बुनियादी ढांचे से जुड़े खर्च को एक बार फिर से आर्थिक विकास के इंजन के तौर पर देखा जाना चाहिए क्योंकि इसका गुणक प्रभाव बहुत अधिक होता है। सीधे शब्दों में कहें तो बुनियादी ढांचे में लगाया गया प्रत्येक एक रुपया अर्थव्यवस्था में लगभग 3 रुपये की वृद्धि करता है। यह आंकड़ा अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि बुनियादी ढांचे के लिए सार्वजनिक पूंजीगत व्यय क्यों इतना महत्त्वपूर्ण है। पिछले बजट में बुनियादी ढांचे के खर्च को थोड़ा ‘कमतर’ आंकने का जो रुझान दिखा अब उसे बदलने की सख्त जरूरत है। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि मौजूदा माहौल में निजी निवेशक अब भी नए-नए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में हाथ डालने से हिचकिचा रहे हैं।
बुनियादी ढांचे पर कितना खर्च करना है, इसका एक स्थापित वृहद अर्थव्यवस्था से जुड़ा ढांचा है। हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य यह है कि बुनियादी ढांचे में सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफआई) वास्तव में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 7 फीसदी होना चाहिए। इस 7 फीसदी में से सामान्यतः लगभग 3.5 फीसदी केंद्रीय बजट से आता है, जबकि बाकी 3.5 फीसदी राज्य, निजी पूंजी और ईबीआर (अतिरिक्त बजटीय संसाधन जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी शामिल हैं) से आता है। इस ढांचे का इस्तेमाल करते हुए देखें तो आगामी बजट में बुनियादी ढांचे का कुल खर्च 14 लाख करोड़ रुपये होना चाहिए।
विकास के अगले चरण के लिए निजी भागीदारी को मजबूत करना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) तंत्र को फिर से आक्रामक रूप से सक्रिय बनाना होगा। वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) के तहत पीपीपी इकाई को अब केवल कागजी कार्रवाई से आगे बढ़कर बेहद आवश्यक सामाजिक बुनियादी ढांचे से जुड़े जमीनी स्तर पर परिणाम दिखाने होंगे। उन्हें स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पर्यटन, आवास, स्वच्छता, जल, कौशल विकास, डिजिटल परियोजनाएं और कृषि-बुनियादी ढांचे जैसे जरूरी सामाजिक क्षेत्र के लिए सक्षम ढांचा तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए।
सरकार की भूमिका क्षेत्र विशेष के मॉडल रियायती समझौते तैयार करने और व्यवहार्यता फंडिंग अंतर (वीजीएफ) जैसे जोखिम कम करने वाले तंत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। राज्यों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उन्हें पिछले बजट में घोषित इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट डेवलपमेंट फंड (आईआईपीडीएफ) से सहयोग लेना चाहिए।
निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए कर नीति में भी सुधार की आवश्यकता है। मध्यम आकार की निजी बुनियादी ढांचा कंपनियों के पास 20-30 विशेष उद्देश्य वाली इकाइयां (एसपीवी) होती हैं जबकि बड़े खिलाड़ियों के पास 50 से अधिक हो सकते हैं। एक ‘समूह कराधान’ व्यवस्था बने जो फर्मों को समूह के स्वामित्व वाले एसपीवी में लाभ और हानि को मिलाने की अनुमति दे तो इससे नकद प्रवाह स्थिर होगा, ऋण प्रोफाइल मजबूत होगी और उधार लेने की लागत कम होगी। यह लंबे समय से चली आ रही एक तर्कसंगत मांग है।
