facebookmetapixel
Bihar Elections 2025: महागठबंधन का घोषणा पत्र, परिवार के एक सदस्य को नौकरी; शराबबंदी की होगी समीक्षासर्विस सेक्टर में सबसे ज्यादा अनौपचारिक नौकरियां, कम वेतन के जाल में फंसे श्रमिकदिल्ली में बारिश के लिए क्लाउड सीडिंग, 15 मिनट से 4 घंटे के भीतर बादल बरसने की उम्मीद8वें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी, 18 महीने में देगा सिफारिश; 50 लाख कर्मचारियों को होगा लाभडीएपी और सल्फर पर बढ़ी सब्सिडी, किसानों को महंगे उर्वरकों से मिलेगी राहतरिलायंस जल्द करेगी जियो आईपीओ का रोडमैप फाइनल, आकार और लीड बैंकर पर निर्णय साल के अंत तक!आकाश एजुकेशनल सर्विसेज को राहत, एनसीएलएटी ने ईजीएम पर रोक से किया इनकारQ2 Results: टीवीएस मोटर का मुनाफा 42% बढ़ा, रेमंड रियल्टी और अदाणी ग्रीन ने भी दिखाया दम; बिड़ला रियल एस्टेट को घाटाBS BFSI 2025: आ​र्थिक मुद्दों पर बारीकी से मंथन करेंगे विशेषज्ञ, भारत की वृद्धि को रफ्तार देने पर होगी चर्चाईवी तकनीक में कुछ साल चीन के साथ मिलकर काम करे भारत : मिंडा

Editorial:पारदर्शिता में हो इजाफा

भारत सरकार ने व्यवस्था में पारदर्शिता और किफायत बढ़ाने के लिए 2021 में एकल नोडल एजेंसी मॉडल शुरू किया।

Last Updated- March 03, 2025 | 10:06 PM IST
Delhi: CAG report case, government taking step back is unfortunate CAG रिपोर्ट मामला, सरकार का कदम पीछे खींचना दुर्भाग्यपूर्ण
प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत जैसे संघीय ढांचे और विकेंद्रीकृत व्यवस्था वाले विशाल देश में सार्वजनिक वित्तीय संसाधनों को किफायती और प्रभावी ढंग से खर्च किया जाना जरूरी है। अगर किसी योजना के लिए आवंटित रकम खर्च नहीं होती है तो उसे दूसरे उद्देश्यों में खर्च किया जा सकता है ताकि बेहतर आर्थिक परिणाम मिल सकें। भारत सरकार ने व्यवस्था में पारदर्शिता और किफायत बढ़ाने के लिए 2021 में एकल नोडल एजेंसी मॉडल शुरू किया। केंद्र सरकार कई केंद्र प्रायोजित योजनाएं चलाती है, जिनके लिए धन विभिन्न खातों में भेजा जाता था और अक्सर इस्तेमाल हुए बगैर पड़ा रहता था। लेकिन नया मॉडल आने के बाद स्थिति बदल गई क्योंकि इसमें एकीकृत नेटवर्क के जरिये ‘ऐन वक्त पर’ केंद्र तथा राज्य सरकारों से इकट्ठा धन जारी किया जाता है। एक विश्लेषण के अनुसार इससे सरकारी खातों का काफी समेकन और कोषों का एकीकरण हुआ है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गत सप्ताह व्यय विभाग और लेखा महानियंत्रक से यह सुनिश्चित करने को कहा कि अगले वित्त वर्ष से सभी योजनाओं के लिए एकल नोडल एजेंसी ‘स्पर्श’ शुरू कर दी जाए।

वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि लेखा महानियंत्रक राज्यों को अन्य व्यवस्थाओं से इस मंच पर लाए और उन्हें इसके फायदों की जानकारी भी दे। अधिकांश केंद्रीय योजनाएं पहले ही इस प्लेटफॉर्म पर चल रही हैं और अनुमान है कि इसकी मदद से सरकार ने 2021-22 से अब तक 11,000 करोड़ रुपये से अधिक धन बचाया है। सरकारी व्यय को अधिक कारगर बनाने के कई प्रत्यक्ष लाभ हैं। इससे समय पर रकम मिलना सुनिश्चित होता है। भारत में केंद्र सरकार और सभी राज्यों की सरकारों को राजकोषीय घाटा होता है अपने खर्च के लिए दोनों ही बाजार उधारी का सहारा लेती हैं। रकम इस्तेमाल नहीं होने का मतलब है कि सरकार पैसे का उपयोग नहीं कर पाई मगर उस पर ब्याज चुकाएगी। इसलिए नकद प्रबंधन को बेहतर बनाने के उपाय अपनाना सही रहेगा।

इस बार के बजट में केंद्र सरकार ने पहली बार एकल नोडल एजेंसी वाले खातों की संख्या का ब्योरा दिया था। इससे पता चला कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं के करीब 1 लाख करोड़ रुपये राज्यों के खाते में खर्च हुए बगैर पड़े हैं। इसमें से 45 फीसदी रकम तो प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण, जल जीवन मिशन, सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0, शहरी कायाकल्प मिशन-500 शहर, और स्वच्छ भारत मिशन-शहरी में ही खर्च होने से रह गई। उदाहरण के लिए जल जीवन मिशन के लिए 2024-25 में 70,162 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे मगर इसमें से आधी रकम भी खर्च नहीं जा सकी। 2025-26 में केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए आवंटन चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों से 7.2 फीसदी ज्यादा है।

एकल नोडल एजेंसी खातों का ब्योरा ही दिखाता है कि पारदर्शिता कैसे बढ़ सकती है। राज्य अक्सर शिकायत करते हैं कि उन्हें पर्याप्त रकम नहीं भेजी जाती। मगर ब्योरा दिखाता है कि भेजी गई रकम भी अक्सर खर्च नहीं हो पाती। हो सकता है कि राज्यों के पास आवंटित रकम खर्च नहीं हो पाने की वाजिब वजहें हों और बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए ये वजहें जानना जरूरी है। समूचे सरकारी व्यय कितना कारगर रहा इसकी पड़ताल करते समय इस बात पर बहस होनी चाहिए कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या कम करने की जरूरत तो नहीं है। चूंकि राज्यों को भी संसाधन खर्च करने होते हैं, इसलिए संभव है कि उन्हें तंगी महसूस होती हो और वे धन को वहां पहले खर्च करना चाहते हों, जहां उनकी जनता को ज्यादा फायदा होता है। राज्य अक्सर ठोस वजहों के साथ कहते हैं कि केंद्र से उन्हें बिना रुके रकम मिलती रहनी चाहिए क्योंकि इससे उन्हें अपनी जरूरत के हिसाब से कार्यक्रम बनाने की छूट मिल जाती है। इस मामले में एकदम सटीक संतुलन बनाने की सिफारिश वित्त आयोग से आनी चाहिए।

First Published - March 3, 2025 | 10:00 PM IST

संबंधित पोस्ट