कई दिनों की उथल पुथल के बाद दुनिया भर के शेयर बाजारों में कुछ शांति दिख रही है। इसकी वजह यह भरोसा हो सकता है कि अमेरिका की नई टैरिफ नीति पर बातचीत का दौर शुरू हो रहा है। इस भरोसे के पीछे सोच यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अनुमान से अधिक शुल्क इस तरह तय किए गए हैं कि सौदेबाजी का लंबा दौर उन्हीं से शुरू हो। मंदी की आशंका और ऊंचे शुल्क पर असंतोष को देखते हुए यही कहा जा रहा है कि ट्रंप नए सौदे तथा समझौते करना चाहते हैं। उनके कुछ साथी खास तौर पर अरबपति सलाहकार ईलॉन मस्क खुलेआम ऐसा कह चुके हैं।
मस्क ने कहा कि अमेरिका तथा यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार पर ही बात खत्म होगी। लेकिन हो सकता है कि वह भी ट्रंप की मंशा नहीं समझ पाए हों। दरअसल इस सप्ताह एक बार फिर यूरोपीय आयोग ने अमेरिका की औद्योगिक वस्तुओं को यूरोपीय बाजारों में शुल्क मुक्त पहुंच की पेशकश की और ट्रंप ने यह कहते हुए उसे ठुकरा दिया कि अमेरिका के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया गया है।
इस बात की काफी संभावना है जिसे शायद बाजार द्वारा कम करके आंका जा रहा है कि ट्रंप विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन और अमेरिका के साथ कथित दुर्व्यवहार को रोकने के लिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था और उपभोक्ताओं को होने वाले कष्ट की अनदेखी करने को तैयार हैं।
हकीकत यह है कि ट्रंप प्रशासन के उच्चाधिकारियों और स्वयं ट्रंप के इरादे और बयान एक दूसरे के साथ तालमेल नहीं खा रहे। कई मामलों में वे परस्पर विरोधाभासी भी हैं। उदाहरण के लिए अगर टैरिफ से बातचीत शुरू हो रही है तो स्वयं ट्रंप ही कई मौकों पर कह चुके हैं कि टैरिफ विनिर्माण को अमेरिका में वापस लाने के पहले साधन नहीं हो सकते। अगर वास्तविक उद्देश्य बेहतर शर्तों पर मुक्त व्यापार है तो राष्ट्रपति का वह वादा पूरा नहीं हो सकेगा जिसमें उन्होंने कहा था कि टैरिफ से आने वाले भारी भरकम राजस्व की बदौलत वह करों में कटौती कर सकेंगे।
अगर टैरिफ बने रहते हैं और वे अमेरिका के व्यापार घाटे को शून्य करने के राष्ट्रपति के अन्य उद्देश्यों को हासिल करने में कामयाब रहते हैं तो भी भारी भरकम राजस्व हासिल नहीं हो सकेगा। हालांकि इस नीति को जिस तरह प्रस्तुत किया गया और उचित ठहराया गया उसमें बहुत अधिक विसंगति है जिससे यह नतीजा निकाला जा सकता है कि वे वास्तव में राष्ट्रपति की वैचारिक प्राथमिकता हैं और अब उनके लिए कई तरह के तर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
ट्रंप ने गत सप्ताह जो कई प्रकार के उच्च टैरिफ लागू किए थे वे बुधवार से प्रभावी होंगे। अब तक कोई भी देश अमेरिका को ऐसी पेशकश नहीं कर सका है जिससे उसे अतिरिक्त लाभ या रियायत मिली हो। यह भविष्य की वार्ताओं के लिए अच्छा नहीं है। वैश्विक बाजार कठिन समय से गुजर रहे हैं लेकिन अमेरिकी उपभोक्ता भी कम कठिनाई में नहीं हैं। अमेरिका अपने जीवन स्तर के कारण लंबे समय से दुनिया भर के देशों की जलन का विषय रहा है और अमेरिकी उपभोक्ताओं की पहुंच हमेशा दुनिया के बेहतरीन और तकनीकी रूप से उन्नत उपकरणों तक रही है। निश्चित रूप से देश में बिक्री कर कम होने के कारण कई वस्तुओं मसलन फोन आदि की कीमतें दुनिया में सबसे कम रही हैं।
अगर ट्रंप टैरिफ बरकरार रहे तो अमेरिकी नागरिकों से यह बढ़त छिन जाएगी। वे तकनीकी उन्नति में पिछड़ जाएंगे और उन्हें शेष विश्व से अधिक राशि चुकानी होगी। उन्हें अन्य तरह के विलंब का भी सामना करना होगा। लब्बोलुआब यह है कि अमेरिका के इन कदमों से जो माहौल बन रहा है उससे किसी को भी उतना ही नुकसान नहीं होगा जितना अमेरिकियों का होगा।