facebookmetapixel
त्योहारों ने बढ़ाई UPI की रफ्तार, अक्टूबर में रोजाना हुए 668 मिलियन ट्रांजैक्शनHUL पर ₹1,987 करोड़ का टैक्स झटका, कंपनी करेगी अपीलSrikakulam stampede: आंध्र प्रदेश के मंदिर में भगदड़, 10 लोगों की मौत; PM Modi ने की ₹2 लाख मुआवजे की घोषणाCar Loan: सस्ते कार लोन का मौका! EMI सिर्फ 10,000 के आसपास, जानें पूरी डीटेलBlackRock को बड़ा झटका, भारतीय उद्यमी पर $500 मिलियन धोखाधड़ी का आरोपकोल इंडिया विदेशों में निवेश की दिशा में, पीएमओ भी करेगा सहयोगLPG-ATF Prices From Nov 1: कमर्शियल LPG सिलेंडर में कटौती, ATF की कीमतों में 1% की बढ़ोतरी; जानें महानगरों के नए रेटMCX पर ट्रेडिंग ठप होने से सेबी लगा सकती है जुर्मानासीआईआई ने सरकार से आग्रह किया, बड़े कर विवादों का तेज निपटारा होअक्टूबर में शेयर बाजार की मजबूत वापसी, निफ्टी-सेन्सेक्स में 4.5% से 4.6% की बढ़त

Editorial: मौद्रिक नीति का मार्ग और शेयर बाजारों में तेजी

आर्थिक वृद्धि की गति और कीमतों पर पड़ रहे दबाव को देखते हुए टिकाऊ ढंग से दो फीसदी का मुद्रास्फीति लक्ष्य हासिल करने में कुछ वक्त लग सकता है।

Last Updated- March 21, 2024 | 9:44 PM IST
मौद्रिक नीति का मार्ग और शेयर बाजारों में तेजी, monetary policy path

अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने अपनी दो दिवसीय बैठक के बाद यह संकेत देकर शेयर बाजारों में तेजी ला दी कि वह इस वर्ष नीतिगत ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की कटौती के मार्ग पर बनी रहेगी। इस वर्ष मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान में इजाफे के बावजूद ऐसा किया जा रहा है। हालांकि फेड से यह उम्मीद नहीं थी कि वह मार्च की बैठक में नीतिगत दरों में कटौती करेगा लेकिन कुछ बाजार प्रतिभागी इस बात को लेकर चिंतित थे कि मुद्रास्फीति के हालात नीतिगत दरों में कटौती की संभावना को कम कर सकते हैं या उसमें देर कर सकते हैं।

निश्चित तौर पर फेडरल रिजर्व के बोर्ड सदस्यों तथा फेडरल रिजर्व बैंक के प्रेसिडेंट के ताजा अनुमान दिखाते हैं कि 2024 में मध्यम कोर मुद्रास्फीति की दर 2.6 फीसदी रहेगी जबकि दिसंबर में इसके 2.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था। चालू वर्ष की आर्थिक वृद्धि के अनुमानों को भी दिसंबर के 2.1 फीसदी से संशोधित करके 1.4 फीसदी कर दिया गया है।

आर्थिक वृद्धि की गति और कीमतों पर पड़ रहे दबाव को देखते हुए टिकाऊ ढंग से दो फीसदी का मुद्रास्फीति लक्ष्य हासिल करने में कुछ वक्त लग सकता है। जैसा कि फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जीरोम पॉवेल ने अपनी टिप्पणी में कहा, ‘यह सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहने वाला है।’

चाहे जो भी हो, फेडरल फंड्स की दर का लक्षित दायरा 5.25 से 5.5 फीसदी है जो दो दशक का उच्चतम स्तर है और यह दरों में कटौती की प्रक्रिया शुरू करने की गुंजाइश देता है। बहरहाल फेड चालू वर्ष में और अगले वर्ष में किस हद तक कटौती करने में सक्षम होता है यह देखना होगा। बाजार जहां फेड के दरों में कटौती करने की प्रतीक्षा कर रहा है, वहीं बैंक ऑफ जापान ने इस सप्ताह 17 वर्षों में पहली बार नीतिगत दरों में इजाफा किया।

मंगलवार को वह ऋणात्मक नीतिगत दर व्यवस्था समाप्त करने वाला पहला केंद्रीय बैंक भी बन गया और उसने नीतिगत दर को 0-0.1 के दायरे में बढ़ा दिया। बैंक ऑफ जापान ने एक्सचेंज ट्रेडेड फंड के साथ यील्ड कर्व नियंत्रण कार्यक्रम को भी समाप्त करने का निर्णय लिया। बहरहाल, केंद्रीय बैंक जरूरत के मुताबिक बाजार से दीर्घावधि के सरकारी बॉन्ड की खरीद जारी रखेगा।
ऋणात्मक नीतिगत ब्याज दरों का विचार हमेशा से विवादास्पद रहा है और यह स्पष्ट नहीं है कि इससे अर्थव्यवस्थाओं को लाभ हुआ या नहीं। बैंक ऑफ जापान के अलावा अन्य केंद्रीय बैंकों मसलन यूरोपीय केंद्रीय बैंक तथा स्विट्जरलैंड और स्वीडन के केंद्रीय बैंकों ने ऋणात्मक ब्याज दरों के साथ प्रयोग किया।

इसकी शुरुआत 2010 के दशक में हुई थी जब केंद्रीय बैंकों खासकर पश्चिमी देशों के बैंकों की ओर से यह कोशिश हो रही थी कि वैश्विक वित्तीय संकट के बाद आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाया जाए। कुछ यूरोपीय देशों में सॉवरिन ऋण बाजार की समस्या ने भी आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित किया और केंद्रीय बैंक को आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करने की प्रेरणा दी। बहरहाल जापान ने इसे भी अपस्फीति से लड़ाई का एक और औजार माना। ध्यान रहे कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने कभी नीतिगत दरों को ऋणात्मक नहीं होने दिया।

वैश्विक वित्तीय बाजार में जापानी पूंजी की सीमित भूमिका को देखते हुए नीतिगत कदमों का भी सीमित प्रभाव है। इसके अलावा मौजूदा आर्थिक हालात में बैंक ऑफ जापान निकट भविष्य में मौद्रिक नीति को सख्त नहीं बना सकता। ऐसे में बाजार फेड पर ध्यान देगा और कुछ हद तक यूरोपीय केंद्रीय बैंक पर भी।

यह उम्मीद करना उचित है कि आने वाली तिमाहियों में वैश्विक वित्तीय हालात आसान होंगे जिससे भारत जैसे उभरते बाजारों में पूंजी की आवक बढ़ेगी। ऐसे हालात में नीति निर्माताओं को मुद्रा कीमतों में अनावश्यक वृद्धि और परिसंपत्ति मूल्य मुद्रास्फीति से बचना होगा।

First Published - March 21, 2024 | 9:44 PM IST

संबंधित पोस्ट