केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम (satellite spectrum) का प्रशासनिक आवंटन किया जाएगा। इससे यह स्पष्ट हुआ है कि नीलामी की संभावना समाप्त हो चुकी है। इसके साथ ही इससे साझा सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के वैश्विक मानक की पुष्टि हुई है।
अब कीमतों के निर्धारण का मामला भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के हाथ में है। अब जबकि नीलामी की गुंजाइश नहीं है तो ट्राई को एक फॉर्मूला तैयार करना होगा कि कैसे और किस कीमत पर स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाए। दूरसंचार नियामक को इस विवादित मुद्दे को भी हल करना होगा कि ग्रामीण और शहरी सैटेलाइट सेवा प्रदाताओं के लिए समान नियम होंगे या नहीं।
ऐसे समय में जबकि 5जी और 6जी दूरसंचार सेवाएं, उनके उपयोग या उनकी कमी अहम चर्चा का विषय हैं, सैटेलाइट संचार ने उद्योग जगत को विभाजित कर दिया है। मुकेश अंबानी द्वारा प्रवर्तित रिलायंस जियो क्षेत्रीय कंपनियों के साथ समान अवसर की आवश्यकता का हवाला देते हुए सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के लिए नीलामी वाले मार्ग का समर्थन कर रही है जबकि सुनील मित्तल के नेतृत्व वाला भारती समूह सैटेलाइट संचार के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन के वैश्विक चलन पर जोर दे रहा है।
बहरहाल मित्तल ने मंगलवार को नई दिल्ली में उद्योग जगत पर नजर रखने वालों को उस समय चकित कर दिया जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सिंधिया और कारोबारी जगत के दिग्गजों की मौजूदगी में मंच से कहा कि जिन सैटेलाइट कंपनियों की आकांक्षा शहरी क्षेत्रों में आकर कुलीन खुदरा ग्राहकों को सेवा देने की है उन्हें भी अन्य कंपनियों की तरह ही दूरसंचार लाइसेंस लेने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि उन्हें भी उन्हीं कानूनी शर्तों का पालन करना चाहिए, लाइसेंस शुल्क चुकाना चाहिए और दूरसंचार कंपनियों की तरह ही स्पेक्ट्रम खरीदना चाहिए। मित्तल ने शहरी और कुलीन सेवाओं की बात करते हुए किसी कंपनी का नाम नहीं लिया लेकिन ऐसा लगा मानो वह पर्देदारी के साथ उन विदेशी कंपनियों का उल्लेख कर रहे हैं जो देश में सैटेलाइट संचार सेवा प्रदान करना चाहती हैं।
रिलायंस जियो और वनवेब (जिसमें भारती एयरटेल प्रमुख निवेशक है), विदेशी कंपनियां जिनमें ईलॉन मस्क की स्टारलिंक और एमेजॉन का प्रोजेक्ट कुइपर शामिल हैं, वे देश के सैटेलाइट संचार क्षेत्र में प्रमुख दावेदार हैं। यहां तक कि स्टारलिंक और कुइपर को अभी भारत में सेवा देने के लिए सरकार की मंजूरी मिलनी बाकी है।
दूरसंचार नियामक ट्राई को सैटेलाइट उद्योग के लिए मानक और दिशानिर्देश तय करने में जल्दी करनी चाहिए। यह दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह क्षेत्रीय नेटवर्क के साथ सह-अस्तित्व में रह सकती है। ट्राई ने कहा है कि वह सैटेलाइट संचार स्पेक्ट्रम आवंटन पर अनुशंसाएं करने के पहले हर प्रकार की टिप्पणियों को ध्यान में रखेगा।
बहरहाल ट्राई के चेयरमैन अनिल कुमार लाहोटी ने स्पष्ट कर दिया है कि कुछ दूरसंचार कंपनियों की बदलाव की मांग के बावजूद इस विषय पर गत माह जारी मशविरा पत्र से पीछे नहीं हटा जाएगा। सितंबर में जारी मशविरा पत्र में ट्राई ने सुझाव दिया है कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम शुल्क को कंपनियों के समायोजित सकल राजस्व यानी एजीआर से जोड़ दिया जाए।
नियामक के मुताबिक ऐसा फॉर्मूला वित्तीय बोझ को लचीला बनाएगा। सैटेलाइट दूरसंचार के नियम तय करने में पहले ही देरी हो चुकी है और इनके बन जाने के बाद ग्रामीण भारत के दूरसंचार और ब्रॉडबैंड क्षेत्र में जीवंतता आएगी।
अगस्त में जारी ट्राई की सालाना संकेतक रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत में दूरसंचार घनत्व शहरों के 133 फीसदी की तुलना में केवल 60 फीसदी था। इस परिदृश्य में सैटेलाइट संचार ग्रामीण भारत में संचार सुविधाएं बढ़ाएगा और उन क्षेत्रों में अवसरों के नए द्वार खोलेगा।