूद हैं। रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) की तर्ज पर एक स्वास्थ्य नियामक तैयार किया जा सकता है जो अस्पतालों में इलाज खर्च और इससे जुड़ी प्रक्रियाओं के लिए मानक तय कर सकता है और खर्च में कमी कर सकता है।

लोकपाल कार्यालय और उपभोक्ता न्यायालय कुछ हद तक सहायक जरूर हैं मगर स्वास्थ्य क्षेत्र की विशेष जानकारियों के साथ एक समर्पित नियामक अस्पतालों, ग्राहकों और थर्ड पार्टी क्लेम प्रबंधन कंपनियों के फर्जीवाड़े से कड़ाई से निपट सकता है। अगले सप्ताह ‘2047 तक सभी के लिए बीमा’ पर चर्चा होगी।

(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published : May 1, 2025 | 11:35 PM IST