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तेल की बढ़ती मांग: घरेलू उत्पादन और ग्लोबल सप्लाई चेन पर ध्यान दे भारत

2030 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक बन सकता है

Last Updated- February 07, 2024 | 11:05 PM IST
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अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने बुधवार को यह अनुमान जताया कि 2030 तक वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की मांग में कितना इजाफा हो सकता है। आईईए के मुताबिक मांग में इजाफे की सबसे बड़ी वजह भारत होगा जो सबसे बड़े तेल आयातक के रूप में चीन को पछाड़कर शीर्ष पर आ जाएगा।

इस समय भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है और अनुमान है कि 2023 से 2030 के बीच यहां तेल की मांग में करीब 12 लाख बैरल प्रति दिन का इजाफा होगा। इस प्रकार इस अवधि में कच्चे तेल की मांग में कुल इजाफा 32 लाख बैरल प्रति दिन होगा। यानी वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की मांग वृद्धि में भारत करीब एक तिहाई का हिस्सेदार होगा।

इस लिहाज से 2030 तक भारत में प्रतिदिन तेल की खपत 66 लाख बैरल हो जाएगी। आईईए के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में परिवहन ईंधन के लिए मांग का बढ़ना जारी रहेगा जबकि अन्य देशों में यह या तो स्थिर है या इसमें गिरावट आ रही है।

मांग में इस बढ़ोतरी को पूरा करने के लिए भारत का विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर होना उसकी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील विषय है। तेल कीमतों में वैश्विक वृद्धि के कारण बाहरी खाते और राजकोषीय स्थिति में अव्यवस्था की स्थिति बन सकती है। इससे मुद्रास्फीति में इजाफा होगा, वृद्धि में धीमापन आएगा और राजनीतिक उथल पुथल भी मच सकती है।

इस बीच जीवाश्म ईंधन की आपूर्ति श्रृंखलाएं पश्चिम एशिया में भूराजनीतिक तनाव के लिए जोखिम बनी हुई हैं। ऐसे में सरकार ने जीवाश्म ईंधन के विकल्पों पर जोर देकर सही किया है।

आईईए ने अनुमान जताया है कि नए इलेक्ट्रिक वाहन तथा मौजूदा ऊर्जा संसाधनों का किफायती इस्तेमाल देश में मांग वृद्धि में करीब पांच लाख बैरल की कमी लाएंगे। सरकार सौर और पवन ऊर्जा क्षमताओं की स्थापना पर भी जोर दे रही है। परंतु इसके बाद भी भारत निकट भविष्य में तेल और गैस पर निर्भर रहेगा।

इस समस्या को कम करने में दो ही बातें मदद कर सकती हैं। पहली बात, अगर घरेलू संसाधनों का सही ढंग से पता लगाया जाए और उनका समुचित इस्तेमाल किया जाए। दूसरा, अगर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर नियंत्रण किया जा सके। इसके लिए देश की बड़ी तेल एवं गैस कंपनियां खनन क्षेत्रों की खरीद कर सकती हैं। दोनों ही मोर्चों पर कुछ प्रगति हो रही है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है।

मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब 20 बहुराष्ट्रीय जीवाश्म ईंधन कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों से बातचीत की। इनमें बीपी, वेदांत और एक्सॉनमोबिल शामिल हैं। सरकार का लक्ष्य तेल की खोज में निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ाने का है।

बहरहाल, इस नीति में पहले किए गए प्रयासों का इरादा सरकार का राजस्व बढ़ाने का था और निवेशकों के जोखिम पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था। यह इस क्षेत्र के लिए सही तरीका नहीं है और हाल में इसमें सुधार के लिए किए गए प्रयासों को जारी रखा जाना चाहिए।

ऐसी कई वजह हैं जिनके चलते देश में तेल खनन बढ़ाया जाना चाहिए। नीति निर्माताओं को इस वजह से पीछे नहीं हटना चाहिए कि कहीं निजी क्षेत्र इससे बहुत अधिक लाभ न अर्जित कर ले। इसके अलावा भारतीय तेल कंपनियों को विदेश में भी प्रयास करने चाहिए।

इस सप्ताह खबर आई कि ऑयल इंडिया लिमिटेड लीबिया में वहां की सरकारी तेल कंपनी के साथ मिलकर दोबारा परिचालन शुरू करने को लेकर चर्चा कर रही है।

लीबिया अगले तीन से पांच वर्षों के दौरान तेल उत्पादन में प्रतिदिन 75,000 बैरल का इजाफा करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। कच्चे तेल की आपूर्ति श्रृंखला में ऐसे अन्य प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार की ओर से इसके लिए वित्तीय और कूटनीतिक समर्थन मुहैया कराया जाना आवश्यक है।

भविष्य की प्रतिस्पर्धी क्षमता और भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता ऊर्जा की टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भर है। ऐसे में घरेलू सुधार और विदेशी पहुंच दोनों सरकार की प्राथमिकता होने चाहिए।

First Published - February 7, 2024 | 11:05 PM IST

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