संयुक्त राष्ट्र ने गत सप्ताह विश्व जनसंख्या संभावना रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में व्यापक तौर पर वैश्विक जनांकिकी के भविष्य की राह समेत कई अनुमान जताए गए हैं तथा चुनिंदा देशों और क्षेत्रों को लेकर भविष्यवाणी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की आबादी में इजाफा जारी रहेगा और 2080 के दशक के आरंभ तक दुनिया की आबादी 10 अरब का आंकड़ा पार कर जाएगी।
उसके बाद आबादी में गिरावट का सिलसिला आरंभ होगा। यह समग्र रुझान क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय अंतर को छिपा लेता है। इस अवधि में बाद के वर्षों में आबादी में होने वाली वृद्धि का अधिकांश भाग अफ्रीका महाद्वीप से आएगा, खासतौर पर सब-सहारा अफ्रीका से।
इनमें से कई देश मसलन सोमालिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ द कॉन्गो (डीआरसी) फिलहाल आर्थिक रूप से पिछड़े और राजनीतिक रूप से अस्थिर हैं। उनमें से कुछ देश मसलन डीआरसी आदि में भरपूर प्राकृतिक संसाधन भी हैं जिनका मूल्य आने वाले दशकों में बढ़ेगा। इन देशों में युवा आबादी भी होगी और संसाधनों को लेकर प्रतिस्पर्धा भी होगी। जाहिर है भविष्य में ये वैश्विक और भूराजनीतिक दृष्टि से
अहम होंगे।
वैश्विक जनसंख्या संभावना रिपोर्ट से यह संकेत भी मिलता है कि निकट भविष्य में भारत की आबादी चीन से अधिक रहने वाली है। बहरहाल इसका अनुमान है कि पाकिस्तान की आबादी का बढ़ना भी जारी रहेगा और 39 करोड़ की आबादी के साथ वह अमेरिका से आगे निकल जाएगा। यह बात भारत और विश्व के लिए महत्त्वपूर्ण है।
यह देखना शेष है कि भारत की पाकिस्तान को अलग-थलग रखने और अनदेखा करने की नीति क्या तब भी टिकाऊ होगी जब वह दुनिया का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला मुल्क बन जाएगा? रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी में 2062 के बाद कमी आनी शुरू हो जाएगी यानी वैश्विक जनसंख्या के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने के करीब दो दशक पहले उसकी आबादी घटने लगेगी।
इससे भी अहम बात शायद यह है कि देश की समस्त आबादी में गिरावट शुरू होने के करीब एक दशक पहले ही उसकी श्रम योग्य आयु की आबादी के बढ़ने की गति आम आबादी की तुलना में कहीं अधिक तेजी से धीमी होगी। निर्भरता अनुपात की बात करें तो 15 वर्ष से कम और 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्या में इजाफा होगा।
बढ़ती और उच्च निर्भरता अनुपात वाले देश आमतौर पर उस सीमा से गुजर चुके हैं जहां वे प्रति व्यक्ति आय में इजाफा कर सकते थे। भारत के लिए इसके आर्थिक और नीतिगत निहितार्थ स्पष्ट हैं। उसके पास समृद्ध होने के लिए तीन दशक हैं। अगर हम इस अवधि का समझदारी से इस्तेमाल नहीं कर पाए तो मध्य आय स्तर में उलझ सकते हैं। ऐसे में वह जनसंख्या उत्पादकता में असाधारण वृद्धि करने में भी नाकाम रहेगा।
जो लोग 2054 में श्रम शक्ति में सबसे बुजुर्ग होंगे वे इस समय रोजगार की तलाश में हैं। अल्पशिक्षित युवाओं के सरकारी नौकरी की तलाश में कतार में लगे होना नीति निर्माताओं के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। अगली सदी में तथा उसके बाद देश का भविष्य इन्हीं लोगों पर निर्भर करेगा। क्या उनके पास वह कौशल है कि वे देश को उच्च आय के स्तर पर ले जा सकें? इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक नहीं लगता।
ऐसे में कौशल उन्नयन सरकार की पहली प्राथमिकता होना चाहिए। केवल रोजगार निर्माण करना उस आबादी के लिए पर्याप्त नहीं है जो अवसरों का लाभ लेने का कौशल नहीं रखती। उच्च और जीवनपर्यंत शिक्षा के विविध मॉडलों को आजमाना चाहिए। व्यावसायिक प्रशिक्षण का विस्तार होना चाहिए। भारत के जनांकिकीय लाभ का वक्त हाथ से फिसल रहा है। उम्रदराज होने की प्रक्रिया को पलटा नहीं जा सकता है और भारत को अगले तीन दशक में अपनी जनांकिकी का लाभ लेना चाहिए।