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Editorial: नवीकरणीय ऊर्जा पर असमंजस

सरकार नामित चार नवीकरणीय ऊर्जा कार्यान्वयन एजेंसियों (आरईआईए) द्वारा पेश 40 गीगावॉट क्षमता की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को खरीदार नहीं मिल सके हैं।

Last Updated- February 10, 2025 | 10:42 PM IST
Renewable energy

भारत पेरिस समझौते के अंतर्गत आने वाली जलवायु कार्य योजनाओं का तीसरा दौर पेश करने या अपने लक्ष्यों में सुधार करने की 10 फरवरी की समय-सीमा चूक सकता है और इसकी एक वजह नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने से संबंधित अनिश्चितता हो सकती है। जैसा कि सोमवार को इस समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ, सरकार नामित चार नवीकरणीय ऊर्जा कार्यान्वयन एजेंसियों (आरईआईए) द्वारा पेश 40 गीगावॉट क्षमता की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को खरीदार नहीं मिल सके हैं।

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की 5 फरवरी की समीक्षा बैठक में पता चला कि नवीकरणीय ऊर्जा निविदा एजेंसी सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (सेकी) तथा सरकारी उत्पादक कंपनियों एनटीपीसी, एनएचपीसी और एसजेवीएन द्वारा आवंटित ये परियोजनाएं एक साल से अधिक समय तक लंबित रहीं क्योंकि किसी राज्य सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों के साथ बिजली विक्रय समझौतों (पीएसए) में रुचि नहीं दिखाई। लंबित निविदाएं वर्ष 2023-24 में चार एजेंसियों द्वारा जारी की गई 94 गीगावॉट की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की बोलियों के लगभग आधे के बराबर हैं। इसके परिणामस्वरूप आरईआईए के साथ सभी पीएसए अथवा बिजली खरीद समझौतों यानी पीपीए पर हस्ताक्षर होने तक नई निविदाओं को स्थगित रखने के विकल्प पर विचार किया जा रहा था।

वास्तविक समस्या मांग में कमी नहीं बल्कि सौर और पवन ऊर्जा उपकरणों की लागत में लगातार कमी आ रही है। फाइनैंसिंग की लागत में सुधार हुआ है जो प्रति यूनिट उत्पादन लागत को लगातार कम करता है। उदाहरण के लिए सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट लागत 2.50 रुपये है जो इसे बिजली का किफायती स्रोत बनाती है। तार्किक रूप से देखें तो नकदी की कमी से जूझ रहे राज्य बिजली बोर्ड, जो बिजली के अहम वितरक हैं उन्हें यह बिजली खरीदने के लिए उत्सुकता से आगे आना चाहिए, खासकर इसलिए कि भंडारण बैटरी की तकनीक विकसित हो रही है। परंतु नवीकरणीय ऊर्जा की बिजली कीमतों में लगातार कमी आ रही है, ऐसे में राज्य बिजली बोर्डों के पीएसए या पीपीए पर हस्ताक्षर करने से बचने को समझा जा सकता है क्योंकि उन्हें सैद्धांतिक रूप से ऊंचे अनुबंध मूल्य पर हस्ताक्षर करने होंगे।

यद्यपि 2024 में कीमतें कुछ हद तक स्थिर हो गईं। टेरी और अमेरिका के थिंक टैंक क्लाइमेट पॉलिसी इनीशिएटिव के एक संयुक्त अध्ययन में अनुमान जताया गया कि सौर ऊर्जा उत्पादन की लागत 2030 तक कम होकर 1.90 रुपये प्रति यूनिट हो जाएगी। इस वजह से भी अदाणी समूह की सेकी स्वीकृत सौर ऊर्जा परियोजना में रिश्वत के आरोप लगे। दूसरे शब्दों में कहें तो नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग अपनी ही कामयाबी का शिकार हो गया।

इस ढांचागत समस्या का परिणाम यह हुआ और जैसा कि बिज़नेस स्टैंडर्ड ने प्रकाशित भी किया, नवीकरणीय ऊर्जा में नया निवेश थम गया। उदाहरण के लिए सेकी की पीपीए पर हस्ताक्षर करने में विफलता के कारण केंद्रीय बिजली नियामक आयोग ने ग्रिड स्केल बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली यानी बीईएसएस के लिए आरआईईए की पहली निविदा में तय टैरिफ को 2022 से ही अस्वीकार कर दिया है। बीईएसएस एक प्रमुख प्रौद्योगिकी है जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को ग्रिड में एकीकृत करती है।

यह भी एक अहम वजह है कि नवीकरणीय ऊर्जा की 46.3 फीसदी की स्थापित क्षमता के बावजूद कोयला वास्तविक उत्पादन में आगे है। ऐसी बाधाओं के कारण ही पेरिस समझौते जैसे गैर जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन को 2030 तक 500 गीगावॉट पहुंचाने के लक्ष्य हकीकत से दूर नजर आते हैं। सरकार के आम परिवारों को सौर ऊर्जा से जोड़ने के पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना जैसे बेहतरीन प्रयासों के बावजूद हकीकत यह है कि भारत आने वाले कई साल तक कोयला आधारित अर्थव्यवस्था बना रहेगा।

 

First Published - February 10, 2025 | 10:42 PM IST

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