केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तुत श्वेत पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के कार्यकाल के 10 वर्षों में देश का आर्थिक प्रदर्शन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के 10 वर्षों (2004-14) की तुलना में बेहतर रहा है।
जैसा कि इस संदर्भ में इस समाचार पत्र ने भी कहा है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीते 10 वर्षों में हालात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन सरकारी ऋण और आम सरकारी घाटा ऊंचे स्तर पर बना हुआ है। राजकोषीय घाटे की बात करें तो 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में इसका संशोधित अनुमान 5.8 के स्तर पर रहा जबकि 2013-14 में यह 4.4 के स्तर पर था।
ऐसा मोटे तौर पर इसलिए हुआ कि कोविड-19 ने कई तरह की बाधाएं पैदा की थीं। बहरहाल एक तथ्य यह भी है कि UPA सरकार को भी 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से जूझना पड़ा था जिसकी वजह से राजकोषीय घाटे में काफी इजाफा हुआ था। कोविड-19 महामारी का आर्थिक प्रभाव कहीं अधिक गहरा था।
सरकारी वित्त के प्रबंधन के तरीकों में दो गुणात्मक भेद हैं। पहला, रिपोर्टिंग की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, खासतौर पर महामारी के बाद और केंद्रीय बजट वास्तविक व्यय को दर्शा रहा है। कुछ वर्ष पहले तक सरकार बजट से इतर उधारियों की मदद से अपने व्यय की भरपाई करती थी। दूसरा, व्यय की गुणवत्ता में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 2024-25 में जीडीपी के 3.4 फीसदी के स्तर पर है। इससे न केवल अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी बल्कि सरकार को भी समय के साथ व्यय को सीमित करने का अवसर भी मिलेगा। एक बार निजी निवेश के गति पकड़ने के बाद सरकार पूंजीगत व्यय कम कर सकती है और अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत करने पर विचार कर सकती है। पूंजीगत व्यय की बात करें तो 2023-24 में यह कुल व्यय का 28 फीसदी था जबकि 2013-14 में यह उसका केवल 16 फीसदी था।
इस बीच NDA सरकार का राजस्व व्यय UPA की तुलना में धीमी गति से बढ़ा है। ऐसा आंशिक तौर पर इसलिए है कि प्रबंधन प्रभावी हुआ है और सब्सिडी को बेहतर ढंग से लक्षित किया गया है। जैसा कि श्वेत पत्र भी रेखांकित करता है, राजस्व व्यय में NDA के कार्यकाल में सालाना 9.9 फीसदी की दर से वृद्धि हुई जबकि उससे पहले के 10 वर्षों में यह 14.2 फीसदी की दर से बढ़ा था।
व्यापक स्तर पर देखें तो यह बात भी ध्यान देने लायक है कि बाहरी मोर्चे पर रिजर्व बैंक के प्रबंधन ने सरकार के लिए नीतिगत गुंजाइश सुधारी है और गंभीर वृहद आर्थिक जोखिम का खतरा कम हुआ है। बहरहाल, तमाम सकारात्मक बातों के बावजूद राजकोषीय समेकन की आवश्यकता को बढ़ाचढ़ाकर नहीं पेश किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए भारत सरकार के बॉन्ड को जेपी मॉर्गन के उभरते बाजार बॉन्ड सूचकांक में शामिल किया जाएगा। इस सूचकांक में 230 अरब डॉलर मूल्य की परिसंपत्तियां शामिल हैं जिसमें से 23 अरब डॉलर की राशि भारत आने की उम्मीद है। कुछ अन्य वैश्विक सूचकांक भी भारतीय बॉन्ड को शामिल करने पर विचार कर रहे हैं।
विदेशी मुद्रा की आवक में इजाफा होने से घाटे की भरपाई के लिए घरेलू बचत पर से दबाव कम हो जाएगा। इससे घरेलू स्तर पर मुद्रा की लागत में कमी आएगी लेकिन इसके लिए अधिक वित्तीय अनुशासन और कम घाटे की जरूरत बढ़ेगी। जैसा कि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गत वर्ष इस बारे में कहा भी था, सूचकांक में शामिल होना एक दोधारी तलवार है।
सरकारी बॉन्ड का विदेशी स्वामित्व समय के साथ बढ़ेगा और इसके लिए बेहतर और अनुमानयोग्य राजकोषीय प्रबंधन की जरूरत होगी। सूचकांक के भार में परिवर्तन से पूंजी बाहर भी जा सकती है। यानी रिजर्व बैंक की ओर से विदेशी मुद्रा भंडार के बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता होगी ताकि अतिरिक्त मौद्रिक अस्थिरता से बचा जा सके। ऋण बाजार में उच्च विदेशी आवक भी एक वजह है जिसके चलते भारत को मजबूत राजकोषीय प्रबंधन की आवश्यकता होगी।