भारतीय रिजर्व बैंक की एकीकृत लोकपाल योजना अपनी शुरुआत से ही उपभोक्ताओं के संरक्षण और विनियमित संस्थाओं को सुरक्षित कार्य व्यवहार अपनाने तथा उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान करने की दिशा में लगातार काम कर रही है।
बैंकों, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, भुगतान प्रणाली के प्रतिभागियों और ऋण सूचना कंपनियों जैसी विनियमित संस्थाओं के विरुद्ध शिकायतों के निपटान के लिए एकल खिड़की प्रणाली के निर्माण ने जटिलताओं को कम करने और शिकायतों के तेज निपटारे का मार्ग प्रशस्त किया। इस संदर्भ में रिजर्व बैंक की लोकपाल योजना पर 2022-23 की हालिया वार्षिक रिपोर्ट इस योजना का सही ढंग से आकलन करती है।
रिपोर्ट के अनुसार लोकपाल कार्यालय को मिलने वाली शिकायतों में 2022-23 में एक वर्ष पहले की तुलना में 68.24 फीसदी का इजाफा हुआ। इस बढ़ोतरी का श्रेय सार्वजनिक जागरूकता अभियानों को दिया जा सकता है जिनमें एक महीने का देशव्यापी जागरूकता कार्यक्रम ‘ऑम्बड्ज्मन स्पीक’ शामिल है।
इसके अलावा ‘आरबीआई कहता है’ प्रचार अभियान और शिकायत दायर करने की सरल प्रक्रिया भी इसका हिस्सा रही। यह इजाफा पिछले सालों की तुलना में बहुत अधिक रहा। शिकायतें भौगोलिक रूप से भी बंटी हुई थीं और अधिकांश शिकायतें महानगरों से हासिल हुईं। इसके बाद शहरी और कस्बाई केंद्र आए।
बहरहाल आंकड़े बताते हैं कि शहरी, कस्बाई और ग्रामीण इलाकों से हासिल शिकायतें समय के साथ बढ़ती गई हैं जबकि महानगरीय क्षेत्रों से आने वाली शिकायतों में कमी आ रही है। इससे संकेत मिलता है कि केंद्रीय बैंक के प्रयास संस्थागत कमियों या कम जानकारी वाले ग्राहकों के निर्णयों की दिक्कत दूर करने में कामयाब रहे। ये दिक्कतें वित्तीय संस्थानों और ग्राहकों के बीच असंगतता से उत्पन्न हुई हैं।
शिकायतों के निपटान की अवधि में भी सुधार हुआ है। वित्त वर्ष 20 में इसमें 95 दिन का समय लगता था जबकि वित्त वर्ष 23 में यह अवधि घटकर 33 दिन हो गई। एक शिकायत के निपटान की औसत लागत भी कम हुई है। इस प्रकार लोकपाल योजना अधिक किफायती साबित हुई है।
ज्यादातर शिकायतों को आपसी बातचीत से हल किया गया। वर्ष के दौरान 97.99 फीसदी की अच्छी निपटान दर के साथ 30 दिन से अधिक समय तक लंबित रही शिकायतों की संख्या वित्त वर्ष 22 के 0.26 फीसदी से कम होकर वित्त वर्ष 23 में 0.04 फीसदी रह गई। रिपोर्ट ग्राहक सेवा में कमियों को भी रेखांकित करती है।
धोखाधड़ी वाले डिजिटल लेनदेन, विफल हुए लेनदेन की वापसी में देरी, वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन संबंधी दिक्कतें, विनियमित संस्थाओं से ऋण आदि की शर्तों को लेकर समुचित जानकारी नहीं मिलना और वित्तीय उत्पादों को गलत ढंग से बेचने आदि को देश भर के 22 लोकपाल कार्यालयों में दर्ज की गई सबसे आम शिकायतें माना गया है।
मोबाइल/इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग से संबंधित मामले बैंकों और गैर बैंकिंग भुगतान प्रणाली के विरुद्ध शिकायतों में सबसे बड़े हिस्सेदार थे। वहीं आदर्श व्यवहार न अपनाने की सबसे अधिक शिकायतें गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के खिलाफ थीं। सबसे अधिक शिकायतें बैंकों के विरुद्ध थीं यानी कुल शिकायतों का 83.78 फीसदी। इनमें भी सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी सबसे अधिक थी।
भारत में आबादी का बड़ा हिस्सा अभी भी औपचारिक वित्तीय क्षेत्र से बुनियादी वित्तीय सेवाएं नहीं हासिल कर पाया है, इसलिए वित्तीय साक्षरता को वित्तीय समावेशन, उपभोक्ता संरक्षण बढ़ाने तथा वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने वाला एक अहम घटक माना जाता है। इस मामले में जहां बैंकिंग लोकपाल योजना कारगर नजर आ रही है, वहीं बैंकिंग नियामक को वित्तीय जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि आम जनता की समझ सुधारी जा सके। ऐसा करने से लोग सही निर्णय ले सकेंगे और वित्तीय विवादों की संभावना कम होगी।