आने वाले वर्षों के लिए एक महत्त्वपूर्ण पहलू शहर-स्तर के बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करना है। इसमें गतिशीलता के लिए सड़कें आदि, जल और जल-निकासी तंत्र, जलवायु के अनुकूल बुनियादी ढांचा और किफायती आवास शामिल हैं। पिछले केंद्रीय बजट में घोषित अर्बन चैलेंज फंड (यूसीएफ) एक बेहतरीन कदम है और अब इसे जमीन पर कार्रवाई दिखानी चाहिए। इसके अलावा, शहरों में बढ़ते ट्रैफिक जाम को देखते हुए, केंद्र सरकार को तब तक किसी भी शहरी परिवहन परियोजना की फंडिंग बंद कर देनी चाहिए जब तक कि संबंधित शहर अनिवार्य एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण (यूएमटीए) को पूरी तरह से लागू नहीं कर देता।
जब सरकार के निवेश से किसी जगह जमीन की कीमत बढ़ती है तब उस बढ़े हुए मुनाफे का कुछ हिस्सा सरकार को वापस मिलना चाहिए यानी लैंड वैल्यू कैप्चर (एलवीसी) को फंडिंग का एक नियमित साधन बनाया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि बुनियादी ढांचे की फंडिंग का कुछ हिस्सा सुधार शुल्क, विकास अधिकार या कॉरिडोर वैल्यू कैप्चर जैसे साधनों से आए। बहुत लंबे समय से, सार्वजनिक खर्च से बढ़ती जमीन की कीमतों का लाभ सिर्फ कुछ चुनिंदा दलालों, अफसरशाहों और राजनेताओं के हाथ में जाने दिया गया है जिसे रोकना होगा।
हाई-स्पीड रेल (एचएसआर) के लिए रेलवे से अलग बजट होना आवश्यक है। यह बुनियादी ढांचे का एक नया वर्ग है जिसे पारंपरिक रेलवे ढांचे के भीतर प्रबंधित नहीं किया जा सकता। एचएसआर को अपनी तकनीक, मार्ग योजना और भूमि अधिग्रहण के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है, साथ ही लंबी अवधि की वित्तीय प्रतिबद्धता भी चाहिए। यह क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को तेज कर सकता है और मझोले तथा छोटे शहरों को प्रमुख आर्थिक केंद्रों से जोड़ सकता है, और विकास के नए गलियारों को खोल सकता है। अब एचएसआर को पारंपरिक सड़कों और राजमार्गों के क्षेत्र की जगह सबसे अधिक सार्वजनिक फंडिंग प्राप्त करने वाला क्षेत्र बनना चाहिए। इसे पारंपरिक रेलवे खर्च से अलग आवंटन मिलना चाहिए, साथ ही पारंपरिक रेलवे बोर्ड से अलग एक आधुनिक संस्थागत प्रणाली को बढ़ावा देना चाहिए।
बुनियादी ढांचे की उपयुक्त परिभाषा को भी अद्यतन करना महत्त्वपूर्ण है। कई क्षेत्र ‘बुनियादी ढांचा’ घोषित होने की होड़ में हैं। बुनियादी ढांचे का वर्गीकरण वाहक को स्वीकारता है न कि सामग्री को। उदाहरण के तौर पर एक बंदरगाह बुनियादी ढांचा माना जाता है, जबकि जहाज नहीं (और निश्चित रूप से जहाज निर्माण भी नहीं जिसे हाल ही में बुनियादी ढांचे का दर्जा दिया गया है)। डीईए के पास अनुमोदित बुनियादी ढांचा क्षेत्रों की सूची का संशोधन लंबे समय से लंबित है और इसे तेजी से आगे बढ़ाने की जरूरत है। नए, पेशेवर रूप से सही क्षेत्रों को जोड़ने से निश्चित रूप से विकास को बढ़ावा मिलेगा। वर्ष 2026-27 के बजट को एक बार फिर यह संकेत देना चाहिए कि बुनियादी ढांचा भारतीय विकास मॉडल की सर्वोच्च प्राथमिकता बना हुआ है।
(लेखक बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। वह ‘द इन्फ्राविजन फाउंडेशन’ के संस्थापक और प्रबंध न्यासी भी हैं। इस लेख से जुड़े शोध में प्रियंका बैंस का भी सहयोग)