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Editorial: चीन के साथ वार्ता से बढ़ीं उम्मीदें, व्यापक स्तर पर भारत की कूटनीति की कामयाबी

ध्यान देने वाली बात है कि सीमा पर तनाव के बावजूद चीन के साथ भारत का व्यापार लगातार बढ़ता रहा है और संतुलन पूरी तरह चीन के पक्ष में झुका हुआ है।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 24, 2024 | 10:21 PM IST

रूस के कजान में ब्रिक्स बैठक से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच पांच साल में पहली बार औपचारिक मुलाकात हुई जिससे दोनों देशों के संबंधों में सुधार को लेकर उम्मीदें एक बार फिर बढ़ गई हैं। बैठक का सौहार्दपूर्ण स्वर इस मुश्किल रिश्ते के लिए मायने रखता है।

दोनों नेताओं ने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध को हल करने के लिए समझौते का स्वागत किया और घोषणा की कि दोनों देशों के बीच संवाद प्रक्रिया को जल्द शुरू किया जाएगा जिसमें दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधि भाग लेंगे और सीमा विवाद से जुड़े मसले हल करने का प्रयास करेंगे।

एशिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच संबंधों को सुधारने की इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। बहरहाल, भारत को इस प्रक्रिया में आगे बढ़ते हुए सावधान और सतर्क रहना होगा।

अभी तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि एलएसी पर सैन्य जमावड़ा कम करने और गश्त की व्यवस्था को लेकर क्या शर्तें तय हुई हैं। विदेश मंत्रालय ने अपने वक्तव्य में कहा कि विभिन्न स्तरों पर प्रासंगिक संवाद प्रणाली के जरिये अब रिश्तों को स्थिरता प्रदान करने और नए सिरे से तैयार करने का काम किया जाएगा।

मोदी ने इस बात पर भी जोर दिया है कि सीमा पर शांति बरकरार रखना भारत की प्राथमिकता है। एशिया के इन दोनों दिग्गज देशों के बीच संबंध सामान्य होने पर बहुत कुछ निर्भर है। भारत को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए रिश्ते के विभिन्न पहलुओं पर काम करना होगा। इनमें पहला है सीमा पर हालात सामान्य करना और वर्ष 2020 के पहले की स्थिति हासिल करना।

इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में काम करते हुए भी उसे ऐसी क्षमताएं विकसित करनी होंगी ताकि इस तरह की परिस्थितियां कभी दोहराई न जाएं। रिश्तों का दूसरा पहलू आर्थिक है। दुनिया के अधिकांश देशों की तरह भारत भी कई चीजों के लिए चीन पर निर्भर है।

चीन 2023-24 में अमेरिका को पीछे छोड़कर भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार बन गया। भारत, दूरसंचार और बिजली संबंधी कलपुर्जों, इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल और औषधियों समेत कई उच्च प्रौद्योगिकी वाली वस्तुओं के लिए चीन पर निर्भर है।

ध्यान देने वाली बात है कि सीमा पर तनाव के बावजूद चीन के साथ भारत का व्यापार लगातार बढ़ता रहा है और संतुलन पूरी तरह चीन के पक्ष में झुका हुआ है। आंशिक तौर पर ऐसा चीन द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले गैर-टैरिफ गतिरोधों के कारण भी है।

भारत को चीनी अधिकारियों के साथ ऐसे मुद्दे उठाते हुए व्यापार संबंधों को संतुलित करने का लक्ष्य रखकर चलना चाहिए। बहरहाल, यह भी सीमित उपयोग का साबित होगा और चीन पर निर्भरता कम करने के लिए एक व्यापक नीति की जरूरत होगी। इसके लिए घरेलू क्षमताएं तैयार करनी होंगी और नए स्रोत तलाश करने होंगे।

अमेरिका और चीन के आपसी रिश्तों को देखते हुए कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भरता अमेरिका और पश्चिम के साथ भारत की कारोबारी संभावनाओं पर भी असर डाल सकती है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सही कहा है कि भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आंख मूंद कर स्वीकार नहीं करेगा और ध्यान देगा कि यह निवेश कहां से आ रहा है।

कुल मिलाकर भारत और चीन के नेताओं की मुलाकात जहां अच्छी शुरुआत है, वहीं भारत को निरंतर कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर काम करना होगा। मोदी और शी के बीच की बैठक जहां दिलोदिमाग में रहेगी, वहीं यह भूलने की आवश्यकता नहीं है कि विस्तारित ब्रिक्स समूह की यह पहली बैठक है और मोदी ने वहां कई मुद्दों पर भारत की स्थिति स्पष्ट की।

व्यापक स्तर पर देखें तो यह भारत की कूटनीति की कामयाबी है कि देश अपनी शर्तों पर प्रमुख प्रतिस्पर्धी शक्तियों के साथ चर्चा कर रहा है। यह दीर्घकालिक लाभ और जिम्मेदारियां ला सकता है।

First Published : October 24, 2024 | 10:21 PM IST