भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने नए बाहरी सदस्यों के साथ इस सप्ताह नीतिगत समीक्षा की। उसने यह निर्णय लिया कि वह नीतिगत रीपो दर को 6.5 फीसदी के स्तर पर अपरिवर्तित रखेगी। परंतु एमपीसी ने नीतिगत रुख को समायोजन वापस लेने से बदलकर तटस्थ करने का निर्णय लिया ताकि कुछ बाजार सहभागियों की अपेक्षा के अनुरूप स्वयं को अधिक लचीला बना सके।
परंतु इस बदलाव को वित्तीय बाजारों को ऐसे किसी संकेत के रूप में नहीं देखना चाहिए कि दिसंबर में होने वाली बैठक में नीतिगत दरों में कटौती हो सकती है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व सहित कुछ बड़े केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत ब्याज दरों में कमी की है लेकिन एमपीसी का नीतिगत प्रस्ताव और रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का वक्तव्य स्पष्ट संकेत देता है कि भारतीय केंद्रीय बैंक महंगाई दर घटने की प्रक्रिया के पूरा होने तक प्रतीक्षा करने का इच्छुक है।
आरबीआई ने नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखने और रुख में बदलाव की बात को सही ढंग से संप्रेषित किया। यद्यपि मुद्रास्फीति का परिदृश्य अधिक अनुकूल हुआ है लेकिन एमपीसी केवल इसलिए कदम नहीं उठाना चाहती है क्योंकि बड़े केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत दरों में कमी की है और भविष्य में और सरलता अपनाने के संकेत दिए हैं।
यह सही है कि हेडलाइन मुद्रास्फीति की दर हाल के महीनों में कम हुई है, ऐसा आंशिक रूप से आधार प्रभाव के कारण हुआ है और उम्मीद की जा रही है कि आधार प्रभाव के कारण ही सितंबर में इसमें एक बार फिर उछाल आएगी।
खरीफ सत्र में अच्छी उपज के चलते चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। अच्छा मॉनसून और जलाशयों का उच्च जल स्तर भी रबी के उत्पादन में मददगार होगा। चूंकि शीर्ष मुद्रास्फीति दर उच्च खाद्य कीमतों से संचालित है इसलिए उत्पादन में बढ़ोतरी से दबाव कम होने की आशा है। एमपीसी का मानना है कि चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की दर औसतन 4.5 फीसदी रहेगी। अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में दर के और कम होकर 4.3 फीसदी रहने का अनुमान है।
चूंकि मौद्रिक नीति की प्रकृति अग्रगामी है और उसका प्रभाव ठहरकर होता है इसलिए दरों से संबंधित निर्णय अगले वित्त वर्ष की शेष तिमाहियों के अनुमानों पर निर्भर होगा। रिजर्व बैंक के आधारभूत मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान की बात करें तो 2025-26 की चौथी तिमाही के लिए वह 4.1 फीसदी है। इसका उल्लेख मौद्रिक नीति रिपोर्ट में है जिसे बुधवार को अन्य नीतिगत दस्तावेजों के साथ जारी किया गया। चूंकि उक्त आंकड़ा चार फीसदी के लक्ष्य के करीब है इसलिए यह आने वाले महीनों में रियायत की गुंजाइश पैदा कर सकता है।
बहरहाल, यह भी कई कारकों पर निर्भर करेगा। इस संदर्भ में पिछले कुछ सप्ताह में अनिश्चितता बढ़ी है। भूराजनीतिक तनाव आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर सकते हैं और यह बात मुद्रास्फीति पर असर डाल सकती है। चूंकि एमपीसी का अनुमान है कि वृद्धि मजबूत बनी रहेगी इसलिए उसके पास अवसर है कि वह इंतजार करे और हालात पर नजर रखे। रुख में बदलाव एमपीसी को यह विकल्प देता है कि वैश्विक आर्थिक और वित्तीय हालात में उल्लेखनीय गिरावट आने पर वह जल्द कदम उठा सके।
नीतिगत निर्णय के अलावा दास ने कम से कम दो ऐसी घोषणाएं कीं जिनका यहां उल्लेख करना उचित है। पहली, कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां इक्विटी पर उच्च रिटर्न की तलाश में हैं। इस प्रक्रिया में ऋण मानक और ग्राहक सेवा के साथ समझौता होता दिख रहा है। यह वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम पैदा कर सकता है। रिजर्व बैंक ने ऐसे संस्थानों के प्रोत्साहन ढांचे की समीक्षा करने का सुझाव देकर सही किया है।
दूसरी बात, जलवायु परिवर्तन जो वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम पैदा कर सकता है, उसे लेकर आरबीआई ने डेटा रिपॉजिटरी बनाने का प्रस्ताव रखा है। इससे विनियमित संस्थानों को जलवायु जोखिम का आकलन करने में मदद मिलेगी। हालांकि यह पहल कैसे आगे बढ़ती है यह भी देखना होगा। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।