अमेरिका में जो बाइडन के नेतृत्व वाले प्रशासन ने जाते-जाते उठाए गए एक अहम कदम में रूसी ऊर्जा क्षेत्र पर प्रतिबंधों का दायरा बढ़ा दिया है। गत सप्ताह घोषित ये उपाय मौजूदा प्रतिबंधों में इजाफा करने वाले हैं और बहुत संभव है कि ये पहले ही दबाव से जूझ रहे ऊर्जा क्षेत्र में और अधिक अस्थिरता लाने वाले साबित हों। इनमें से कुछ कदम जहां यूरोपीय देशों तथा यूरोपीय संघ के द्वारा पहले ही उठाए जा चुके हैं, वहीं वैश्विक निजी क्षेत्र इन अमेरिकी कदमों को लेकर यूरोप के कदमों की तुलना में कहीं अधिक सावधानी से प्रतिक्रिया देगा।
नए आक्रामक प्रतिबंध कई क्षेत्रों में विस्तारित हैं। दो बड़े उत्पादकों और निर्यातकों को प्रतिबंधों के दायरे में लाया गया है: सरगुटनेफ्ट गैस और गैजप्रोम नेफ्ट। इन दोनों कंपनियों ने गत वर्ष मिलकर जो लाखों बैरल तेल निर्यात किया वह रूस के मौजूदा समुद्री निर्यात का एक तिहाई है। यह भारत समेत दुनिया के बाजार में वर्तमान तेल आपूर्ति का बहुत बड़ा हिस्सा है। इसके अलावा कुछ विशिष्ट तेल टैंकर पोतों पर भी प्रतिबंध लगाया गया है, जिनमें ऐसे पोत भी शामिल हैं जो आर्कटिक सागर के पार रूस के मरमांस्क जैसे क्षेत्रीय इलाकों तक तेल एवं गैस की आपूर्ति करते हैं। मध्यम अवधि में इन प्रतिबंधों का क्या असर होगा यह अभी स्पष्ट नहीं है। यकीनन, इससे लागत बढ़ेगी क्योंकि कई अलग-अलग तरह से आपूर्ति की जरूरत होगी।
अमेरिका के तरकश में एक और तीर है- रूस में समुद्री बीमा प्रदाताओं पर प्रतिबंध, खासतौर पर इन्गोस्ट्राख इंश्योरेंस कंपनी और अल्फास्ट्राखोवनी समूह पर प्रतिबंध। इनमें से पहली कंपनी खासतौर पर भारत आने वाले कार्गो का बीमा करती है और उसे बाजार से हटाने का अर्थ होगा भारत आने वाले शिपमेंट में ज्यादा देरी होना। भारत को इन नए प्रतिबंधों के असर से बचने के लिए उपयुक्त प्रतिक्रिया देनी होगी जो ज्यादा उथल पुथल लाने वाली न हो।
यह तत्काल करने की जरूरत है ताकि रूसी तेल लाने वाले शैडो फ्लीट (चोरी से प्रतिबंधित सामग्री ले जाने वाले पोत) को सुरक्षा पहले ही एक समस्या बन चुकी है। कुछ खास पोतों के विरुद्ध प्रतिबंध उनकी मरम्मत को मुश्किल बनाता है। उनके दुर्घटना के शिकार होने की आशंका बढ़ जाती है। और बीमा न होने के कारण दुर्घटना के बाद भारी नुकसान होता है। इसका समूची पारिस्थितिकी पर बुरा असर होता है। इस समय काला सागर में दो क्षतिग्रस्त रूसी तेल टैंकरों से तेल लीक होने की आशंका हैं। इस सप्ताहांत जर्मनी को एक परित्यक्त टैंकर से निपटना होगा जो बाल्टिक सागर में शैडो फ्लीट का हिस्सा था।
एक हद तक ये अतिरिक्त उपाय अनुमानित थे हालांकि उनकी आक्रामकता जरूर चौंकाने वाली थी। चीन के साथ-साथ भारत की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के कारण हाल के दिनों में खाड़ी और अटलांटिक क्षेत्र से आने वाले तेल पर निर्भरता बढ़ी है। भारत के सरकारी तेलशोधक कारखानों के बारे में खबर है कि फरवरी में 60 लाख बैरल कच्चे तेल के अनुबंध किए हैं। आंशिक रूप से ऐसा हाजिर बाजार में रूसी तेल की उपलब्धता न होने के कारण किया गया।
खबरों में मुताबिक पश्चिमी टेक्सस इंटरमीडिएट ग्रेड का 20 लाख बैरल तेल सुरक्षित कर लिया गया है। यह संभव है कि नए प्रतिबंधों के बाद रूस के कच्चे तेल की आपूर्ति का मॉडल तय करने में कुछ सप्ताह या महीनों का समय लग जाए। तब तक भारत आपूर्ति और कीमतों के मामले में अस्थिरता का शिकार रहेगा। यह भी संभव है कि रूसी तेल के लिए ऊंची लागत, कम विश्वसनीयता तथा मौजूदा की तुलना में खतरनाक आदि नया चलन हो जाए। भारतीय रिफाइनरियों की प्रतिबंध सक्षम व्यापार पर निर्भरता बहुत लंबे समय तक संभव नहीं रह सकती।