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Editorial : मनमोहन सिंह का अद्वितीय जीवन

1991 में देश आर्थिक मोर्चे पर भुगतान संतुलन संकट के साथ हर मोर्चे पर संघर्ष कर रहा था, ऐसे समय में तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव ने टेक्नोक्रेट मनमोहन सिंह को चुना।

Last Updated- December 29, 2024 | 10:23 PM IST
Dr. Manmohan Singh will be remembered as an economic reformer, visionary leader, leaders and industry paid tribute आर्थिक सुधारक, दूरदर्शी नेता के रूप में याद आएंगे डॉ. मनमोहन सिंह, नेताओं और उद्योग जगत ने दी श्रद्धांजलि

किसी देश के जीवनकाल में ऐसे भी वक्त आते हैं जो गहरी छाप छोड़ जाते हैं जिन्हें आने वाली पीढ़ियां याद करती हैं। वर्ष 1991 भी देश के समकालीन इतिहास का ऐसा ही एक महत्त्वपूर्ण वर्ष है। उस समय देश राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा था। दो गठबंधन सरकारों के विफल रहने के बाद देश में दो साल के भीतर दूसरी बार लोक सभा चुनाव हुए। सन 1991 की गर्मियों में जब देश ने उम्मीदों के साथ मतदान आरंभ किया था तब एक आतंकी हमले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या से देश स्तब्ध रह गया। उन चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन वह बहुमत से पीछे रह गई। पी वी नरसिंह राव देश के नए प्रधानमंत्री बने। आर्थिक मोर्चे पर देश भुगतान संतुलन संकट के साथ लगभग हर मोर्चे पर संघर्ष कर रहा था। वैश्विक माहौल भी अनुकूल नहीं था। उस समय यथास्थिति बरकरार रखने का विकल्प नहीं था। इस परिदृश्य में राव ने टेक्नोक्रेट मनमोहन सिंह को चुना ताकि वह देश की अर्थव्यवस्था की हालत सुधार सकें।

सिंह का गत सप्ताह 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने राव की सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में देश के आर्थिक सुधारों के प्रयासों का नेतृत्व किया और 1991 देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक नई शुरुआत लेकर आया। यह सिंह के लिए भी एक नई शुरुआत थी जो आगे चलकर लगातार दो कार्यकालों (2004-2014) के दौरान देश के प्रधानमंत्री बने। इससे पहले सिंह विभिन्न पदों पर काम कर चुके थे। इसमें वित्त मंत्रालय में काम करना और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद भी शामिल था। जाहिर है 1991 में वित्त मंत्री के रूप में उनका चयन एकदम उपयुक्त था। यही वजह है कि इसके बाद हुए नीतिगत बदलाव एकदम अच्छी तरह सुविचारित थे। हालांकि इसका राजनीतिक विरोध भी हुआ। कांग्रेस के भीतर भी इसके विरोधी थे लेकिन सुधारों को व्यापक बौद्धिक समर्थन हासिल था। मुद्दों को लेकर सिंह की गहरी समझ और विचारों की स्पष्टता ने निर्णायक कदमों के लिए सहमति तैयार करने में मदद की।

उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री का भी पूरा समर्थन हासिल था जो चाहते थे कि वह बीच की राह अपनाएं। समय के साथ कई बड़े कदम उठाए गए। उदाहरण के लिए रुपये का अधिमूल्यन, अधिकांश उद्योगों को नियंत्रण मुक्त करना और कई क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार समाप्त करना। आम लोगों और कंपनियों के लिए कर की दरें कम की गईं। आयात शुल्क में कमी की गई। सिंह हमेशा से चाहते थे कि भारत निर्यात बढ़ाए। हालांकि उनके बाद सभी सरकारों ने 1991 में रखी गई बुनियाद के अनुसार ही काम आगे बढ़ाया लेकिन निर्यात के अवसरों को लेकर अधिक काम नहीं किया गया। हाल के वर्षों में तो हालात बिगड़े ही हैं जिसमें सुधार करने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का कार्यकाल कई महत्त्वपूर्ण निर्णयों वाला रहा। इनमें से कई ऐसे थे जिनकी बुनियाद उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में रखी थी। भारत ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम सहित कई अधिकार आधारित कानून बनाए। दोनों गरीबों के लिए बहुत मददगार साबित हुए। खासतौर पर महामारी के सालों में। सूचना के अधिकार और शिक्षा के अधिकार संबंधी कानून भी उनके कार्यकाल में लागू हुए। अधिकार आधारित नीतियों और लाभ अंतरण के लिए तकनीक का इस्तेमाल उनके द्वारा अपनाए गए बेहतरीन कदम थे। एक के बाद एक सरकारों ने इन पर काम करते हुए सुधार किया। इस दौरान भारत की बाहरी स्थिति को भी बदलते भूराजनीतिक हालात के साथ तब्दील किया गया। अमेरिका के साथ परमाणु समझौता इसका सटीक उदाहरण है। हालांकि बतौर प्रधानमंत्री उनके दूसरे कार्यकाल के आधार पर उनके अभूतपूर्व योगदान को नहीं आंका जाना चाहिए। उनके दूसरे कार्यकाल में न केवल भ्रष्टाचार के मामले सामने आए बल्कि अर्थव्यवस्था का प्रबंधन भी खराब रहा। इससे 2013 में लगभग मुद्रा संकट की स्थिति बन गई थी। आंशिक तौर पर वित्त मंत्रालय और केंद्रीय बैंक द्वारा पिछले वर्षों में उठाए गए कदमों की वजह से हुआ। यकीनन इतिहास मनमोहन सिंह को केवल उनके मुश्किल समय के लिए नहीं याद करेगा। उम्मीद है कि वह कुछ अनसुलझे सवालों के जवाब भी तलाशेगा।

First Published - December 29, 2024 | 10:18 PM IST

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