अक्सर रिटेल निवेशक मानते हैं कि जितने ज्यादा म्युचुअल फंड्स होंगे, उतना रिस्क कम होगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बहुत सारे फंड रखने से उल्टा नुकसान हो सकता है। पोर्टफोलियो जटिल हो जाता है, फंड्स में दोहराव आता है और रिटर्न भी घट जाता है।
आनंद राठी शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स के डायरेक्टर थॉमस स्टीफन कहते हैं कि ज्यादातर लोगों के लिए 13-14 म्युचुअल फंड काफी होते हैं। वे बताते हैं, “हर फंड में 40 से 70 शेयर होते हैं। अगर आप बहुत ज्यादा फंड लेते हैं, तो उन्हीं शेयरों का दोहराव (repetition) हो जाता है। इससे जोखिम कम नहीं होता।” वे आगे कहते हैं कि 20-30 फंड रखना और उन्हें संभालना मुश्किल होता है। इससे लोग अपने निवेश के लक्ष्य से भटक जाते हैं। इसलिए वे सलाह देते हैं कि समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो की जांच करते रहें।
1 फाइनेंस की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट, म्युचुअल फंड्स राजनी तंदले कहती हैं कि जरूरी यह नहीं है कि आपके पास बहुत सारे फंड हों। जरूरी यह है कि आपके पास इतने फंड हों जो तीन मुख्य जोखिम क्षेत्रों – इक्विटी (शेयर), डेट (बॉन्ड) और लिक्विडिटी (नकदी जरूरत) को कवर करें। उनका कहना है कि ज्यादातर निवेशकों के लिए 2-3 इक्विटी फंड्स ही काफी हैं, जिनमें एक इंडेक्स फंड और एक फ्लेक्सी-कैप फंड शामिल हो सकते हैं।
Wealthy.in के को-फाउंडर आदित्य अग्रवाल कहते हैं कि अगर आपका पोर्टफोलियो ₹25 लाख का है, तो 3-4 म्युचुअल फंड ही काफी हैं। अगर आप इससे ज्यादा फंड लेते हैं, तो एक जैसे शेयर बार-बार दोहराने (डुप्लीकेशन) लगते हैं। वे बताते हैं कि बड़े पोर्टफोलियो -यानी ₹50 लाख से ₹1 करोड़ तक के लिए 4 से 10 फंड्स पर्याप्त हैं। इनमें इक्विटी, डेट (बॉन्ड), हाइब्रिड और थोड़ा अंतरराष्ट्रीय निवेश शामिल होना चाहिए।
स्टॉकग्रो के फाउंडर और सीईओ अजय लखोटिया कहते हैं कि बहुत ज्यादा फंड रखने से आपका पोर्टफोलियो एक तरह से “महंगा इंडेक्स फंड” बन जाता है। वे बताते हैं, “अगर आप तीन-चार फ्लेक्सी-कैप या लार्ज-कैप फंड्स रखते हैं, तो उनमें ज्यादातर वही निफ्टी-100 के शेयर दोहराए जाते हैं। यानी अलग फंड्स लेने के बावजूद, आपका निवेश लगभग उन्हीं कंपनियों में हो जाता है।”
जब अलग-अलग म्युचुअल फंड्स में एक ही कंपनियों के शेयर होते हैं, तो इसे स्टॉक ओवरलैप कहा जाता है। थॉमस स्टीफन चेतावनी देते हैं, “अगर ओवरलैप 50% से ज्यादा है, तो आपका पोर्टफोलियो असल में विविध (diversified) नहीं है।” आदित्य अग्रवाल सलाह देते हैं कि निवेशक अपने फंड्स की फैक्टशीट देखें और बार-बार दोहराए जा रहे टॉप शेयरों को पहचानें। राजनी तंदले कहती हैं कि दो फंड्स के बीच ओवरलैप 40% से कम होना चाहिए। वे समझाती हैं, “अगर दोनों फंड्स में एक जैसे शेयर हैं और उनका अनुपात (वजन) भी लगभग समान है, तो आप असल में सिर्फ फंड का नाम बदल रहे हैं, निवेश नहीं।”
अजय लखोटिया कहते हैं कि म्युचुअल फंड्स की गिनती से ज्यादा ज़रूरी है आपके वित्तीय लक्ष्य और निवेश की अवधि
वे इसे इस तरह समझाते हैं –
आदित्य अग्रवाल निवेश को आसान और साफ रखने के लिए “तीन बकेट रणनीति” सुझाते हैं – लिक्विडिटी (आपात जरूरतों के लिए पैसा), कैश फ्लो (नियमित खर्च) और ग्रोथ (लंबी अवधि की बढ़त)।
थॉमस स्टीफन कहते हैं, “कम उम्र में निवेश शुरू करना सबसे बड़ा फायदा है। जरूरी यह नहीं कि आप बहुत बड़ी रकम से शुरुआत करें, बल्कि लगातार और नियमित निवेश करना ज्यादा मायने रखता है।”
अजय लखोटिया का सुझाव है कि 25 साल के निवेशक को 4 से 6 म्युचुअल फंड्स रखने चाहिए –
राजनी तंदले कहती हैं, “कम उम्र में सबसे जरूरी है अनुशासन और निरंतरता। जल्दी रिटर्न के पीछे भागने की बजाय, SIP को नियमित रखना ही आपकी असली ताकत है।”