बिज़नेस स्टैंडर्ड के सालाना आयोजन बिजनेस मंथन के आरंभिक संस्करण में केंद्रीय मंत्रियों समेत कई प्रमुख नीति निर्माता और कारोबारी तथा वैचारिक नेता शामिल हुए। आयोजन के दौरान हुई चर्चाओं में उन्होंने 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र का दर्जा दिलाने के संभावित सफर का जायजा लिया, उस पर बातचीत की।
आधार वक्तव्य में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चार ‘आई’ के बारे में बात की: इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी अधोसंरचना, इन्वेस्टमेंट यानी निवेश, इनोवेशन यानी नवाचार और इन्क्लूसिवनेस यानी समावेशन। उन्होंने कहा कि इनकी मदद से देश इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
केंद्रीय रेलवे, संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि आने वाले वर्षों में भारत उत्पाद आधारित देश बनेगा और कई उत्पाद गहन प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के होंगे। केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य, उपभोक्ता मामलों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण तथा कपड़ा मंत्री पीयूष गोयल ने अन्य चीजों के अलावा व्यापार के मुद्दों पर सरकार के रुख को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि नीतियां देश की विकास यात्रा के अनुरूप हैं।
दो दिन हुई चर्चाओं में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और स्टार्टअप की भूमिका समेत कई विषयों पर चर्चा हुई। एक विकसित देश कैसा हो इसकी अलग-अलग परिभाषाएं और अनुमान हैं और भारत इस दर्जे को कैसे हासिल करेगा, इसे लेकर भी कई तरह की बातें की जा सकती हैं परंतु इस सफर की एक बात पूरी तरह निर्विवाद है और वह यह कि इसके लिए भारत को निरंतर तेज वृद्धि बरकरार रखनी होगी।
इस संदर्भ में जहां भौतिक अधोसंरचना तैयार करने के लिए अहम निवेश की जरूरत है जो कि स्वागत योग्य है, वहीं कई वैचारिक नेताओं ने शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार पर जोर देते हुए कहा कि तेज वृद्धि के लिए ये भी आवश्यक हैं। यह इसलिए भी अहम है कि अब भारत के पास जनांकीय लाभ लेने की बहुत अधिक गुंजाइश नहीं है।
बहरहाल, दिलचस्प बात यह है कि स्वास्थ्य एवं शिक्षा की स्थिति में सुधार लाने पर पूरी सहमति के साथ बीते वर्षों की प्रगति के बाद भी काफी कुछ करने को रह गया है। राज्यों को अपनी नीतियों को नए सिरे से केंद्रित करना होगा और व्यय को नई दिशा देनी होगी क्योंकि इन क्षेत्रों में सुधार की ज्यादातर जवाबदेही उन पर है।
खराब स्वास्थ्य और शैक्षणिक नतीजों की एक अहम वजह है स्थानीय निकायों के सशक्तीकरण की कमी क्योंकि वे स्थानीय स्तर पर इन सेवाओं को मुहैया कराने में बेहतर स्थिति में हैं। अब भंग किए जा चुके योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने पर सही जोर दिया था।
रिजर्व बैंक द्वारा पंचायती राज संस्थानों की राजकोषीय स्थिति पर किए गए एक हालिया अध्ययन ने दिखाया कि कैसे भारत इस क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। औसतन देशों की तुलना करें तो कुल कर राजस्व का 10 फीसदी स्थानीय सरकारों को जाता है। कुछ देशों मसलन फिनलैंड और स्विट्जरलैंड में यह आंकड़ा 20 फीसदी से अधिक है जबकि भारत में यह नगण्य है। उदाहरण के लिए भारत में अनुदान सहित प्रति पंचायत औसत राजस्व 2022-23 में 21.23 लाख रुपये था। स्पष्ट है कि राजकोषीय रूप से सशक्त स्थानीय सरकारें वृद्धि को बढ़ाने के लिए जरूरी हैं।
संविधान के अनुच्छेद 243-1 में कहा गया है कि राज्यों और पंचायतों के बीच करों की साझेदारी की अनुशंसा के लिए राज्य वित्त आयोग हो। बहरहाल इस मामले में राज्य पिछड़े नजर आते हैं। इसका एक संभावित हल यह हो सकता है कि राजस्व को वित्त आयोग के स्तर पर ही बांटने के लिए जरूरी कानूनी उपाय किए जाएं।
यकीनन लंबी अवधि तक उच्च टिकाऊ दर से वृद्धि हासिल करना आसान नहीं होगा। खासतौर पर मद्धम वैश्विक हालात को देखते हुए। भारत को साहसी सुधारों की दिशा में पुन: बढ़ना होगा ताकि इन संभावनाओं को बेहतर किया जा सके। व्यापक स्तर पर कारोबारी सुगमता बढ़ाने तथा मानव पूंजी को अधिक उत्पादक बनाने पर ध्यान देने की जरूरत है।