सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को उस अधिसूचना पर रोक लगा दी जिसके तहत पत्र सूचना ब्यूरो के अधीन एक फैक्ट चेकिंग यूनिट (तथ्यों की जांच करने वाली इकाई) की स्थापना की जानी थी। न्यायालय ने कहा कि इस पर तब तक रोक रहेगी जब तक बंबई उच्च न्यायालय सूचना प्रौद्योगिकी नियमों में संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला नहीं सुना देता।
इस बीच गूगल और मेटा जैसी डिजिटल क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां चुनाव के दौरान गलत सूचनाओं के प्रसार का मुकाबला करने के लिए अपनी रणनीतियों को बेहतर बनाने का प्रयास कर रही हैं। वे जांच के लिए नए टूल विकसित करने और तथ्यों की जांच करने वालों (फैक्ट चेकर) को प्रशिक्षण देने के अलावा दोनों अन्य संस्थानों द्वारा संचालित तथ्यों की जांच संबंधी पहलों में भी शामिल होंगी और भारत निर्वाचन आयोग के साथ तालमेल में काम करेंगी।
2019 में सभी बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्मों ने अपने-अपने स्तर पर गलत सूचनाओं को रोकने का प्रयास किया था और उसके मिलेजुले नतीजे सामने आए थे। 2024 में यह अभियान अधिक तालमेल के साथ चलाया जा रहा है। 40 से अधिक बड़े बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और इस बात पर सहमति जताई कि वे 2024 में वैश्विक स्तर पर मिलकर चुनावों से संबंधित गलत जानकारियों का मुकाबला करेंगे।
जोखिम बहुत बढ़ गया है क्योंकि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस अब राजनेताओं से जुड़ी वास्तविक प्रतीत होने वाली दृश्य-श्रव्य सामग्री बना सकता है। इन डिजिटल दिग्गजों को विभिन्न समाचार माध्यमों के साथ तालमेल में काम करना होगा ताकि भ्रामक सूचनाओं को रोका जा सके, मतदाताओं से हस्तक्षेप सीमित हो सके और विभिन्न प्लेटफॉर्म पर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मेटा के पास फेसबुक, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम का मालिकाना है जबकि गूगल के पास यूट्यूब और अपना सर्च इंजन है। इससे जुड़ी रणनीतियों में स्वतंत्र फैक्ट चेकर और स्थानीय सामग्री रचनाकारों और प्रकाशकों के साथ जुड़ाव, तथ्यों की जांच, जांच के संसाधन और गलत सूचनाओं को लेकर चेतावनी जारी करने के लिए सहयोगी मंच प्रदान करना शामिल है। इरादा ऐसी सामग्री को वायरल होने से रोकना है। मेटा पहले ही गलत सूचनाओं को हटा देता है।
इसमें मतदान को प्रभावित करने वाली तथा हिंसा को बढ़ावा देने वाली सामग्री शामिल है। उसका दावा है कि उसके पास 15 भारतीय भाषाओं में स्वतंत्र तथ्य जांचने वालों का नेटवर्क है। उसके पास व्हाट्सऐप हेल्पलाइन है जो संदिग्ध जानकारियों को रिपोर्ट करने या उनकी पुष्टि करने में मदद करता है।
गूगल प्रकाशकों के लिए एक साझा भंडार तैयार करेगा ताकि गलत सूचनाओं से निपटा जा सके। कई भाषाओं और स्वरूपों में, जिनमें वीडियो भी शामिल हैं, फैक्ट चेक को साझा किया जाएगा और गूगल के साझेदारों की मदद से उन्हें बढ़ावा दिया जाएगा।
दोनों कंपनियां फैक्ट चेकिंग के उन्नत तरीकों को लेकर प्रशिक्षण का आयोजन करेंगी। इसमें डीप फेक का पता लगाना और गूगल फैक्ट चेक एक्सप्लोरर और मेटा कंटेंट लाइब्रेरी की शुरुआत शामिल है। तथ्यों की जांच करने वाले सामग्री के बारे में कह सकते हैं कि उनसे छेड़छाड़ की गई है। ऐसी सामग्री को छांटकर बाहर कर दिया जाएगा।
फेसबुक का दावा है कि वह गूगल, ओपनएआई, माइक्रोसॉफ्ट, एडोबी और शटरस्टॉक आदि की एआई की मदद से तैयार सामग्री का पता लगाने के लिए उपाय विकसित कर रही है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप और थ्रेड पर अक्सर इन माध्यमों की सामग्री ही प्रकाशित की जाती है।
जरूरत इस बात की भी है कि मेटा पर विज्ञापन देने वाले यह बताएं कि कब वे एआई की मदद से सामग्री तैयार कर रहे हैं। यह सामग्री राजनीतिक या सामाजिक विषयों से जुड़ी हो सकती है। यह उस सामग्री पर रोक लगाता है जिसे फैक्ट चेकर नकारते हैं। वह ऐसे विज्ञापनों को भी रोकता है जो मतदान को हतोत्साहित करते हैं।
अगर गलत सूचनाओं के खिलाफ अभियान को प्रभावी बनाना है तो यह आवश्यक होगा कि झूठी सामग्री का तत्काल पता लगाकर उसे हटाया जाए ताकि वह वायरल न हो सके। ऐसे उपकरणों का बिना किसी पूर्वग्रह के इस्तेमाल करना होगा। फैक्ट चेकिंग के उपायों का दुरुपयोग करके किसी खास राजनीतिक हलके की सामग्री को रोक देना भी आसान हो सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ये उपाय तथा ऐसे अन्य उपाय प्रभावी साबित होंगे और उन्हें बिना किसी भय या पक्षपात के लागू किया जाएगा।