दूरसंचार उद्योग एक बार फिर केंद्र सरकार से राहत की अपेक्षा कर रहा है। वह समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) से संबंधित अपने बकाये के मामले में राहत चाहता है क्योंकि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में एक उपचारात्मक याचिका खारिज कर दी है। अब दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को आगे बढ़ते हुए अपने बूते मजबूत भविष्य की तैयारी करनी चाहिए।
यह एक तथ्य है कि दूरसंचार उद्योग को हालिया अतीत में उल्लेखनीय उथलपुथल का सामना करना पड़ा है और बकाया एजीआर के मामले में राहत मिलने से इन दूरसंचार कंपनियों को 4जी और 5जी सेवाओं में निवेश करने तथा उनकी नेटवर्क क्षमताओं को मजबूत करने में मदद मिलेगी। परंतु यह बात भी सही है कि हर उद्योग उतार-चढ़ाव से गुजरता है और सरकार हर समय शुल्क और प्रभारों में कमी करके दखल देने को बाध्य नहीं है। भले ही कंपनियों को बचे रहने के लिए उसके हस्तक्षेप की जरूरत हो।
दूरसंचार कंपनियों की बात करें तो वित्तीय मुश्किलों से दो-चार वोडाफोन आइडिया का बकाया एजीआर 70,000 करोड़ रुपये से अधिक है और उसे सर्वोच्च न्यायालय के ताजा फैसले का सबसे अधिक असर देखना होगा। कंपनी की बैलेंस शीट की हालत खराब है और उसकी देनदारियां 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी हैं। इसके बावजूद यह याद रखना जरूरी है कि दूरसंचार कंपनियां खासकर वोडाफोन को हालिया अतीत में सरकार और अदालती निर्णयों से फायदा हुआ है।
उदाहरण के लिए दूरसंचार कंपनियों को दो कंपनियों के दबदबे की स्थिति से बचाने के लिए सरकार ने दो साल पहले वोडाफोन आइडिया में हिस्सेदारी ली थी और कंपनी की ब्याज देनदारी को शेयरों में तब्दील किया था। 2022 में सरकार 33 फीसदी के साथ वोडाफोन आइडिया में सबसे बड़ी हिस्सेदार थी और कंपनी के फॉलोऑन पब्लिक ऑफर के बाद उसने अपनी हिस्सेदारी कम की थी। अगस्त 2024 में सरकार के पास कंपनी के 23.1 फीसदी शेयर थे।
इस उद्योग को राहत का एक और उदाहरण यह है कि उच्चतम न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों द्वारा 2020 में की गई मांग के बाद उन्हें बकाया एजीआर चुकाने के लिए 10 वर्ष का समय दिया था। इन पहलों के अलावा दूरसंचार उद्योग को 2021 में भी सरकार से राहत पैकेज मिला था। इसमें सांविधिक बकाये के भुगतान पर चार साल का स्थगन शामिल था।
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में जो याचिका खारिज की है वह वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज समेत दूरसंचार कंपनियों ने 2019 के एक फैसले के विरुद्ध दायर की थी जो एजीआर बकाये के भुगतान से संबंधित था।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले तीन न्यायाधीशों के पीठ ने सरकार के आकलन के तरीके को सही ठहराते हुए राशि की पुनर्गणना के सरकार के कंपनियों के आग्रह को ठुकरा दिया था। कंपनियों की दलील थी कि बकाये के लिए सरकार का आकलन खामियों भरा है और इस पर दोबारा नजर डालने की आवश्यकता है। सर्वोच्च न्यायालय के 2019 के निर्णय के अनुसार वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल का बकाया एजीआर 1.47 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका था।
उपचारात्मक याचिका के रूप में झटका लगने के बाद वोडाफोन आइडिया प्रबंधन ने निवेशकों और विश्लेषकों से बातचीत में कहा कि यह सरकार के ऊपर है कि वह बकाये के गलत आकलन के मुद्दे को हल करती है या नहीं। एजीआर के आकलन में सुधार से भी कंपनियों को मदद मिल सकती है लेकिन उन्हें अपनी कारोबारी योजना सरकार से कोई मदद मिलने की उम्मीद के बिना तय करनी चाहिए।
उद्योग जगत को भविष्य में दरों को युक्तिसंगत बनाने पर ध्यान देना चाहिए जिससे प्रति उपयोगकर्ता बेहतर औसत राजस्व हासिल हो सकेगा। ऐसा करने से यह भी सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि दूरसंचार क्षेत्र में केवल दो कंपनियों का दबदबा नहीं रह जाए और वह पूरी तरह जीवंत कारोबारी क्षेत्र बना रहे।