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भाजपा का घोषणापत्र निरंतरता का संकेत

पिछले 10 साल में नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे अहम उपलब्धियों में से एक यह रही, जिसकी शायद पर्याप्त सराहना नहीं की गई है, कि उसने व्यापक आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा दिया है।

Last Updated- April 15, 2024 | 9:28 PM IST
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भारतीय जनता पार्टी ने लोक सभा चुनाव 2024 के लिए रविवार को अपना घोषणापत्र या संकल्पपत्र जारी किया। इसमें इस बात को रेखांकित किया गया है कि पिछले 10 साल में भाजपा सरकार ने क्या हासिल किया है और यदि वह तीसरे कार्यकाल के लिए भी निर्वाचित होती है तो किस तरह से देश को आगे लेकर जाएगी।

आर्थिक लिहाज से देखें तो यह घोषणापत्र कुछ महत्त्वपूर्ण सुधारों के साथ निरंतरता या उपलब्धियों की बुनियाद पर निर्माण का संकेत देता है। पिछले 10 साल में नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे अहम उपलब्धियों में से एक यह रही, जिसकी शायद पर्याप्त सराहना नहीं की गई है, कि उसने व्यापक आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा दिया है। साल 2014 में वृहद आर्थिक परिदृश्य-जब साल 2013 में मुद्रा संकट जैसी स्थिति बन गई थी-आज से काफी अलग था।

आज भारत के पास बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है और पिछले एक दशक में अब बैंकिंग प्रणाली सबसे अच्छी स्थिति में है। महामारी के दौरान भारत की संयमित राजकोषीय प्रतिक्रिया और कानूनी रूप से तय महंगाई के लक्ष्य के प्रति केंद्रीय बैंक की प्रतिबद्धता ने निवेशकों का भरोसा बढ़ाने में मदद की है। इस तरह भाजपा ने वृहद आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराकर अच्छा कदम उठाया है जो कि वृद्धि और विकास के लिए जरूरी है।

दो अन्य जो महत्त्वपूर्ण वादे किए गए हैं, वे हैं- सांख्यिकीय संस्थानों को मजबूत करना और पंचायती राज संस्थाओं में राजकोषीय स्वायत्तता को बढ़ावा देना। इन दोनों प्रतिबद्धताओं से शासन को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।

भारत जैसे तेजी से बढ़ते देश में नीतिगत फैसलों के लिए यह जरूरी है कि आंकड़े समय से मिल जाएं। वैसे तो भारत के पास एक मजबूत सांख्यिकीय व्यवस्था है, लेकिन अर्थव्यवस्था की मांगों की बदलती प्रकृति के साथ तालमेल बनाने के लिए इसमें व्यापक बदलाव करना होगा।

उदाहरण के लिए राष्ट्रीय लेखा के आंकड़े काफी देर से मिलते हैं और इसमें कई बार बड़े संशोधन हो जाते हैं। इससे नीति निर्माण प्रभावित होता है और कारोबार के लिए फैसले लेने में ज्यादा कठिनाई होती है। सांख्यिकीय प्रणाली में सुधार का एक अहम पहलू यह सुनिश्चित करना है कि इस क्षेत्र में कार्यरत संस्थानों को स्वतंत्र और भरोसेमंद बनाया जाए।

समय से आंकड़े मिलने लगें तो फैसले करने की प्रक्रिया में सुधार होगा और निवेशकों का भरोसा बढ़ाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, भारतीय शासन प्रणाली की एक वाजिब आलोचना यह होती है कि यहां सत्ता का पर्याप्त विकेंद्रीकरण नहीं हुआ है। इसका नतीजा यह है कि सरकार के तीसरे स्तर यानी स्थानीय निकाय, जो कि नागरिकों को कई तरह की सेवाओं की आपूर्ति बेहतर तरीके से कर सकते हैं, पर्याप्त रूप से सशक्त नहीं हैं।

इस संबंध में, भाजपा के इस वादे का स्वागत करना चाहिए कि वह पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय स्वायत्तता को बढ़ावा देगी, हालांकि यह कैसे होगा यह देखना अहम होगा। पिछले वर्षों में देखें तो कुछ संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने के अलावा कुछ खास नहीं किया गया है। जैसा कि इस क्षेत्र के लिए पहले भी यह बात सामने आ चुकी है, अनुदान सहित हर पंचायत का औसत राजस्व साल 2022-23 में महज 21.23 लाख रुपये था।

स्थानीय निकायों को वित्तीय रूप से स्वायत्त और बेहतर बनाने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें संसाधन जुटाने में सक्षम बनाया जाए और उनके कोष का पूर्वानुमानित हस्तांतरण हो सके। एक संभावित तरीका यह हो सकता है, जिसके लिए कानूनी बदलाव करना होगा, कि उनको सीधे वित्त आयोग के जरिये संसाधनों का आवंटन किया जाए। वस्तु एवं सेवा कर संग्रह से हासिल राजस्व का एक हिस्सा उन्हें देना भी एक विकल्प हो सकता है।

भाजपा के अन्य वादों की बात करें, तो उसने कहा है कि सत्ता में वापस आने पर वह निवेश और बुनियादी ढांचा निर्माण पर जोर देना जारी रखेगी, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार का सृजन होगा। भाजपा का इरादा विनिर्माण क्षेत्र में भी कई पहल करने का है जिससे नौकरियों का सृजन हो।

इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो व्यापार नीति की समीक्षा करना उपयोगी हो सकता है। निर्यात में सतत तरीके से वृद्धि, आर्थिक विकास और नौकरियों के सृजन, दोनों लिहाज से एक बड़ा वाहक साबित हो सकता है। आर्थिक तर्क के साथ एक बड़ा राजनीतिक वादा ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का है। वैसे तो यह विचार नीतिगत अनिश्चितता को कम करने का वादा करता है, लेकिन उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा सुझाए गए आगे के रास्ते पर बड़े पैमाने पर चर्चा होनी चाहिए।

First Published - April 15, 2024 | 9:28 PM IST

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