ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल के नवीनतम भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (सीपीआई) से पता चलता है कि 2023 में देश में सरकारी क्षेत्र का भ्रष्टाचार एक मुद्दा रहा। वर्ष 2022 में जहां देश को 180 देशों में 85वां स्थान मिला था, वहीं इस वर्ष वह फिसलकर 93वें स्थान पर चला गया है।
यह रैंकिंग सापेक्ष स्थिति दर्शाती है। देश का सीपीआई अंक 100 में 40 से घटकर 100 में 39 रह गया है। ज्यादा अंक बेहतर स्थिति को दर्शाता है।
ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल की टिप्पणी से यह संकेत मिलता है कि इस मामूली बदलाव से कोई अहम निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है। रिपोर्ट में दूरसंचार कानून के पारित होने को खतरे का संभावित संकेत माना है जिसके जरिये राज्य की निगरानी शक्तियों का विस्तार हुआ है।
परंतु दीर्घावधि में भारत के सीपीआई अंक और रैंकिंग पर गौर करने से संकेत निकलता है कि भ्रष्टाचार एक ऐसा जिन्न है जिससे भारत को अभी निर्णायक लड़ाई जीतनी है।
वर्ष 2012 से ही भारत का सीपीआई परिणाम 30-40 के इर्दगिर्द रहा है। भारत ने 2018 और 2019 में दोनों साल 41 अंकों के साथ बेहतरीन प्रदर्शन किया। यह चीन के प्रदर्शन से बहुत अलग नहीं है जिसने ताजा सूचकांक में 100 में 42 अंक हासिल किए जबकि इससे पहले उसे 45 अंक मिले थे। रैंकिंग के नजरिये से भी देखें तो भारत 70-75 से 80-85 के दरमियान रहा है। 2015 में हमें 76वीं रैंक मिली थी जो एक वर्ष पहले के 85वें स्थान से बेहतर थी।
निश्चित तौर पर इन नतीजों के अंतर पर प्रश्नचिह्न लग सकता है क्योंकि ये कारोबारियों और विशेषज्ञों की धारणा पर आधारित हैं। सीपीआई स्कोर को किसी देश की रैंकिंग की तुलना में अधिक परिणाम दर्शाने वाला माना जाता है और इसे विश्व बैंक तथा विश्व आर्थिक मंच समेत कई संस्थानों के 13 अलग-अलग भ्रष्टाचार आकलनों से निकाले गए तीन डेटा स्रोतों से निकाला जाता है।
भारत को कजाकस्तान और लसूटू के साथ साझा रैंकिंग दी गई है और इसलिए इस पर पर थोड़ा सतर्क निगाह डालने की आवश्यकता है। सीपीआई में रिश्वत, अधिकारियों द्वारा अपने पद का इस्तेमाल निजी लाभ के लिए करने, अत्यधिक लालफीताशाही, सरकार की सरकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने की काबिलियत आदि जैसे मानक शामिल होते हैं।
इसमें कुछ बातों को शामिल नहीं किया जाता है मसलन नागरिकों के भ्रष्टाचार से जुड़े प्रत्यक्ष अनुभव, धन शोधन, कर संबंधी धोखाधड़ी, अवैध वित्तीय आवक या असंगठित अर्थव्यवस्था और बाजार। ऐसा इसलिए कि इन सभी की निगरानी कर पाना मुश्किल होता है। चूंकि ये सभी तत्त्व भारत समेत विकासशील देशों में आम हैं, इसलिए संभव है कि सीपीआई इन देशों में भ्रष्टाचार की पक्षपाती तस्वीर पेश करे।
2016 के बाद से सीपीआई स्कोर के मामले में भारत 40 की ऊंचाई तक पहुंच गया। यह सार्वजनिक संपत्ति वितरण नीति में विवेकाधीन लाइसेंसिंग से नीलामी का प्रारूप अपनाने के कारण भी हो सकता है। विवेकाधीन लाइसेंसिंग दूरसंचार और कोयला घोटालों का स्रोत बनी थी जिसके कारण संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का पतन हुआ था।
वस्तु एवं सेवा कर तथा ऋणशोधन कानून जैसी संस्थागत व्यवस्थाओं की बदौलत सार्वजनिक भ्रष्टाचार की संभावना कम हुई। परंतु अर्थव्यवस्था में सरकारी व्यय के आकार को देखते हुए तथा उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजनाओं के जरिये विनिर्माण निवेश जुटाने के प्रयासों के बीच असली बदलाव न्याय व्यवस्था में सुधार में निहित है। इस क्षेत्र में भारत का प्रदर्शन कमजोर रहा है।
त्वरित और मजबूत न्याय प्रक्रिया खुद बड़ा बदलाव ला सकती है। वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट रूल ऑफ लॉ सूचकांक में भारत को 0 से एक अंक के बीच 0.49 अंक मिले। यहां एक अंक सबसे मजबूत कानून व्यवस्था को दर्शाता है। सीपीआई स्कोर तैयार करने में इस सूचकांक का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस पैमाने पर हम वियतनाम के आसपास हैं जो चीन प्लस वन निवेश नीति में भारत का अहम प्रतिस्पर्धी है।